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अध्याय ३ - द्वादशांशफल

मानसागरी - अध्याय ३ - द्वादशांशफल

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.


जिसके द्वादशांशमें ग्रह उच्चके मित्रके स्थानमें अथवा अपने घरमें स्थित होकर पडैं वह मनुष्य बहुत स्त्रियोंका अधिकारी और अनेक ऋद्धिसिद्धिसे युक्त होता है । अस्सी ८०-१ । चौराशी ८४-२ । छयासी ८६-४ । पंचाशी ८५-५ । साठ ६०-६ । छप्पन ५६-७ । सत्तर ७०-८ । नव्बे ९०-९ । छासठ ६६-१० । छप्पन ५६-११ । और सौ १००-१२ । इस प्रकार द्वादशांशके भेदसे मेषादिराशियोंमें आयु कही है । अठारह वर्षमें जलकरके, नववें वर्ष सर्पकरके, दशवें वर्षमें किसी विकारकरके, बत्तीसवें वर्ष राजयक्ष्मा रोगकरके मरण होता है ॥१-४॥

वीस वर्षमें रक्तविकारकरके, बाईसवें वर्ष अग्निकरके, अट्ठाईस वर्षमें जलोदरभयसे, तीसवें वर्ष व्याघ्रसे, बत्तीसवें वर्ष शरघातकरके और मकरके चन्द्रमामें जलकरके वा वातपीडाकरके मरण होता है । कुंभमें तीस वर्षकरके स्त्री कन्याका मरण कहे और मीनमें चक्रकरके मरण उन्तीसवें वर्षमें कहना चाहिये । इस प्रकार द्वादशांशभेदसे राशियोंमें पूर्वोक्त आयुर्दाय सत्य होता है जैसा मुझकरके कहागया । चक्रमें स्पष्ट है सो देखना ॥५-८॥

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Last Updated : January 22, 2014

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