लीला गान - गिरिधरकी वंशी प्यारी ज...

’लीलागान’में भगवल्लीकी मनोमोहिनी मनको लुभाती है ।


गिरिधरकी वंशी प्यारी जी, गिरिधरकी ॥ टेक ॥

मोर-मुकुट-पीताम्बर सोहै कुण्डलकी छबि न्यारी जी ।

यमुना तटपर धेनु चरावे, ओढ़े कामर कारी जी ॥१॥

गल-पुष्पनकी माल बिराजे, हिबड़े हार हजारी जी ।

कुंज- गलिनमें रास रच्यो है, गोपियन संग बनवारी जी ॥२॥

लूट-लूट माखन- दधि खावे, रोक लई ब्रजनारी जी ।

हाथ लकुट काँधे कामरिया, साँवरि सूरत जादू डारी जी ॥३॥

प्रीति लगाकर मन हर लीन्यो, नटवर कुंज-बिहारी जी ।

ललिता दासी जनम-जनमकी, चरण- कमल बलिहारी जी ॥४॥

N/A

References : N/A
Last Updated : January 22, 2014

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP