लीला गान - यो धनुष बड़ो विकराल , र...

’लीलागान’में भगवल्लीकी मनोमोहिनी मनको लुभाती है ।


यो धनुष बड़ो विकराल, रघुबर छोटो-सो ।

बड़ो कठिन पण पिता कियो, कोई रँच न कियो विचार ॥ रघु ॥

कमल जिसो तन राम रो, यो धनुष बजर सो जान ॥ रघु ॥

धनुष चढ़ो चाहे ना चढ़ो, म्हारो राम भँवर-भरतार ॥ रघु ॥

छोटो-छोटो मती कहो, यो पूरण ब्रह्म औतार ॥ रघु ॥

सूरज छोटो सो लगै, सब जगमें करे प्रकाश ॥ रघु ॥

रघुवर चाप चढ़ावसी, सखि ! इनमें फेर न सार ॥रघु ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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