भाद्रपद शुक्लपक्ष व्रत - अनन्तव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


अनन्तव्रत

( स्कन्द - ब्रह्म - भविष्यादि ) -

यह व्रत भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशीको किया जाता है । इसमें उदयव्यापिनी १ तिथि ली जाती है । पूर्णिमाका सहयोग २ होनेसे इसका फल बढ़ जाता है । कथाके अनुरोधसे मध्याह्नतक चतुर्दशी ३ रहे तो और भी अच्छा है । व्रतीको चाहिये कि उस दिन प्रातःस्त्रानादि करके

' ममाखिलपापक्षयपूर्वकशुभफलवृद्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये '

ऐसा संकल्प करके वासस्थानको स्वच्छ और सुशोभित करे । यदि बन सके तो एक स्थानको या चौकी आदिको मण्डपरुपमें परिणत करके उसमें भगवानकी साक्षात् अथवा दर्भसे बनायी हुई सात फणोंवाली शेषस्वरुप अनन्तकी मूर्ति स्थापित करे । उसके आगे १४ गाँठका अनन्त दोरक रखे और नवीन आम्रपल्लव एवं केले और मोदकादिका प्रसाद अर्पण करके

' नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर । नमस्ते सर्वनागेन्द्र नमस्ते पुरुषोत्तम ॥'

इससे विसर्जन करके

' दाता च विष्णुर्भगवाननन्तः प्रतिग्रहीता च स एव विष्णुः । तस्मात्त्वया सर्वमिदं ततं च प्रसीद देवेश वरान् ददस्व ॥'

से वायन दान करके कथा सुन और जिनमें नमक न पड़ा हो ऐसे पदार्थोंका भोजन करे । कथाका सार यह है कि ....... ' प्राचीन कालमें सुमन्तु ब्राह्मणकी सुशीला कन्या कौण्डिन्यको ब्याही थी । उसने दीन पत्नियोंसे पूछकर अनन्त - व्रत धारण किया । एक बार उसकी सम्पत्ति नष्ट हो गयी । तब वह दुःखी होकर अनन्तको देखने वनमें चला गया । वहाँ आम्र, गौ, वृष, खर, पुष्करिणी और वृद्ध ब्राह्मण मिले । ब्राह्मण स्वयं अनन्त थे । वे उसे गुहामें ले गये । वहाँ जाकर बतलाया कि पृथ्वी थी, बीजापहरणसे ' गौ ' हुई । वृष धर्म, खर क्रोध और पुष्र्करिणी बहिनें थीं । दानादि परस्पर लेने - देनेसे ' पुष्कारिणी ' हुईं और वृद्ध ब्राह्मण में हूँ । अब तुम घर जाओ । रास्तेमें आम्रादि मिलें उनसे संदेशा कहते जाओ और दोनों स्त्री - पुरुष व्रत करो, सब आनन्द होगा ।' इस प्रकार १४ वर्ष ( या यथासामर्थ्य ) व्रत करे । फिर नियत अवधि पूरी होनेपर भाद्रपद शुक्ल १४ को उद्यापन करे । उसके लिये ' सर्वतोभद्रस्थ कलशपर कुशनिर्मित या सुवर्णमय अनन्तकी मूर्ति और सोना, चाँदी, ताँबा, रेशम या सूत्रका ( १४ ग्रन्थियुक्त ) अनन्त दोरक स्थापन करके उनका वेदमन्त्रोंसे पूजन और तिल, घ्री, खाँड, मेवा एवं खीर आदिसे हवन करके गोदान, शय्यादान, अन्नदान ( १४ घट, १४ सौभाग्यद्रव्य और १४ अनन्त दान ) करके १४ युग्म ब्राह्मणोंको भोजन करावे और फिर स्वयं भोजन करके व्रतको समाप्त करे ।

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Last Updated : January 21, 2009

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