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जो मानै मेरी हित सिखवन ॥...

भजन - जो मानै मेरी हित सिखवन ॥...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


जो मानै मेरी हित सिखवन ॥

तो सत्य कहूँ निज मनकी बात, सहिये हिम-तप-वर्षा-रु-वात ।

कसिये मनको सब भाँति तात, जासों छूटै यह आवागमन ॥

पहिले पक्षी पृथ्वी पगुरत, फिर पंख जमे नभमें बिचरत ।

अवसर आये जलमें पैरत, पै भूलत नहिं निज मीत पवन ॥

करुनानिधानकी बानि हेरि, पुनि महामंत्र गज ध्वनिसों टेरि ।

'केशी' सिय-स्वामिनि केरि चेरि, समुझावति ध्यायिय सीतारवन ॥

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Last Updated : December 23, 2007

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