हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|विवेकवैराग्यनाम| आत्मनिवेदननाम विवेकवैराग्यनाम विमललक्षणनाम प्रत्ययनिरूपणनाम भक्तनिरूपणनाम विवेकवैराग्यनाम आत्मनिवेदननाम सृष्टिक्रमनिरूपणनाम विषयत्यागनिरूपणनाम कालरूपनाम समास नववां- येत्नसिकवणनाम उत्तमपुरुषनिरूपणनाम समास पांचवां - आत्मनिवेदननाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास पांचवां - आत्मनिवेदननाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ रेखाओं के जंजाल किये । मातृकाक्षरों से शब्द हुये । शब्दों के मेल से हुये । श्लोक गद्य प्रबंध ॥१॥ वेदशास्त्र पुराण । नानाकाव्य निरूपण । ग्रंथभेद अनुवादन | कहें कितने ॥२॥ नाना ऋषि नाना मत । देखने जाओ तो असंख्यात् । भाषा लिपी सभी जगह । उनकी क्या कमी ॥३॥ वर्ग ऋचा श्रुति स्मृति । अध्याय सर्ग स्तवक जाति । प्रसंगमान समास पोथी । अनेक नाम से ॥४॥नाना पद नाना श्लोक । नाना बीर नाना कडक । नाना साखी दोहे अनेक । नामाभिधान ॥५॥ डफगान माचिगान । दिंडीगान कथागान । नाना मान नाना जश्न । नाना खेल ॥६॥ध्वनि घोष नाद रेखा । चारों वाणी में दिखा । वाचा के रूप में भी नाना । भेद सुने ॥७॥ उन्मेष परा ध्वनि पश्यंति । नाद मध्यमा शब्द चौथे । वैखरी से उपजते । नाना शब्दरत्न ॥८॥ अकार उकार मकार । अर्धमात्रा का अंतर । साढे तीन मात्रा तद्नंतर । बावन मात्रायें ॥९॥ नामभेद रागज्ञान । नृत्यभेद तालज्ञान । अर्थभेद तत्त्वज्ञान । विवंचना ॥१०॥ तत्त्वों में मुख्य तत्त्व । वह जानिये शुद्ध सत्त्व । अर्धमात्रा का महतत्त्व । मूलमाया ॥११॥ नाना तत्त्व छोटे बड़े । मिलकर अष्ट ही शरीर बने । वायु अष्टधा प्रकृति से । निकल जाता ॥१२॥ वायु ना हो जैसा गगन । वैसे परब्रह्म सघन । अष्ट देहों का निरसन । करके देखें ॥१३॥ब्रह्मांडपिंडउभार । पिंडब्रह्मांडसंहार । दोनों से अलग सारासार । विमलब्रह्म ॥१४॥ पदार्थ जड़ आत्मा चंचल । विमल ब्रह्म वह निश्चल । विवरण से पिघले तत्काल । तद्रूप होता ॥१५॥पदार्थ मन काया वाचा । मैं सारा ही देव का । जड़ आत्मनिवेदन का । विचार ऐसा ॥१६॥ चंचलकर्ता वह जगदीश । प्राणिमात्र उसका अंश । उसका वही नहीं शेष । अहं को स्थान ॥१७॥ चंचल आत्मनिवेदन । इसके कहे लक्षण । कर्ता देव वह स्वयं । कहीं भी नहीं ॥१८॥ चंचल चलित हो स्वप्नाकार । निश्चल देव वह निर्विकार । आत्मनिवेदन का प्रकार । जानिये ऐसा ॥१९॥ठांव ही नहीं चंचल का । वहां पहले से अहं कैसा । निश्चल आत्मनिवेदन का । विवेक ऐसा ॥२०॥ तीनों तरह से स्वयं । नहीं नहीं दूजापन । स्वयं ना रहते मैंपन । नहीं कहीं भी ॥२१॥ देखते देखते अनुमान किया । समझते समझते समझ में आया । देखें तो सारा ही शांत हुआ । बोलना अब ॥२२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आत्मनिवेदननाम समास पांचवां ॥५॥ N/A References : N/A Last Updated : February 14, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP