हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|विवेकवैराग्यनाम| प्रत्ययनिरूपणनाम विवेकवैराग्यनाम विमललक्षणनाम प्रत्ययनिरूपणनाम भक्तनिरूपणनाम विवेकवैराग्यनाम आत्मनिवेदननाम सृष्टिक्रमनिरूपणनाम विषयत्यागनिरूपणनाम कालरूपनाम समास नववां- येत्नसिकवणनाम उत्तमपुरुषनिरूपणनाम समास दूसरा - प्रत्ययनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास दूसरा - प्रत्ययनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ सुनो संसार में आये जो । स्त्रीपुरुष निस्पृह हो । सुचितपन से देखो तो । अर्थांतर ॥१॥क्या कहती वासना । क्या कल्पित करे कल्पना । अंतरंग के तरंग नाना । प्रकार से उठते ॥२॥ अच्छा भोजन अच्छा खायें । अच्छा परिधान अच्छा पहनें । मन के अनुसार रहें । सब कुछ ॥३॥ ऐसा है मनोगत । पर वैसे कुछ भी न हो घटित । भला करने पर अकस्मात् । बुरा होता ॥४॥ एक सुखी एक दुःख में । प्रत्यक्ष व्यवहार लौकिक में । कष्टी होकर अंत में । प्रारब्ध पर डालते ॥५॥अचूक यत्न होये ना । इस कारण किया वो सजेना । अपना अवगुण समझेना । करो कुछ भी ॥६॥ जो अपना स्वयं ना जाने । वह औरों का क्या जाने । न्याय छोड़ते ही दीन । होते लोग ॥७॥ लोगों का मनोगत समझेना । लोगों जैसा बर्ताव होये ना । मूर्खतावश लोगों में नाना । कलह उठते ॥८॥फिर ये कलह बढ़ते । परस्पर दुःखी होते । अंत में प्रयत्न रह जाते । श्रम ही होता ॥९॥ आचरण न हों ऐसे । नाना लोगों की परीक्षा करें । अचूक समझना चाहिये । जो जैसा है ॥१०॥ शब्दपरीक्षा अंतरपरीक्षा । कुछ कुछ समझे दक्षा । मनोगत नतद्रक्षा । को क्या समझे ॥११॥ दूसरों को नाम रखना । अपनी तरफदारी करना । देखो तो लौकिक लक्षण । है बहुतेक ऐसे ही ॥१२॥लोग अच्छा कहें इस कारण । अच्छे करते है सहन । न सहने पर अनबन । सहज ही होती ॥१३॥ स्वयं का मान्य जो हो ना । वहां कदापि रह पाये ना । मन तोड़कर भी जा सकेना । किसी एक का ॥१४॥ सत्य बोले सत्य चले । उसे मानते छोटे बडे । न्याय अन्याय परस्पर उन में । सहज ही समझे ॥१५॥लोगों को जब तक न समझे । विवेक से जो क्षमा ना करे । बराबरी कारण उसके । होती जाती ॥१६॥ जब तक चंदन घिसे ना । तब तक सुगंध समझे ना । चंदन और वृक्ष नाना । लगते एक समान ॥१७॥जब तक उत्तम गुण ना प्रकटे । तब तक जनों को क्या समझे । उत्तम गुण देखते ही शांत होये । जगदांतर ॥१८॥ जगदांतर शांत होते गया । जगदांतर में सुख पाया । तब फिर जानो वश हुआ । विश्वजन समूह ॥१९॥ जनीं जनार्दन आये वश में । फिर उसे क्या कमी रहे । राजी सभी को रखें । कठिन है ॥२०॥ बोया वही उगता । उधार देना लेना पडता । मर्म प्रकट करे तो भग्न होता । परांतर ॥२१॥ लोगों का भला किया । उससे सौख्य बढ़ा । उत्तर समान आया । प्रत्युत्तर ॥२२॥ ये सारा अपने पास । यहां नहीं लोगों का दोष । अपने मन को दें सीख । क्षण क्षण ॥२३॥ खल दुर्जन मिला । क्षमा का धीरज डूबा । फिर मौनपूर्वक स्थल त्याग करना । चाहिये साधक ने ॥२४॥लोग नाना परीक्षा जानते । अंतरपरीक्षा न जानते । इससे प्राणी अभागी होते । संदेह नहीं ॥२५॥ हमें है मरण । इस कारण राखें भलापन । कठिन है लक्षण । विवेक के ॥२६॥ छोटे बडे समान । अपने पराये सकल जन । चढता बढता सन्निधान । रखने से होता भला ॥२७॥ भला करें तो भला होता । इसका तो प्रत्यय आता । अब इसके आगे क्या कहना । किससे क्या ॥२८॥हरिकथानिरूपण । अच्छी तरह से राजकारण । प्रसंग देखे बिन । सभी खोटा ॥२९॥ विद्या उदंड सीखा । प्रसंग में चूकता ही गया । तो फिर उस विद्या । को कौन पूछें ॥३०॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे प्रत्ययनिरूपणनाम समास दूसरा ॥२॥ N/A References : N/A Last Updated : February 14, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP