हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|विवेकवैराग्यनाम| विषयत्यागनिरूपणनाम विवेकवैराग्यनाम विमललक्षणनाम प्रत्ययनिरूपणनाम भक्तनिरूपणनाम विवेकवैराग्यनाम आत्मनिवेदननाम सृष्टिक्रमनिरूपणनाम विषयत्यागनिरूपणनाम कालरूपनाम समास नववां- येत्नसिकवणनाम उत्तमपुरुषनिरूपणनाम समास सातवां - विषयत्यागनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास सातवां - विषयत्यागनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ न्याय निष्ठुर बोलना । बहुतों को लगे उबानेवाला । मतली होने पर भोजन करना । विहित नहीं ॥१॥ विषयों की निंदा की बहुतों ने । और उन्हें ही सेवन करते गये । विषय त्याग से देह चले । यह तो होये ना ॥२॥ बोलना एक कुरना एक । उसका नाम हीन विवेक । ऐसा करें तो सकल लोक । हंसने लगते ॥३॥विषयत्यागे बिन तो कहीं । परलोक तो पाते नहीं । ऐसा कहते ठाई ठाई । देखें अच्छे से ॥४॥ प्रपंची खाते भोजन करते । परमार्थी क्या उपवास करते । उभय तो समान दिखते । विषयों के विषय में ॥५॥ देह चलते विषय त्यागे । ऐसा कौन है जग में । इसका उत्तर मुझे । निरूपित करें हे देव ॥६॥ विषय सारे ही त्याग दें । तभी फिर परमार्थ करे । ऐसे देखने पर उलझनें । दिखती हैं ॥७॥ ऐसा श्रोता ने किया प्रश्न । वक्ता उत्तर करें कथन । सावधान होकर लगाये मन । इस विषय में ॥८॥वैराग्य से करें त्याग । तभी परमार्थयोग । प्रपंच त्यागने से सर्वोत्तम । परमार्थ होता ॥९॥ पहले ज्ञानी हो गये । उन्होंने भी बहुत कष्ट किये । तभी तो विख्यात हुये । भूमंडल पर ॥१०॥ अन्य मत्सर करते ही गये । अन्न अन्न कहते मर गये । कई लोग भ्रष्ट हुये । पेट के लिये ॥११॥मूलतः ही वैराग्य नहीं । ज्ञान प्रत्यय का नहीं । शुचि आचार भी नहीं । भजन कैसा ॥१२॥ इस प्रकार के जन । स्वयं को कहते सज्जन । देखने जाओ तो अनुमान । सारा ही दिखे ॥१३॥ जिन्हें नहीं अनुताप । यही तो एक पूर्वपाप । क्षण क्षण विक्षेप । पराधिकता से ॥१४॥ मुझे नहीं तुझे भी सजेना । यह तो सारा जानते है जन । खाते को भूखा देख सके ना । ऐसा है ॥१५॥भाग्य पुरुष बड़े बड़े । दिवालियें उनकी निंदा करे । साव को चोर देखे । और चिढ़े जैसा ॥१६॥ वैराग्य समान नहीं भाग्य । वैराग्य नहीं वह अभाग्य । वैराग्य ना हो तो योग्य । परमार्थ नहीं ॥१७॥प्रत्ययज्ञानी वीतरागी । विवेकबल से सर्व त्यागी । वह जानिये महायोगी । ईश्वरी पुरुष ॥१८॥ अष्ट सिद्धियों की उपेक्षा । करके ली योगदीक्षा । घर घर में मांगे भिक्षा । महादेव ॥१९॥ ईश्वर की बराबरी । कैसे करेगा वेषधारी । इस कारण समान सभी । होते नहीं ॥२०॥ उदास और विवेक । उसे खोजते सकल लोक । जो है लालची मूर्ख रंक । वे रहते दीन ॥२१॥ जो आचरण से वंचित हुये । जो विचार से भ्रष्ट हुये । विवेक करना भूल गये । विषयलोभी ॥२२॥ भजन तो प्रिय लगे ना । पुरश्चरण कदापि होये ना । भलों से उनकी निभे ना । इस कारण ॥२३॥ वैराग्य कर के भ्रष्ट होये ना । ज्ञान भजन त्यागे ना । व्युत्पन्न और वाद करेना । ऐसे थोड़े ॥२४॥ कष्ट करे तो फसल पके । ऊंची वस्तु तत्काल बिके । जानकार लोग कौतुक से । झेलते उसे ॥२५॥अन्य सभी मंद हुये । दुराशावश खोटे हुये । ज्ञान संकुचित किये । भ्रष्टाकार से ॥२६॥ सबल विषय त्यागना । शुद्ध कार्यकारण लेना । विषयत्याग के लक्षण । पहचानना ऐसे ॥२७॥ सभी कुछ कर्ता देव । नहीं प्रकृति का ठांव । विवेक का अभिप्राव । विवेकी जानते ॥२८॥ शूरता के लिये तत्पर । उसे मानते छोटे श्रेष्ठतर । कामगार और अंगचोर । एक कैसे ॥२९॥ तार्किक त्यागात्याग जाने । बोले जैसा चलना जाने । पिंड्ब्रह्मांड सकल जाने । यथायोग्य ॥३०॥ ऐसा जो सर्वज्ञाता । उत्तम लक्षणों में पूर्णतः । उससे ही सार्थकता । सहज ही होती ॥३१॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे विषयत्यागनिरूपणनाम समास सातवां ॥७॥ N/A References : N/A Last Updated : February 14, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP