हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|विवेकवैराग्यनाम| भक्तनिरूपणनाम विवेकवैराग्यनाम विमललक्षणनाम प्रत्ययनिरूपणनाम भक्तनिरूपणनाम विवेकवैराग्यनाम आत्मनिवेदननाम सृष्टिक्रमनिरूपणनाम विषयत्यागनिरूपणनाम कालरूपनाम समास नववां- येत्नसिकवणनाम उत्तमपुरुषनिरूपणनाम समास तीसरा - भक्तनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास तीसरा - भक्तनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पृथ्वी पर बहुत लोग । वे भी देखें विवेक । इहलोक और परलोक । देखें अच्छी तरह ॥१॥ इहलोक साधने के लिये । ज्ञाता की संगति धरें । परलोक साधने के लिये । सद्गुरू चाहिये ॥२॥ सद्गुरू से क्या पूछें । यह भी न समझे स्वभाविकता से । अनन्यभाव एकभाव से । पूछें दो बातें ॥३॥ दो बातें वे कौन । देव कौन स्वयं कौन । इन बातों का विवरण । करते ही रहें ॥४॥ पहले मुख्य देव वह कौन । फिर स्वयं भक्त बह कौन । पंचीकरण महावाक्यविवरण । करते ही रहें ॥५॥सकल करने का फल । शाश्वत पहचानें निश्चल । स्वयं कौन का केवल । शोध करें ॥६॥ सारासार विचार करें तो । शाश्वतता नहीं पदार्थ को । आदि कारण भगवंत को । पहचानना चाहिये ॥७॥निश्चल चंचल और जड़ । सारा माया का पवाड । उनमें वस्तु जाड़ । प्रविष्ट न होगी ॥८॥ उस परब्रह्म को खोजें । विवेक त्रैलोक्य में घूमें । मायिक खंडन विचार से करें । परीक्षावंतों ने ॥९॥ खोटा त्याग खरा लें । परीक्षावंत परीक्षा लें । माया का सर्व जानें । रूप मायिक ॥१०॥ पंचभूतिक यह माया । मायिक का विलय होगा । पिंडब्रह्मांड अष्टकाया । नाशिवंत ॥११॥दिखता वह नष्ट होगा । उपजा वह मरेगा । बना वह मिटेगा । रूप माया का ॥१२॥ बढेगा वह टूटेगा । आया वह जायेगा । भूत को भूत खायेगा । कल्पांत काल में ॥१३॥देहधारक वे होंगे नष्ट । इसकी तो रोकडी प्रचित । मनुष्य के बिना रेत । की उत्पति कैसे ॥१४॥ अन्न न हो तो रेत कैसा । औषधि न हो तो अन्न कैसा । औषधि का जीना कैसा । पृथ्वी ना होते ॥१५॥आप बिना पृथ्वी नहीं । तेज बिना आप नहीं । वायु बिना तेज नहीं । ऐसे जानें ॥१६॥ अंतरात्मा बिना वायु कैसा । विकार बिना अंतरात्मा कैसा । निर्विकार में विकार कैसा । देखो अच्छी तरह ॥१७॥ पृथ्वी नहीं आप नहीं । तेज नहीं वायु नहीं । अंतरात्मा विकार नहीं । निर्विकार में ॥१८॥ निर्विकार जो निर्गुण । वही शाश्वत का चिन्ह । अष्टधा प्रकृति संपूर्ण । नाशवंत ॥१९॥ नाशवंत समझकर देखा । तो वह रहकर भी नहीं रहा । सारासार से समझ आया । समाधान ॥२०॥ विवेक से देखा विचार । मन में आया सारासार । इस कारण विचार । सुदृढ हुआ ॥२१॥ शाश्वत देव वह निर्गुण । यह अंदर पक्के ये चिन्ह । देव समझा मैं कौन । समझना चाहिये ॥२२॥ मैं कौन समझना चाहिये । देहतत्त्व उतने वे ढूंढे । मनोवृत्ति की जगह आये । मैं तू पन की तत्त्वता ॥२३॥ सकल देह का शोध लेने पर । मैं पन दिखेना देखेने पर । मैं तू पन ये तत्त्वतः । तत्त्वों में अस्त हुये ॥२४॥दृश्य पदार्थ ही दूर हुये । तत्त्व में तत्त्व तब अस्त होये । मैं तू पन यह कैसे रहे । तत्त्वतः वस्तु ॥२५॥पंचीकरण तत्वविवरण । महावाक्य से वस्तु स्वयं । निःसंगता से निवेदन । करना चाहिये ॥२६॥देवभक्तों का मूल । खोज कर देखने पर सकल । उपाधि से अलग केवल । निरूपाधि आत्मा ॥२७॥मैंपन यह लुप्त हुआ । विवेक से भिन्नत्व गया । निवृत्ति पद को प्राप्त हुआ । उन्मनीपद ॥२८॥ विज्ञान में विलीन हुआ ज्ञान । ध्येय में लय हुआ ध्यान । सब कुछ कार्याकारण । देखकर त्यागा ॥२९॥जन्म मरण के चूके । पाष सारा ही डूबे । हो गई यमयातना हुये । निसंतान ॥३०॥निर्बंध सारा ही टूट गया । विचार से मोक्ष को प्राप्त हुआ । जन्म सार्थक ही लगा । सब कुछ ॥३१॥ नाना किंत निवारण हुये । धोखे सारे ही टूट गये । ज्ञान विवेक से पावन हुये । बहुत लोग ॥३२॥ दास पतितपावन के । जग को पावन करते वे । ऐसी यह प्रचीति बहुतों के । मन को आई ॥३३॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे भक्तनिरूपणनाम समास तीसरा ॥३॥ N/A References : N/A Last Updated : February 14, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP