हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|स्वगुणपरीक्षा| समास आठवा आधिदैविकतापनाम स्वगुणपरीक्षा समास पहला जन्मदुःखनिरूपणनाम समास दूसरा सगुणपरीक्षानाम समास तीसरा सगुणपरीक्षानाम समास चौथा सगुणपरीक्षानाम समास पांचवा सगुणपरीक्षानिरुपणनाम समास छठवां आध्यात्मिकताप निरूपणनाम समास सातवां आधिभौतिकताप निरूपणनाम समास आठवा आधिदैविकतापनाम समास नववा मृत्युनिरुपणनाम समास दसवां बैराग्यनिरूपणनाम समास आठवा आधिदैविकतापनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास आठवा आधिदैविकतापनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पहले कहा आध्यात्मिक । उसके पश्चात आधिभौतिक । अब कहता हूं आधिदैविक । वह सावधानी से सुनें ॥१॥॥ श्लोक ॥ शुभाशुभैः कर्मभिश्च देहाते यमयातना । स्वर्गनरकादि भोक्तव्यमिदं विद्धयाधिदैविकम् ॥१॥शुभाशुभ कर्मों से पाते जन । देहात में यमयातना । स्वर्ग नरक भोग नाना । इसका नाम आधिदैविक ॥२॥ नाना दोष नाना पातक । मदांधता से अविवेक । से किये पर वे दुःखदायक । यमयातना भोगने लगाते ॥३॥अंगबल से द्रव्यबल से । मनुष्यबल से राजबल से । नाना सामर्थ्यों के बल से । अकृत्य करते ॥४॥ नीति त्यागकर तत्त्वतः । अनुचित वही कर्म करता । यमयातना भोगता । जीव तड़पता जाये ऐसे ॥५॥अंधा बनकर स्वार्थ बुद्धि । नाना अभिलाष कुबुद्धि । सीमा साधे वृत्तिभूमि । द्रव्य दारा पदार्थ ॥६॥ मस्ती से होकर उन्मत्त । जीवघात कुटुंबघात । अप्रमाण क्रिया में रत । इस कारण यमयातना ॥७॥मर्यादा त्याग कर चलते । ग्रामाधिपति ग्राम को दंड देते । देशाधिपति देश को दंड देते । नीति न्याय त्यागने पर ॥८॥ देशाधिपति को दंड दे राव । राय को दंड दे देव । राजा न करे नीति न्याय । इस कारण यमयातना ॥९॥अनीति से स्वार्थ देखे । रहे राजा पापी बन के । है नर्क अंत में राज्य के । इस कारण ॥१०॥ राजा राजनीति छोड़े । तो यम उसे दंडित करे । यम नीति छोड़ने पर दौड़ते । देवगण ॥११॥ देव ने मर्यादा लगाई ऐसे । इस कारण चलें नीति से । नीति न्याय छोडने से । भोगनी पडे यमयातना ॥१२॥ देव ने प्रेरित किया यम । इस कारण आधिदैविक नाम । तृतीय ताप दुर्गम । यमयातना का ॥१३॥यमदंड यमयातना । शास्त्रों में बोले हैं प्रकार नाना । वह भोग कदापि चूके ना । इसका नाम आधिदैविक ॥१४॥ यमयातना के खेद । शास्त्रों में कहे हैं विशद । शरीर में उत्पन्न अप्रमाद । नाना प्रकार से ॥१५॥ पाप पुण्य के शरीर । स्वर्ग में होते कलेवर । उनमें डालकर नाना प्रकार । से पाप पुण्य भोगने लगाते ॥१६॥ नाना पुण्य से नाना विलास । नाना दोषों से यातना कर्कश । शास्त्रों में कहे अविश्वास । मानें ही नहीं ॥१७॥ वेदाज्ञा से न चलते । हरीभक्ति न करते । उसे यमयातना कराते । इसका नाम आधिदैविक ॥१८॥ अक्षोभ नरक में अपार जीव । पुराने कीडे करते रवरव । बांधकर रखते हांथ पांव । इसका नाम आधिदैविक ॥१९॥ प्रचंड फैलाव संकरा मुख । कुंभाकार कुंभ एक । दुर्गंधि गर्मी कुंभपाक । इसका नाम आधिदैविक ॥२०॥ तप्त भूमि पर तपाते । जलते स्तंभ से बांधते । नाना संड़सा लगाते । इसका नाम आधिदैविक ॥२१॥ यमदंड की असीम मार । यातना की सामग्री अपार । भोग भोगते पापी नर । इसका नाम आधिदैविक ॥२२॥ पृथ्वी पर मार नाना । उससे भी कठिन यमयातना । मारते अंत ही होता ना । इसका नाम आधिदैविक ॥२३॥ चार चहुं ओर खींचते । एक वह धक्के से गिराते । तानते मारते खींच ले जाते । इसका नाम आधिदैविक ॥२४॥ उठ सके ना बैठ सके ना । रो सके ना लेट सके ना । यातना ऊपरांत यातना । इसका नाम आधिदैविक ॥२५॥ आक्रंदन करे सिसके रोये । धक्काबुक्की से भ्रमिष्ट होये । सूखा पंजर होकर जूझे । इसका नाम आधिदैविक ॥२६॥ कर्कश वचन कर्कश मार । यातना के नाना प्रकार । त्रस्त होते दोषी नर । इसका नाम आधिदैविक ॥२७॥पहले कहा राजदंड । उससे यमदंड उदंड । वहां की यातना प्रचंड । भीमरूप दारुण ॥२८॥ आध्यात्मिक आधिभौतिक । उससे विशेष आधिदैविक । अल्प संकेत से कुछ एक । समझने हेतु कहे हैं ॥२९॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे आधिदैविकतापनाम समास आठवां ॥८॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP