हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|स्वगुणपरीक्षा| समास पहला जन्मदुःखनिरूपणनाम स्वगुणपरीक्षा समास पहला जन्मदुःखनिरूपणनाम समास दूसरा सगुणपरीक्षानाम समास तीसरा सगुणपरीक्षानाम समास चौथा सगुणपरीक्षानाम समास पांचवा सगुणपरीक्षानिरुपणनाम समास छठवां आध्यात्मिकताप निरूपणनाम समास सातवां आधिभौतिकताप निरूपणनाम समास आठवा आधिदैविकतापनाम समास नववा मृत्युनिरुपणनाम समास दसवां बैराग्यनिरूपणनाम समास पहला जन्मदुःखनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास पहला जन्मदुःखनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ जन्म दुःख का अंकुर । जन्म शोक का सागर । जन्म भय का गिरिवर । अचल ऐसा ॥१॥ जन्म सांचा कर्मों का । जन्म खदान पातकों का । जन्म छल काल का । नित नया ॥२॥जन्म कुविद्या का फल । जन्म लोभ का कमल । जन्म भ्रांति का पटल । ज्ञानहीन ॥३॥ जन्म जीव को बंधन । जन्म मृत्यु का कारण । जन्म यही अकारण । उलझन की गुत्थी ॥४॥ जन्म सुख का बिसर । जन्म चिंता का भांडार । जन्म वासनाविस्तार । विस्तारित हुआ ॥५॥ जन्म जीव का रूप बुरा । जन्म कल्पना की मुद्रा । जन्म डाकिन का फेरा । ममतारूप ॥६॥ जन्म माया का कपट । जन्म क्रोध का रूप विराट । जन्म मोक्ष को आड़ । विघ्न है ॥७॥ जन्म जीव का मैंपन । जन्म अहंता का गुण । जन्म ही विस्मरण । ईश्वर का ॥८॥ जन्म विषयों की आकृष्टि । जन्म दुराशा की बेडी । जन्म काल की ककडी । भक्षण करे ॥९॥ जन्म ही विषम काल । जन्म यही बुरा काल । जन्म यही अति अमंगल । नर्कपतन ॥१०॥ देखें शरीर का मूल । इस जैसा नहीं अमंगल । रजस्वला का जो रजबल । उससे जन्म इसका ॥११॥अत्यंत दोष जिस रज का । पुतला बना यह उसी रज का । वहां उत्सव निर्मलपन का । कब होगा ॥१२॥रज जो रजस्वला का । गाढा बना सूखकर उसका । केवल उस प्रगाढ का । बना यह शरीर ॥१३॥ ऊपर ऊपर दिखे वैभव का । भीतर बोरा नरक का । जैसे ढक्कन चर्मकुंड का । खोलता ना बने ॥१४॥होता शुद्ध कुंड धोने पर । इसे रोज भी धोयें अगर । तब भी दुर्गंधि शरीर पर । शुद्धता न आये ॥१५॥अस्थिपंजर खड़ा किया । शिरा नाडियों से लपेट दिया । मेद मांस से भर दिया । जोड जोड़ में ॥१६॥अशुद्ध शब्द भी शुद्ध नहीं । देह में भरा है वही । नाना व्याधि दुःख भी । बसते अभ्यंतर में ॥१७॥ भरा नर्क का कोठार । लथपथ है अंदर बाहर । जमी मूत्र थैली भरकर । दुर्गंधियुक्त ॥१८॥जंतु कीड़े और आंत । थैला नाना दुर्गंधियुक्त । असीम चमडी थुलथुलित । ऊबाने वाली ॥१९॥ सिर है सर्वाग का प्रमाण । बल से वहां बहे घ्राण । गंदगी बहे फूटने पर श्रवण । वह दुर्गंध असह्य ॥२०॥कीचड निकले आखों से । नाक भरा रेंट से । प्रातः काल गंदगी निकले मुख से । मल जैसी ॥२१॥ लार थूक और मल । पित्त कफ प्रबल । इसे कहते मुखकमल । चंद्रसमान ॥२२॥मुख दिखे गंदा ऐसे । पेट भरा विष्ठा से । प्रत्यक्ष को प्रमाण न लगे । भूमंडल में सर्वथा ॥२३॥पेट में डालने पर दिव्यान्न । कुछ विष्ठा कुछ वमन । भागिरथी का भी पिये जीवन । उससे बने लघुशंका ॥२४॥ इस तरह मल मूत्र और वमन । यही देह का जीवन । ऐसे ही देह बढता जान । यदर्थी संदेह नहीं ॥२५॥ पेट में न होता मल मूत्र वमन । मर जाते सकल जन । हो राव अथवा दीन । पेट में विष्ठा चूके ना ॥२६॥निर्मलता के लिये निकाले अगर । तत्त्वतः मृत होती शरीर । एवं देह की व्यवस्था इस प्रकार । होती है ॥२७॥ ऐसा यह जब दृढ रहता । यथाभूत देखा जाता । पर वो दुर्दशा जब कहा जाता । शंका की बाधा होती ॥२८॥ऐसे कारागृह की बस्ती । नौ मास बहु विपत्ति । नौ ही द्वार निरोध करती । वायु कैसे वहां ॥२९॥ वमन नरक के रस झरतें । जो जठराग्नि से तपतें । जिससे सभी ऊबलते । अस्थिमांस ॥३०॥ त्वचाविन गर्भ खौले । तब माता का जी ललचाये । कटु तीक्ष्ण से सर्वाग जले । उस बालक का ॥३१॥बंधी चर्म की पोटली । जिसमें विष्ठा की थैली । रस उपाय की रहती । नाल वहां ॥३२॥ विष्ठा मूत्र वमन पित्त । नाक मुंह से निकलते जंत । जिससे घबराये चित्त । अत्याधिक ॥३३॥प्राणी ऐसे कारागृह में । पड़ा अति कठोर घुटन में । कहे तड़पकर चक्रपाणी से । छुड़ाइये यहां से अब ॥३४॥ हे ईश्वर छुड़ाओगे यहां से । तो करूंगा मैं स्वहित ऐसे । आगे बचूंगा गर्भवास से । पुनः नहीं यहां ॥३५॥दुःखी होकर ऐसी प्रतिज्ञा की । तब जन्म घडी पास आई । माता आक्रोश करने लगी । प्रसवकाल में ॥३६॥नाक मुंह में जमा मांस । तब मस्तक द्वार से छोडे श्वास । वह भी हुआ बंद निशेष । जन्म के समय ॥३७॥ मस्तकद्वार बंद हुआ । उससे चित्त व्याकुल हुआ । प्राणी तड़पने लगा । चारों ओर ॥३८॥ श्वास उश्वास रोधित हुआ । उससे प्राणी घबराया । मार्ग न दिखे सा हुआ । छटपटाहट हुई ॥३९॥ चित्त बहुत घबराया । उससे वो बालक अड़ गया । लोग कहते आड़ा हुआ । निकालो काटकर ॥४०॥ तब उसे काटकर निकालते । हाथ पैर छेदते । आया हांथ उसेही काटते । मुख नासिक उदर ॥४१॥ ऐसे टुकड़े तोड़े । बालक ने प्राण छोड़े । माता ने भी छोड़े । कलेवर ॥४२॥ मृत पाया स्वयं । लिये माता के प्राण । दुःख भोगे दारुण । गर्भवास में ॥४३॥ तथापि पूर्वसुकृत से । मिला मार्ग योनि से । तब भी जाकर अटका फिरसे । कंठ स्कंद में ॥४४॥ फिर संकुचित पथ से । खींचकर निकालते बल से । जाते प्राण जिससे । बालक के ॥४५॥ निकले जब बालक के प्राण । अंत में होता विस्मरण । इस कारण पूर्व स्मरण । भूल गया ॥४६॥ गर्भ में कहे सोह सोहं । बाहर आते ही कहे कोहं । ऐसा कष्ट सहे बहुत । गर्भवास में ॥४७॥ दुःख से भीतर त्रस्त हुआ । बहुत कष्ट से बाहर आया । आते ही कष्ट बिसर गया । गर्भवास के ॥४८॥शून्याकार बन गई वृत्ति । चित्त में ना थी कुछ भी स्मृति । अज्ञानवश हुई भ्रांति । उसे ही सुख मान लिया ॥४९॥ देह ने विकार पाये । सुख दुःख झोंके खाये । अस्तु ऐसे उलझ गये । मायाजाल में ॥५०॥ गर्भवास के दुःख ऐसे । प्राणिमात्रों को होते । इस कारण शरण में जाये । भगवंत के ॥५१॥ जो भगवंत का भक्त । वह जन्म से मुक्त । ज्ञानबल से विरक्त । सर्वकाल ॥५२॥ ऐसी गर्भवास की विपत्ति । निरुपित की यथामति । श्रोतां सावधान कर मति । अवधान दें आगे ॥५३॥इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे जन्मदुःखनिरुपणनाम समास पहला ॥१॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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