हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|अखंडध्याननाम| ॥ समास दूसरा - भिक्षानिरूपणनाम ॥ अखंडध्याननाम ॥ समास पहला - निस्पृहलक्षणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - भिक्षानिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - कवित्वकलानिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - कीर्तनलक्षणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - हरिकथालक्षणनिश्चयनाम ॥ ॥ समास छठवां - चातुर्यलक्षणनाम ॥ ॥ समास सातवां - युगधर्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - अखंडध्याननिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - शाश्वतनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - मायानिरूपणनाम ॥ अखंडध्याननाम - ॥ समास दूसरा - भिक्षानिरूपणनाम ॥ ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास दूसरा - भिक्षानिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ ब्राह्मण की मुख्य दीक्षा । मांगनी चाहिये भिक्षा । 'ॐ भवति' इस पक्ष की रक्षा करनी चाहिये ॥१॥ भिक्षा मांगकर जिसने खाया। वह निराहारी कहलाया । प्रतिग्रह से मुक्त हुआ । भिक्षा मांगने पर ॥२॥संतासंत जो जन । वहां कोरान्न मांगकर करे भोजन । उसने किया अमृतप्राशन । प्रतिदिन ॥३॥॥ श्लोक ॥ भिक्षाहारी निराहारी भिक्षा नैव प्रतिग्रहः । असन्तो वापि सन्तो वा सोमपानं दिने दिने ॥छ॥ऐसी भिक्षा की महिमा । भिक्षा माने सर्वोत्तमा । ईश्वर की अगाध महिमा । वह भी भिक्षा मांगे ॥४॥ दत्त गोरक्ष आदि करके । सिद्ध भिक्षा मांगते जनों में । निस्पृहता भिक्षा से । प्रकट होती ॥५॥ दिन तय करके बैठा । फिर वह पराधीन हुआ । वैसे ही रोज खाया पराया । तब स्वातंत्र्य कहां ॥६॥ आठ दिनों का अनाज जमाया । फिर भी वह हुआ ऊबाने वाला । प्राणी एकाएक विचलित हुआ । नित्यनूतनता से ॥७॥ नित्य नूतन करें भ्रमण । उदंड करें देशाटन । तभी फिर भिक्षा मांगने पर भलापन । श्लाघ्य होता ॥८॥अखंड भिक्षा का अभ्यास । उसे लगे ना परदेश । जहां वहां स्वदेश । लोकत्रयों में ॥९॥ भिक्षा मांगने में किरकिर न करें । भिक्षा मांगने में ना लजायें । भिक्षा मांगने से ना थक जायें । परिभ्रमण करें ॥१०॥ भिक्षा और चमत्कार । छोटे बड़े करते अचरज । कीर्ति बखानते निरंतर । भगवंत की ॥११॥ भिक्षा याने कामधेनु । सदा फलदायिनी नहीं सामान्यु । भिक्षा को करे जो अमान्यु । वह अभागा जोगी ॥१२॥ भिक्षा से परिचय होते । भिक्षा से भ्रम टूटते । सामान्य भिक्षा मान्य करते । सकल प्राणी ॥१३॥ भिक्षा याने निर्भय स्थिति । भिक्षा से प्रकट होती महंती । स्वतंत्रता ईश्वर प्राप्ति। भिक्षा की गुणों से ॥१४॥भिक्षा में नहीं बंधन कुछ । भिक्षाहारी वह मुक्त । भिक्षा से होता काल सार्थक । समय बीते ॥१५॥ भिक्षा याने अमरवल्ली । जहां वहां फैली । कठिन काल में फलदायिनी हुई। निर्लज्ज को ॥१६॥ पृथ्वी में देश नाना । भ्रमण करते भूखा मरे ना । किसी एक स्थान पर जन । को भारी न होता ॥१७॥गोरज्य वाणिज्य कृषि । इनसे बडी प्रतिष्ठा भिक्षा की । भूलें न झोली । कभी भी ॥१८॥ भिक्षा समान नहीं वैराग्य । वैराग्य से परे नहीं भाग्य । वैराग्य न होने पर अभाग्य । एकदेशी ॥१९॥ कुछ भिक्षा है कहें ऐसे । रहे अल्पसंतोष से । बहुत लाने पर लें । मुठ्ठी भर ॥२०॥ सुखरूप भिक्षा मांगना । ऐसे निस्पृहता के लक्षण । मृद वाग्विलास करना। परम सौख्यकारी ॥२१॥ ऐसी भिक्षा की स्थिति । अल्प कही यथामति । भिक्षा बचाती विपत्ति । होने वाले समय में ॥२२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे भिक्षानिरूपणनाम समास दूसरा ॥२॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP