हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|अखंडध्याननाम| ॥ समास दसवां - मायानिरूपणनाम ॥ अखंडध्याननाम ॥ समास पहला - निस्पृहलक्षणनाम ॥ ॥ समास दूसरा - भिक्षानिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - कवित्वकलानिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - कीर्तनलक्षणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - हरिकथालक्षणनिश्चयनाम ॥ ॥ समास छठवां - चातुर्यलक्षणनाम ॥ ॥ समास सातवां - युगधर्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास आठवां - अखंडध्याननिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - शाश्वतनिरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - मायानिरूपणनाम ॥ अखंडध्याननाम - ॥ समास दसवां - मायानिरूपणनाम ॥ ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास दसवां - मायानिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ माया दिखे परंतु नष्ट होये । वस्तु ना दिखे परंतु नष्ट ना होये । माया सत्य लगे परंतु मिथ्या रहे । निरंतर ॥१॥ अभागा लेटकर चित । करे कल्पना अमित । मगर वह कुछ भी ना होता घटित । वैसी माया ॥२॥द्रव्यदारा का स्वप्नवैभव । नाना विलास हावभाव । क्षणिक लगे परंतु माव । वैसी माया ॥३॥ गगन में गंधर्वनगर । दिखते नाना प्रकार । नाना रूप नाना विकार । वैसी माया ॥४॥ लक्ष्मी राजविदूषक की । बोलने पर लगती सच्ची । मिथ्या प्रचीत उसकी । वैसी माया ॥५॥ दशहरे को स्वर्ण लुटाते । लोग कहते मगर उसमें काटे। परंतु सर्वत्र रिवाज होते । वैसी माया ॥६॥ मरे का महोत्सव करना । सती का वैभव बढ़ाना । श्मशान में जाकर रुदन करना । वैसी माया ॥७॥रखेल को कहते लक्ष्मी । दूसरी भारडोरी लक्ष्मी । तीसरी नाममात्र लक्ष्मी । वैसी माया ॥८॥ मूलतः बालविधवा नारी । नाम उसका जन्मसावित्री । कुबेर घूमे द्वारी द्वारी । वैसी माया ॥९॥ दशावतार में कृष्णा । उपजे जीर्ण वस्त्र की तृष्णा । नदी नाम पीयुष्णा । वैसी माया ॥१०॥ बहुरूपियों में रामदेवराव । ग्रामज्यों सम्मुख दिखाये हावभाव । या महाराज कहकर लाघव । वैसी माया ॥११॥ घर के मंदिर में है अन्नपूर्णा । और गृह में अन्न ही मिले ना । नाम से सरस्वती सीखे ना । उपले थापे ॥१२॥ कुत्ते का नाम व्याघ्र रखा । पुत्र को इंद्र नाम से पुकारा । कुरूप मगर मनाया । सुंदरा कहकर ॥१३॥ मूर्ख का नाम सकलकला । गधी का नाम कोकिला । अथवा नेत्र सुनयना का । फूटा जैसे ॥१४॥ मातगी का नाम तुलसी । चर्मिका का नाम काशी । अतिशूद्रिणी कहलवाती । भागिरथी नाम से ॥१५॥छाया और अधकार । एक होने पर वहा का विचार । व्यर्थ ही दिखे भासमात्र । वैसी माया ॥१६॥ कान अगुली जोड करतल । रवि रश्मी से दिखे ईंगुर । रम्य आरक्तरगकोलाहल । वैसी माया ॥१७॥ भगवा वस्त्र देखे जब मन । लगता लगी है अग्न । प्रत्यय लाये विवेचन । वैसी माया ॥१८॥ जल में अंगुलिया चरण कर की । छोटी लबी बारीक दिखती । जल में विपरीत तिरछी दिखती । वैसी माया ॥१९॥ चक्कर आने से लगे पृथ्वी घूमे । पीलियां से पीली दिखे । सनिपात अवस्था में अनुभव लिये । वैसी माया ॥२०॥ कोई एक पदार्थविकार । व्यर्थ ही दिखे भासमात्र । अनन्य का अन्य प्रकार । वैसी माया ॥२१॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसवादे मायानिरूपणनाम समास दसवां ॥१०॥ N/A References : N/A Last Updated : December 09, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP