वास्तुप्रकरणम्‌ - श्लोक ९१ ते ११२

अनुष्ठानप्रकाश , गौडियश्राद्धप्रकाश , जलाशयोत्सर्गप्रकाश , नित्यकर्मप्रयोगमाला , व्रतोद्यानप्रकाश , संस्कारप्रकाश हे सुद्धां ग्रंथ मुहूर्तासाठी अभासता येतात .


अथ वारादिशुद्धि : । शुभं स्याच्छुभवारे च पंचके न त्रिपुष्करे । आग्नेयधिष्ण्ये सोमे हि न कुर्यात्काष्ठरोपणम्‌ ॥९१॥

प्रणम्य वास्तुपुरुषं दिक्पालं क्षेत्रनायकम्‌ । द्वारशाखारोपणं च कर्त्तव्यं तदनंतरम्‌ ॥९२॥

शुभं निरीक्ष्य शकुनमन्यथा परिवर्जयेत्‌ । कुडयं भित्त्वान कुर्वीत द्वारं तत्र सुखेप्सुभि : ॥९३॥

अथ द्वारचक्रम्‌ । द्वारचक्रं प्रवक्ष्यामि यदुक्त ब्रह्मणा पुरा । सूर्यभाद्भचतुष्कं च द्वारस्योपरि विन्यसेत्‌ ॥९४॥

द्वे द्वे कोणे प्रदातव्यं शाखायुग्मे चतुश्वतु : ४ । अधश्व त्रीणि देयानि वेदा ४ मध्ये प्रतिष्ठिता : ॥९५॥

राज्यं स्यादूर्ध्वनक्षत्रे कोणेपूद्वासनं भवेत्‌ । शाखयोर्लभते लक्ष्मीरधश्चैव मृतिंलभेत्‌ । मध्येपु लभते सोख्यं चिंतनीयं सदा बुधै : ॥९६॥

( वारदिकी शुद्धि ) शुभवारोंमें श्रेष्ठ है पंचक , त्रिपुष्कर योग , कृत्तिका नक्षत्र , सोमवार यह निषिद्ध हैं ॥९१॥

प्रथम वास्तुपुरुषको , दिक्पाल क्षैत्रपालको प्रणाम करके शाखारोपण करना चाहिये ॥९२॥

और श्रेष्ठ शकुन देखके द्वारशाखा रोपना , यदि अशुभ शकुन हो तो उस दिन नहीं करना चाहिये और भींतको फोडके सुखकी कामनावालेको द्वार ( दरवाजा ) कदापि नहीं करना चाहिये ॥९३॥

( द्वारचक्र ) अब ब्रह्मजीका कहा हुआ द्वारचक्र वर्णन करते हैं , सूर्यके नक्षत्रसे ४ नक्षत्र द्वारके ऊपर लिखने और दो दो चारा कोणोंमें देवे , फिर चार चार दोनों शाखाओंपर रक्खे , तीन नीचे लिखे , चार बीचमें लिखे ॥९४॥९५॥

ऊपरके ४ नक्षत्र राज्यप्राप्ति करें , कोणोंके ८ घरको शून्य करे , शाखाओंके ८ लक्ष्मी करें और नीचेके ३ मृत्यु करें , बीचके ४ सुख करें इसको पण्डित सदा विचारें ॥९६॥

अथ गृहे मुख्यद्वारनियम : । कर्क ४ नक्र १० हरि ५ कुम्भ ११ गतेऽर्के पूर्वपश्चिममुखानि गृहाणि । तौलि ७ मेप १ वृष २ वृश्विक ८ याते दक्षिणोत्तरमुखानि च कुर्यात्‌ ॥ अन्यथा यदि करोति दुर्मतिव्यीधिशोकधननाशमश्नुते । मीन १२ चाप ९ मिथुनां ३ गना ६ गते कारपेन्न गृहमेव भास्करे ॥९७॥

अत्र विशेष : । अथ द्वारादौ वेधविचार : । कोणमार्गभ्रमिद्वारा कर्दमस्तंभभूरुहे । देवालयप्रकूपानां वेधो द्वारेऽथ संमुखे ॥९८॥

अथ वेधापवाद : । गेहोच्चे द्विपुणाधिक्ये प्रांतरे संस्थिते सति । नैव कोणेपु वेध : स्याद्भित्तिमार्गोत्तरेऽपि च ॥९९॥

अथ गृहोपस्करचुल्लीमुहूर्त्त : । पूर्वार्द्रारोहिणीपुष्पे उत्तरात्रितयेऽश्विभे । स्थितिर्महानसस्येष्टा गृहोपस्करणै : सह ॥१००॥

शनिवारे दरिद्रत्व शुक्रऽन्नं धनमेव च । गुरुवारे लभेल्लक्ष्मीर्बुधे लाभो भवेत्सदा ॥१०१॥

भौमवारे मृतिर्नार्या : सोमे धनक्षयो भवेत्‌ । रविवारे भवेद्रोगी चुल्लीस्थापनकर्मणि ॥१०२॥

अथ चुल्लीचक्रम‌ । सूर्यर्क्षाद्रस ६ पृष्ठभै : सुखयुतं वेदै : ४ शिरो मृत्युदं बाहौ नाग ८ सुसौख्यभोगमतुलं गर्भे शरै ५ र्नाशयेत्‌ । द्वौ द्वौ २ भुक्तिकरौ कलत्रमरणमंघ्रौ द्वयं २ च क्रमात्‌ चुल्लीचक्रविचारणं सुधिषणै : प्रोक्तं हि गर्गादिभि : ॥१०३॥

( मुख्यद्वारके मास ) कर्क मकरके सूर्यमें पूर्वके दखाजा करे , तुला मेषके सूर्यमें दक्षिणको करे , सिंह कुंभके सूर्यमें पश्चिमको करे और वृष वृश्विकके सूर्यमें उत्तरको द्वार करना शुभ है , यदि जो मूर्ख इससे विपरीत करे तो रोग , धननाशको प्राप्त होता है और मीन , धन , मिथुन कन्याके सूर्यमें द्वार कदाचित्‌ भी नहीं करना चाहिये ॥९७॥

कोना या मार्गके घुमावसे कर्दम , स्तंभ , वृक्ष देवालय , कूप इनमेंसे कोई द्वारके सम्मुख पडे तो द्वारवेध होता है ॥९८॥

घरके ऊँचाईके द्विगुणसे अधिक अन्तरपर यदि पूर्वोक्त वेधक हों तो कोणवेध नहीं लगता । तथा भित्तिका या मार्गका व्यवधान होनेपर भी वेध नहीं हो ॥९९॥

( चूल्डेका मु . ) पूर्वा . रो . पुष्य . उ . ३ , अश्वि . इन नक्षत्रोंमें पाक ( रसोई ) करनेकी सामग्री स्थापन करके चूल्हा स्थापन करना शुभ है ॥१००॥

शनिवारको चूल्हा करे तो दारिद्रय हो , शुक्रको अन्न धन मिले , गुरुको लक्ष्मी मिले , बुधको लाभ हो ॥१०१॥

मंगलवारको स्त्री मरे , सोमको धननाश हो , आदित्यवारको रोगी होवे ॥१०२॥

( चुल्लीचक्र ) सूर्यके नक्षत्रसे ६ नक्षत्र पीठके हैं सो सुख करें , चार शिरके मृत्यु करें , आठ बाहुओंके सुख करें , पांच गर्भके नाश करें , फिर दो नक्षत्र हाथोंके हैं सो भोग पदार्थ करें ; दो पगोंके हैं सो स्त्रीनाश करें । इस चुल्लीचक्र गर्ग आदि मुनियोंनें कहा है ॥१०३॥

अथ गृहे कूपकरणे फलम्‌ । भू्तिं पुष्टिं पुत्रहानिं पुरंध्रीनाशं मृत्युं सम्पदं शत्रुबाधाम्‌ । किंचित्सौख्यं शंभुकोणाद्धि कुर्यात्कूपो मध्ये गेहगार्थक्षयं च ॥१०४॥

अथ कूपारम्भनक्षत्राणि । हस्त : पुष्यो वासवं वारुणं च मैत्रं पित्र्यं त्रीणि चैवोत्तराणि । प्राजापत्यं चापि नक्षत्रमाहु : कूपारम्भे श्रेष्ठमाद्या मुनींद्रा : ॥१०५॥

अथ वारफलम्‌ । रविवारे जलं नास्ति सोमे पूर्णजलं भवेत्‌ । वालुका भौमवारे तु बुधे बहुजलं भवेत्‌ ॥१०६॥

गुरौ च मधुरं तोयं शुक्रे क्षारं प्रजायते । शनैश्वरे जलं नासि कीर्त्तितं वारजं फलम्‌ ॥१०७॥

अथ वाप्यारभे विशेषनक्षत्राणि । स्वात्यश्विपुष्यहस्तेषु मैत्रे चैव पुनर्वसौ । रेवत्यां वारुणे चैव वापीकर्म प्रशस्यते ॥१०८॥

( घरमें कूवा बनानेका विचार ) घरके ईशानमें कूवा हो तो विभव करे , पूर्वमें पुष्टि करे , अग्निकोणमें पुत्रनाश करे , दक्षिणमें स्त्रीनाश करे , नैऋत्यकोणमें मृत्यु करे , पश्चिममें संपदा करे , वायुकोणमें शत्रुकी बाधा करे , उत्तरमें किंचित्सुख करै और घरके वीचमें कूवा हो तो घरके धनका नाश करे ॥१०४॥

( अथ कूपके आरंभके नक्षत्र ) हस्त , पुष्य . ध . श . अनु . म . उ . ३ . रो . यह नक्षत्र कूवाके करानेमें श्रेष्ठ हैं ॥१०५॥

( वारफल ) आदित्यवारको कूवा करावे तो जल नहीं निकले , सोमवारको बहुत जल निकले , मंगलको बालू रेती निकले . बुधवारको बहुत जल होवे ॥१०६॥

गुरुको मीठा जल , शुक्रको खारा जल और शनिवारको बिलकुल जल नहीं निकले ॥१०७॥

( बावडीके नक्षत्र ) स्वा . अश्वि . पुष्य . ह . अनु , पुन , रे . श . इन नक्षत्रोंमें बावडीका आरंभ शुभ है ॥१०८॥

अथ कूपवापिचक्रम्‌ । कूपवाप्योस्तु चक्रं वै विज्ञेयं विबुधै : शुभम्‌ । रोहिणीगर्भमेतस्य त्रित्रिऋक्षाणि चंद्रभम्‌ ॥१०९॥

मध्ये पूर्वे तथाग्नेये याम्ये चैव तु नैऋते । पश्विमे चैव वायव्यां सौम्यशूलिदिशि क्रमात्‌ ॥११०॥

शीघ्रं जलं न जलं मध्यमजलमजलं बहुजलं च । अमृतजलं बहुक्षारं सजलं मध्यजलं क्रमाज्ज्ञेप्यम्‌ ॥१११॥

अथ लग्नानि । मत्स्ये १२ कुलीरे ४ मकरे १० ऽधिकं जलं तथैव चार्द्धं वृष २ कुंभयो ११ श्व । अलौ ८ च तौलौ ७च जलाल्पता मता शेषाश्व सर्वेऽजलदा : प्रकीर्त्तिता : ॥११२॥

( कूप बावडीका चक्र ) अब कूप बावडीका चक्र लिखते हैं - रोहिणी नक्षत्र से दिनके नक्षत्रतक तीन तीन नक्षत्र देखे , प्रथम ३ नक्षत्र मध्यके हैं , सो उनमें शीघ्र जल आवे तीन पूर्वके हैं उनमें जल नहीं मिले , ३ अग्निकोणमें मध्यम जल होवे , ३ दक्षिणकोणमें निर्जल रहे ३ नैऋत्यकोणमें बहुतजल निकले , ३ पश्विमके नक्षत्रोंमें अमृत जल आवे , ३ वायुकोणमें खारा जल निकले , उत्तरके ३ में शीघ्र जल और ईशानके ३ नक्षत्रोंमें मध्यूम जल निकले ॥१०९॥११०॥१११॥

( लग्नविचार ) मीन , कर्क , मकर इन लग्नोंमें बहुत जल हो , वृष , कुंभ , वृश्चिक , तुलामें थोडा जल रहे और मेष , मिथुन , सिंह , कन्या , धन इन लग्नोंमें कूवें , बावडी तालाबका आरंभ करे तो जल नहीं रहे ॥११२॥

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Last Updated : November 11, 2016

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