संक्षिप्त विवरण - नाडीचक्र का रहस्य

कुण्डलिणी की सात्त्विक और धार्मिक उपासनाविधि रूद्रयामलतन्त्र नामक ग्रंथमे वर्णित है , जो साधक को दिव्य ज्ञान प्रदान करती है ।


षट्‌चक्र का निरुपण करते यहाँ नाडियों के सम्बन्ध समझ लेना चाहिए कि मेरुदण्ड के बाहर वाम भाग में चन्द्रात्मक इडा नाडी और दक्षिण भाग में सूर्यात्मक पिंगला नाडी अवस्थित है । मेरुदण्ड के मध्य भाग में वज्रा और चित्रिणी नाडी से मिली हुई त्रिगुणात्मिका सुषुम्ना नाडी का निवास है । इनमें सत्त्वगुणात्मिका चित्रिणी चन्द्ररुपा है , रजोगुणात्मिका वज्रा सूर्यरुपा है और तमोगुणात्मिका सुषुम्ना नाडी अग्निरुपा हैं । यह त्रिगुणात्मिका नाडी कन्द के मध्य भाग में सहस्त्रार -पर्यन्त विस्तृत है । इसका आकार खिले हुए धतूरे के पुष्प के सदृश है । इस सुषुम्ना नाडी के मध्य भाग में लिंग से मस्तक तक विस्तृत दीपशिखा के समान प्रकाशमान वज्रा नाडी स्थित है । उस वज्रा नाडी के मध्य में चित्रिणी नाडी का निवास है । यह प्रणव से विभूषित है और मकडी के जाले के समान अत्यन्त सूक्ष्म आकार की है । योगी ही इसको योगज ज्ञान से देख सकते हैं ।

मेरुदण्ड के मध्य में स्थित सुषुम्ना और ब्रह्मनाडी के बीच में मूलाधार आदि छः चक्रों को भेद कर यह नाडी सहस्त्रार चक्र में प्रकाशमान होती हैं । इस चित्रिणी नाडी के मध्य में शुद्ध ज्ञान को प्रकाशित करने वाली ब्रह्म नाडी स्थित है । यह नाडी मूलाधार स्थित स्वयम्भू लिंग के छिद्र के सहस्त्रार में विलास करने वाले परमशिव पर्यन्त व्याप्त है । यह नाडी विद्युत् ‍ के समान प्रकाशमान है । मुनिगण इसके कमलनाल के तन्तुओं के समान अत्यन्त सूक्ष्म आकार का मानस प्रत्यक्ष ही कर सकते हैं । इस नाडी के मुख में ही ब्रह्मद्वार स्थित है और इसी को योगीगण सुषुम्ना नाडी का भी प्रवेश द्वार मानते हैं ।

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Last Updated : March 28, 2011

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