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चन्द्र n. अत्रि तथा अनसूया का पुत्र । यह सोम नाम से मी प्रसिद्ध था [भा ४.१३] ;[म.शां. २००.२४] । इसे सूर्य तथा भद्रा का पुत्र भी कहा गया है । यह स्वायंभुव मन्वन्तर में पैदा हुवा था [म.आ.६०.१४] । इसके जन्म की अनेक आखायिकाएं प्राप्त है । अत्रि ने दसों दिशाओं से इसे उत्पन्न किया [विष्णुधर्म, १.१०६] ;[स्कंद.४.१.१४] । यह अत्रि की ऑंखों से उत्पन्न हुवा [ह.वं. १.२५, ६-९] ;[वायु. ९०.५] । चन्द्र तथा आकाश में स्थित दोनों एक ही है । दक्ष प्रजापति की सत्ताईस कन्यायें इसे पत्नीरुप दी गयी थी । चन्द्र की इन सत्ताईस पत्नियों के नाम बाद में सत्ताईस नक्षत्रों को प्राप्त हुए [म.आ.६०.१२, १५] ;[ह. वं. १.२५.२२] ;[स्कंद. ७.१.२०] । पृथ्वी की औषधि वनस्पति, चन्द्र से प्रभावित होने के अनेक निर्देश प्राप्त है । इसने तपस्या करने पर, इसकी ऑखों से सोमरस टपकने लगा । इसीसे सब ओषधियॉं उत्पन्न हुई [स्कंद.७.१.२०] । इसका क्षय होने पर पृथ्वी की ओषधि वनास्पतियॉं सूख गयी [म.श.३४] । इसने अमृत दे कर अनाथ मारिषा की रक्षा की । इन सब कथाओं से चन्द-चन्द्रमा रुपक को पुष्टि मिलती है । चन्द्र के सत्ताईस पत्नियों में, रोहिणी पर इसकी विशेष प्रीति थी । यह न सह कर, इसकी अन्य स्त्रियों ने अपने पिता दक्ष के पास शिकायत की । दक्ष ने चन्द्र को समझाया । परंतु कुल लाभ नहीं हुआ । दक्ष ने चन्द्र को शाप दिया कि, तुम्हें क्षयरोग हो जावेगा । क्षय से चन्द्र क्षीण लगा । उसका दुष्परिणाम पृथ्वी की ओषधि वनस्पतियों पर हुआ । देवों को मजबूरी से दक्ष के पास प्रार्थना करनी पडी । दक्ष ने कहा, ‘चंद्र का पंद्रह दिन क्षय तथा पंद्रह दिन वृद्धि होगी, परंतु उसके लिये चन्द्र को सब पत्नियों की ओर समान ध्यान देना पडेगा । पश्चिम सागर के पास सागरमुख में स्नान करना होगा’। वहॉं स्नान करने के बाद चन्द्र को पूर्ववत् कान्ति प्राप्त हुई । इसीलिये इस क्षेत्र को प्रभास नाम प्राप्त हुआ [म.श.३४] । शशपानतीर्थ पर देव तथा दैत्यो ने अमृतपान किया । वहॉं कुछ देरी से जाने के कारण, इसे अमृत प्राप्त नहीं हुआ । वहॉं का तीर्थ लेने के लिये देवों ने इसे कहा । एक खरगोश उस तीर्थ का प्राशन कर रहा था । उसेभी इसने खा लिया । वह अभी भी इसके उदर में है । [स्कंद.७.१.२५८] । अत्रिपुत्र सोम यह चन्द्र का ही नामांतर है । एकबार सोम अत्यंत बलिष्ठ हुआ । राजसूययज्ञ कर के इसने त्रैलोक्य को जीत लिया । बृहस्पति की पत्नी तारा का जबरदस्ती हरण कर लिया । उसके लिये तारकामय से बहुत बडा युद्ध हुआ । ब्रह्मदेव ने मध्यस्थता की । इसने तारा को वापस किया । परंतु वह गर्भवती थी । बृहस्पति ने तारा को गर्भ का त्याग करने के लिये कहा । तब तारा ने एक वृक्ष पर उसे छोड दिया । वह गर्भ अत्यंत तेजस्वी था । यह देख कर पुनः बृहस्पति तथा चन्द्र लडने लगे । तब तारा ने कहा कि, ‘गर्भ चन्द्र का है’ । वह गर्भ चन्द्र को दिया गया । यही बुध हैं । यही से चन्द्रवंश प्रारंभ हुआ [भा.९. १४] ;[ह.वं. १.२५] ;[पद्म. पा. १२] ;[ब्रह्म ९] ;[मत्स्य. २३] ;[दे. भा.१.११] ;[वायु. ९०.२-९] । सोमवंश का प्रथम राजा सोम ही था । इसकी पत्नी रोहिणी । इसकी राजधाधी प्रयाग थी । (पद्म. उ. १५६. सोम तथा पुरुरवस् देखिये) । बदरिकाश्रम में तप कर के इसने ग्रहाधिपत्य प्राप्त किया [स्कंद.२.३.७] । इसने उमासहित सोम की आराधना की, इसलिये इसे सोम नाम प्राप्त हुआ [स्कंद. ४.१.१४] । धर्म प्रजापति को वसु नामक स्त्री से उत्पन्न अष्टवसुओं में से एक का नाम सोम है [म.आ.६०.१७] ;[लिंग. ६१] । यह वैवस्त मन्वन्तर का था । पीछे वर्णित सभी कथा इसीकी होनी चाहिये ।
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चन्द्र n. भारत का प्राचीन इतिहास सोम एवं सूर्यवंश का ही इतिहास है । सोम चंद्र का नामांतर है । सोम तथा सूर्य इन दोनों वंशों का मूलपुरुष वैवस्वत मनु है । सूर्यवंश वैवस्वत मनु के पुत्र से शुरु होता है । सोमवंश उसकी कन्या इला से प्रारंभ होता है । वैवस्वत मनु की कन्या इला सोमपुत्र बुध से ब्याहीं थी । उसीसे पुरुरवस्-आयु-नहुष-ययाति तक का वंशविस्तार हुआ । इसे ही पुरुरवस् वा ऐल वंश कहते है । पुरुरवस्पुत्र अमावसु से कान्यकुब्ज में अमावसुवंश शुरु हुआ । आयुपुत्र वृद्धशर्मन् वा क्षत्रवृद्ध से काश्य वा काशिवंश का प्रारंभ हुआ । रजिवंश अनेनस्वंश तथा रंभवंश ये मी आयुवंश की उपशाखाएं हैं । क्षत्रवृद्ध का द्वितीय पुत्र प्रतिक्षत्र था । उसीसे पुरुरवस् (ऐल) वंश की एक अलग उपशाखा निर्माण हुई! नहुषपुत्र ययाति के अनु, पूरु, द्रहयु, तुर्वसु एवं यदु नामक पॉंच पुत्र थे । इन पॉंच पुत्रों से पुरुरवस वंश की पॉंच उपशाखाएं निकली । ये उपशाखाएं इस प्रकार है---- (१) तुर्वसुवंश---यह दुष्यन्त के समय पुरुवंश मे सन्मीलित हुवा । (२) पूरुवंश---अजमीढ, कुरु, चेदि, जह्रु, द्विमीढ, नील । (३) अनुवंश---उशीनर (केकय, मद्रक), तितिक्षु (अंग. वंग, कलिंग, सुह्म, पुंड्र) । (४) यदुवंश---अनमित्र, अंधक, कुकुर, क्रोष्टु, ज्यामध, भजमान, रोमपाद, वसुदेव, विदर्भ, विदूरथ, विष्णु वृष्णि, सहस्त्रजित्, सात्वत हैहय । (५) द्रुह्युवंश---द्रुह्यु का वंश पुराणों में मिलता है । उसकी शाखाएँ नहीं है । सूर्यवंश की विस्तृत समीक्षा के लिये विवस्वत देखिये ।
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चन्द्र [candra] a. a. [चन्द् णिच् रक्] Ved.
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Glittering, bright, shining (as gold).
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