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साधवो न हि सर्वत्र चंदनं न वने वने

   
Script: Devanagari

साधवो न हि सर्वत्र चंदनं न वने वने

   ज्या प्रमाणें प्रत्येक रानांत चंदन होत नाहीं त्याप्रमाणें जिकडे तिकडे कांहीं साधु सांपडत नाहीं
   खरे साधु क्वचित कोठें असतात. शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे l साधवो नहि सर्वत्र चंदनं न वने वने ll

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साधवो न हि सर्वत्र चंदनं न वने वने      न न   सर्वत्र   ن(न)   वने   शैले शैले न माणिक्यं   हि   काम न आना   न हि वंध्या विजानति गुर्वीं प्रसववेदनां।   गुणाः सर्वत्र पूज्‍यन्ते   बाल बाँका नहीं करना   कामी न येणे   न देवाय न धर्माय   न भूतो न भविष्यति   न पुत्रो न पुत्री   न नीचो यवनात्परः   अप्रतिहत   न बिगुमा   व्यंजनाक्षर न   व्यञ्जनाक्षर न   न अक्षर   न व्यंजन   कफी न   गोबाय न   गौथुम न   संग्रा न   दालान न   जथुम न   बांग्ला न   बिखुमजोनि न   लाइफां न   रान्दिनि न   फाक्का न   न उष्टावलेला   न कपलेला   न गायसन   न गैजारङै   न जोखलेले   न पाहण्याजोगा   न बानायनाय   न मालिक   न रैखागिरि   पारलामेन्ट न   पन्चायत न   न बिगोमाजो   न लोटलेला   न नेग्रा   न भोगलेला   न मागता   न मोजलेला   न लुनाय   न उतरणें   न खाण्याजोगा   न गायसनजा   न बां   बायखोन्दा न   कामातुराणां न भयं न लज्‍जा।   अर्थातुराणां न पिता न बंधुः   बांला न   न तुटणारा   न बोलणे   आफाद न   अट्टालिखा न   थालानै न   बिहावनि न   लिर(न)   न उडणारा   न कळलेला   न कापलेला   न केलेला   न खाल्लेला   न चाखलेला   न तासलेला   न तोललेले   न थांबविण्याजोगा   न नमलेला   न नांगरलेला   न पाहण्यासारखा   न फसं   न बरसणारा   न भरलेला   न मस्तवलेला   न मापलेला   न वापरलेला   न समजणारा   न सांगण्याजोगा   दोनथुमग्रा न   न बिगोमा   न बेंग्रा   आलासि-न   खासोर न   संसद न   मोब्लिब न   फावथाइ न   न घडण्याजोगा   न स्त्रीस्वातन्त्र्यमर्हति।   हाथरखि न   न गैजारङि   वारा न घेणें, न पडूं देणें   
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