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नाहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः

   
Script: Devanagari

नाहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः

   आळसानें कांहीं मिळत नाहीं. झोंपलेल्या सिंहाच्या तोंडांत श्वापदें कांहीं आपोआप येऊन पडत नाहींत, त्याला तीं मारुन खावीं लागतात. याकरितां प्रत्येकानें श्रम करणें अवश्य आहे. सबंध श्लोक
   उद्यमेन हि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥-हितोपदेश.

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नाहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुखे मृगाः   ब्रह्मदेवाचीं मुखे   करे तो बीस पचीस, नाहि तो चक्की लेकर पीस   निजल्या सिंहाच्या तोंडी, श्वापदें आपण न घालितीं उडी   सुप्त   सिंहध्वनिः   सिंहशावः   सिंह   stomata   ostia   पदचिह्नम्   विषदन्तः   चर्म्मरेखा   खादय्   कफः   विकलः   श्मश्रुः   वक्त्रपट्टः   जम्भ्यः   मुखपाकः   मुखभगा   मत्स्यकण्टकः   अप्रशिखा   अशोकचक्रम्   आक्रमणम्   सिंहः   निडे   नीडे   अवघ्यांची मति, एकसारखी नसती   पिंडे पिंडे मतिर्भिन्ना   उच्चारणस्थानम्   ऊर्ध्वकः   पुतकम्   सर्वतोमुख   तोदनम्   मुखतस्   मेचकः   पक्ष्मन्   पियाल   प्रसृप्   मृग   आस्वादनम्   सादृश्यम्   अप्रसन्नता   गाढिका   त्रपुः   पंचमुखी   van   खड्गः   गोलिका   संभृ   दन्तः   द्विमुख   थांग   soon   शुण्डा   अरुंषिका   धनकण पुरें धन, भाडींकुंडीं अर्धें धन, आणि रोखें पुर्जे रावणाची खाई   निर्ऋति   पूर्   prefix   शॄ   असम   अपशब्द   अदन्त   दंष्ट्रा   चर्व्   निटाओ   पूरित   प्रसन्नता   कस्तूरी   हम   अहन्   संग   व्यङ्ग   आचम्   चिल्ल   नर्मन्   निटाई   विश्वास   beat   जर्जर   आहार्य   अङ्कुश   वीथि   जिह्वा   निर्विकार   सृ   अक्षि   बन्धुर   dry   भिद्   escape   सूचि   कालिय   तिलक   लव   मुख्य   strike   शेष   
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