मानसागरी - अध्याय २ - केतुभावफल

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.


जिसके लग्नमें केतु पडे उसके बांधवजन क्लेशकर्त्ता हों और वह मनुष्य दुष्टजनोंसे भय ( डर ) और व्याकुलता पावे स्त्रीपुत्रादिकोंकी चिन्ता रहै और उद्वेगभी हो, शरीरमें अनेकप्रकारसे वायुरोगोंकी पीड रहै । जिसके दूसरे स्थानमें केतु पडै उसे राजाओंकी तरफसे दुविधा धोखा आदि रहै, धन और अन्नादिका नाश हो, मुखरोगसे पीडित होवे, कुटुम्बसे विरोध रहै, सत्कारसे वचन न कहै परंतु जो केतु अपने घरका होय तो अनेकप्रकारके आनन्दको देता है । जिसके तीसरे स्थानमें केतु स्थित होवै उसके शत्रुओंका नाश हो, विवाद अर्थात् गालीगुफतार आदि खोटे वचनोंसे कलह होवै और धनके भोगका आनन्द तेज आदि बहुत हो, हितकारी बांधवजनोंका नाश हो सदाकाल हाथोंमें पीडा रहै, भय घबराइट फिकर व्याकुलता आदि नित्यप्रति लगे रहैं । जिसके चौथे स्थानमें केतु पडै उसे कदाचित् भी माताका सुख न मिलै और अपने हितकारी बान्धवों तथा मित्र आदिकोंका भी सुख न मिलै, पिताके प्राप्त कियेहुए मन्दिर और धन आदि पदार्थोका नाश हो, हमेशा बहुत समयतक अपने घरमें न रहै किन्तु परदेशमें रहै और चित्तको व्यग्रता अर्थात् चिन्ता क्लेश आदि रहै परन्तु जो केतु उच्चघरका होकर पडै तो बन्धुवर्ग आदि सर्वप्रकारका सुख मिलता है ॥१-४॥

जिसके पंचमभावमें केतु पडे उसके शरीरमें घात अर्थात् शस्त्र आदि लगनेकें घावका और वातरोग आदिका कष्ट रहै, अपनी ही बुद्धिकी भूलसे क्लेश पावै, पुत्रोंकी सन्तान थोडी होवै, परन्तु यह मनुष्य दासकर्म ( नौकरीआदि ) करै और बलवान् होवै, जिसके छठे स्थानमें केतु पडै उसके मामा और शत्रुओंका मानभंग होवै, चौपाये जीवोंका सुखनाश हो, मनका साहस तुच्छ ( थोडा ) हो शरीर सदाकाल रोगरहित रहै, रोगोंका नाश होजाय । जिस मनुष्यके सातवें भावमें केतु पडै उसे मार्ग अर्थात् परदेश चलनेकी बहुतसी चिन्ता रहै अपने इकठ्ठा कियेहुये धनक नाश हो अथवा जलसे भय हो, स्त्री आदिकोंको पीडा हो, खर्च बहुत रहै, चित्तमें क्रोध हो परन्तु जो केतु वृश्चिकराशिका होकर पडै तो सदाकाल लाभकारी जानना । जिसके अष्टम स्थानमें केतु पडै उसकी गुदा बवासीर आदि रोगोंसे पीडित रहे सवारी आदिकोंसे भय हो अपना द्रव्यबी अपने काम न आवे परन्तु जो केतु अष्टमस्थानमें वृश्चिक, कन्या मिथुन आदि राशियोंमेंसे किसी राशिका पडै तो सदाकाल लाभकारी होता है ॥५-८॥

नवमभावमें केतु पडे तो क्लेशोंका नाश करै और वह मनुष्य पुत्रकी इच्छा बहुत रक्खे, म्लेच्छोंसे भाग्यकी वृद्धि हो, भ्राताओंको पीडा रहै, भुजाओंमें रोग हो और जो तप दान आदि कार्य करै तो उसमें उसकी हँसी होवै । जिसके जन्मसमयमें केतु दशमभावमें पडे उसे पिताका सुख नहीं मिलता है और वह बुरे भाग्यवाला, कुरुप, कमवरुत, सदाकाल दुःखका भाजन ( बरतन ) होता है, सवारियोंके कारण दुःखित रहता है परन्तु जो केतु मेष, वृश्चिक, कन्या आदि राशियोंमेंसे हो तो शत्रुओंका नाश होता है जिसके ग्यारहवें स्थानमें केतु पडै वह मनुष्य सुंदर भाग्यवाला अतिविद्यावान्, स्वरुपवान्, देखनेयोग्य, सुंदर वस्त्र पहननेवाला, सुंदर तेजवान् होता है. असलमें ग्यारहवें स्थानका केतु संपूर्णही लाभ करता है परंतु भयसे पीडित रहता है और संतान भाग्यहीन होती है । जिसके बारहवें स्थानमें केतु पडे उसके नाभीके नीचे गुदा लिंग पैर आदिकोंमें और नेत्रोंमें पीडा रहे. मामासे कुछ सुख न मिलै, परंतु यह मनुष्य सदाकाल राजाओंके समान रहै, उत्तम कामोंमें धन खर्च करै और युद्धमें शत्रुओंको जीतै अर्थात् उनका नाश करै ॥९-१२॥ इति केतुभावफलम् ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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