मानसागरी - अध्याय २ - आरंभ

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.


मूर्खलोग विना स्पष्टग्रहोंके दशा तथा अन्तर्दशाकोंका जो फल कहते हैं वे उपहासको प्राप्त होजाते हैं ॥१॥

तीन सहस्त्र चौवालीस ३०४४ विक्रमसंवत्सरमें युक्त करनेसे अयनवल्ली तथा कलिगत भाग होता है ॥२॥

जिस दिन अयनांशसहित सूर्य राशि अंश कला विकलासे शून्य होय उस दिन मध्याह्नके समय समान भूमिपर बारह अंगुलका शंकु रक्खे । जो छाया पडे उसको पलभा कहते हैं. तिस पलभाको तीन स्थानमें लिखकर क्रमसे १०।८।१० से गुणा करे, अन्तके तीसरे गुणन फलमें तीन ३ का भाग दे, तब क्रमसे तीन चार- खण्ड होते हैं ॥३॥

उदाहरण- लखीमपुर ( खीरी ) की पलभा ६ अंगुल है इसको पहिले १० से गुणा किया तब ६० अंगुल प्रथम चरखण्ड हुआ । फिर फलभा ६ को ८ से गुणा किया तब ४८ अंगुल द्वितीय चरखंड हुआ फिर पलभा ६ अंगुलको १० से गुणा किया तब ६० अंगुल हुआ । इसमें ३ का भाग दिया तब बीस अंगुल तीसरा चरखण्ड हुआ ॥

केन्द्र किंवा ग्रहादिक तीन राशिकी अपेक्षा कम हो तो भुज होता है और तीन राशिकी अपेक्षा अधिक होय तो छः राशिमें घटाकर जो शेष रहे वह भुज होता है । नौसे अधिक होय तो बारह राशिमें घटाकर जो शेष रहै वह भुज होता है । तीन राशिमें भुज घटाकर जो शेष रहै सो कोटि होती है ॥४॥

शालिवाहन शकमें चारसौ पैंतालीस ४४५ घटादे जो शेष रहै वह कला होताहै, उनमें साठका भाग दे जो लब्धि मिले सो अयनांश होता है । तात्कालिक अयनांश करनेके निमित्त चैत्र शुक्ल प्रतिमास जितने मात गत हों उतने गुणित पांच पलादि युक्त करदेवें अर्थात् प्रतिमास ५ पांच पल अयनांशा बढता है तो तात्कालिक अयनांशा होता है ॥५॥

 

अथायनांथोदाहरणम् -

इष्ट शके १८२३ में ४४५ घटाये तो १३७८ शेष रहे । इनमें ६० का भाग लगाया, भाग लेनेसे लब्ध २२ अंश ५८ कला ये अयनांश हुआ, तात्कालिक लानेके निमित्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदासे वैशाखकृष्ण अमातक एक मास हुआ तो ५ विकला अयनांशमें युक्त किया । तव तात्कालिक अयनांश २२।५८।५ भया ॥

 

 

स्पष्ट सूर्यमें अयनांश युक्त करै तदनंतर सायनरविकी भुज लानेकी रीतिके अनुसार भुज लावे । बह भुज यदि राशि शून्य होय तब राशिको छोडकर केवल अंशादि मात्रको स्वदेशीय प्रथम चरखंडसे गुणा करे और यदि भुजमें एक राशि होय तो राशिको छोडकर अंशादिको द्वितीयचरखंडसे गुणा करै और यदि भुजमे दो राशि होंय तो राशिको छोडकर केवल अंशादिमात्रको स्वदेशीय तृतीय चरखंडसे गुणा करे जो गुणनफल होय उसमें ३० तीसका भाग देय जो लब्धि मिलै उसमें जिस चरखंडसे गुणा किया हो उससे पहला चरखण्ड जोडदेवे । तब यह चरसंज्ञक होता है. यदि सायनांशरवि मेषादिक छः राशि होय तो पैंतालीस घटीमें चरके घडी पलादि युक्त करदेय और तुलादि छः राशिके भीतर होय तो ऋणकर देवे तब स्पष्टमिश्रमानके घटीपलादि होते हैं । मिश्रमानमें तीस ३० घटाय देय शेषको दूना करै अथवा मिश्रमानको दूना करके साठ ६० हीन करदेय तो दिनमान होता है । एवं साठ ६० में मिश्रमान घटावे अथवा मिश्रमानमें दिनमान घटावे शेषको दूना करै तो रात्रिमान होता है ॥६॥

 

जिस दिन जिस मासमें मकर तथा कर्कराशियोंका अयनप्रवेश हो उस दिनसे वर्तमानदिनतक गिन अर्थात् मकरादि छः राशिके अंदर हो तो मकरके अपनसे और जो कर्कादि छः के भीतर हो तो कर्कसे गिने । फिर जितने गतमास हों उनकी तीस ३० से गुणाकार दिन करे तदनंतर तीनसे गुणाकर वर्तमानमासके वर्तमान दिनतक जितने दिन हों युक्त करदेय फिर पंद्रहसौ तीस और मिला करके साठका भाग देय तो, लब्धि घटिकादि दिनमान या रात्रिमान होगा अर्थात् मकरादिमें दिनमान और कर्कादिमें रात्रिमान होता है । साठमें दिनमान या रात्रिमान हीन करै तो क्रमसे शेष रात्रिमान दिनमान होता है ॥७॥

मिश्रानयनोदाहरणम् ।

यहां जन्मदिनके निकट पंचांगस्थित ग्रह रविवार ३ तिथिको अर्धरात्रसमय है । तात्कालिक ग्रहादि स्पष्ट लानेके निमित्त मिश्रमान जानना आवश्यक है. इस कारण पंचांगास्थित स्पष्टसूर्य ००।८।३९।१ अयनांश २२।५८।५ युक्त किया तो राश्यादितो राश्यादिसायनरवि १।१।३७।६ हुआ; यह तीन राशिमें कम है इस कारण यही भुज हुआ, इस कारण अंशादि १।३७।६ को द्वितीय चरखंड ४८ से गुणा. क्योंकि, भुजमें एकराशि है तब ७७।४०।४८ घट्यादि भया, इनमें ३० का भाग दिया । तब लब्धि हुई २ विकला १७ प्रतिविकला द्वितीय चरखंडसे गुणाकिया था, इस कारण प्रथमचरखण्ड ६० में लब्धि विकलादि २।१७ युक्त किया । तब ६२।१७ यह चर हुआ, यह चर मेषादि है. इस कारण ४५ में युक्त किया तो ४६।२।१७ अर्थात् ४६ घ. २ पलपर मिश्रमान हुआ । अब मिश्रमान ४६।२ को दूना किया तब ९२।४ हुआ, इसमें ६० हीन किया तो शेष घट्यादि ३२।४ दिनमान हुआ. अथवा मिश्रमान ४६।२ में ३० हीन किया तब शेष रहा १६।२ इसको दूना किया तब घट्यादि वही ३२।४ दिनमान भया. मिश्रमान ४६ को ६० में घटाया । तब शेष १३ ।५८ रहा अथवा मिश्रमान ४६।२ में दिनमान ३२।४ हीन किया तब शेष वही १३।५८ रहा. इनको क्रमसे दूना किया तब एकही तुल्य घट्यादि २७।५६ रात्रिमान भया ॥

अथवा द्वितीयप्रकारेण-

यह वैशाख ४ मकरादिक है तो मकरकी संक्रांतिका अयन मार्गशुदी १३ का है । वहांसे गतमास ४ हुए । इनको ३० से गुणा १२० हुए । इनको ३ से गुणा तब ३६० हुए, इनमें वर्तमान वैशाखमासके दिन २२ युक्त किया । तब ३८२ भये इनमें १५३० मिलाया तब १९१२ हुए । ६० का भाग दिया तब घट्यादि ३१।५२ दिनमान भया । इसको ६० में हीन किया २८।८ रात्रिमान भया, यह स्थूल मत है ॥

 

तिथिपत्रमें जो सूर्यादिग्रह स्पष्ट किये होते हैं उनको प्रस्तार या पंक्ति कहते हैं । वह प्रस्तार जो इष्टकालसे आगे होवे तो प्रस्तारके वार घटी पलमें इष्टसमयका वार घटीपल घटादेय जो शेष रहै वही वारादि गतअवधि ऋणसंज्ञक जानना तथा जो इष्टकाल आगे होवे तो इष्टकालके वारादिमें प्रस्तारके वारादि घटावे । जो शेष रहै वही वारादि गतअवधि धन संज्ञक जाने । इसीको '' चालक '' कहते हैं । फिर ऋणचालन अथवा धनचालनको ग्रहकी गति ( अपनी अपनी गति ) से ( गोमूत्रिका क्रम करके ) गुणा करै, तदनंतर गुणन फलमें साठका भाग देवे जो लब्ध अंशकलादि होवै उसको पंचांगस्थितग्रहमें हीन वा युक्त करै अर्थात् ऋणसंज्ञक हो तो घटावै और धनसंज्ञकमें युक्त करै, तो वह तात्कालिक स्पष्ट ग्रह होता है । यहां वकगातिवाला ग्रह और राहु केतु इन सब ग्रहोंका चालन मागींग्रहोंसे विपरीत जानना अर्थात् धनचालनमें ऋण और ऋणचालनमें धन करै ॥८॥

ग्रहसाधनोदाहरणम् -

इष्टकाल जन्म समयका वारादि ०५।०४।२० है और पंक्तिस्थ वारादि ४।५०।३ इष्ट कालसे पीछे है । इस कारण यहां इष्टकालके वारादिमें प्रस्तारका वारादि घटाया तो शेष वारादि ००।१४।१७। धनचालन हुआ; इसको सूर्यकी गति ५८।२६ से गोमूत्रिका रीतिसे गुणा । तब विकलादि गुणन फल ८३४।३७।२४ हुआ. इसमें ६० का भाग दिया । तब लब्धि घटी १३ पल ५४ हुए । इसमें पंचांगस्थ सूर्य राश्यादि ००।८।३९।१ युक्त करदिया तो राश्यादि ००।८।५२।५५ स्पष्ट सूर्य तात्कालिक हुआ । इसी प्रकार मंगल आदि ग्रहोंकी गतिसे गुणा करके पूर्वोक्त रीत्यनुसार भौमादि ग्रहोंको तात्कालिक स्पष्ट करना ॥

तात्कालिकसूर्यादयः स्पष्टाः समजवाः

चन्द्रसाधनम् ।

जन्म समयमें जो नक्षत्र उसकी भुक्त ( व्यतीत ) घटियोंको भयात कहते हैं और भुक्त एवं भोग्य घटियोंको एकत्र करनेसे अर्थात् कुल नक्षत्र भभोग होता है । भयातकी घटियोंको साठसे गुणा देवे फिर गुणनफलमें भभोगसे भाग लेवे. भाग लेनेसे लब्ध तीन अंक जो आवे उसको साठसे गुणा कियेहुग्रे अश्विनी आदि गत नक्षत्रोमें जोड देवे । तदनन्तर दोसे गुणा देवे फिर गुणेहुयेमें नव ९ का भाग लेवे भाग लेनेसे अंशादि लब्धांक मिलेंगे. अंशोंमें तीस ३० का भाग देकर राशि बना लेनै इस प्रकर चन्द्रमा स्पष्ट होगा । गति लानेका प्रकार - ४८००० अडतालीस हजारको साठसे गुणा करै भभोगसे भाग लेवे तो गतिविगति लब्धि होवै ॥९॥

उदाहरण- जन्मसमय रोहिणीनक्षत्रका भुक्तभाव घ. ४२।१७ है यही भयात है और भोग्यभाग १४।३८ है। इन दोनोंको मिला तो भभोग ५६।५५ हुआ, यहां भयात ४२।१७ को ६० से गुणा किया तब २५३७ हुए । इसमें भभोग ५६।५५ का भाग दिया । तब लब्धि ४४।३४।२६ हुये; गतनक्षत्र कृत्तिका ३ को ६० से गुणा किया १८० हुये इनको युक्त किया तब २२४।३४।२६ हुये; इनको दूना किया तब ४४९।८।५२ हुये इनमें ९ का भाग दिया तब लब्धि अंशादि ४९।५४।१९ हुये । अंशोंमें ३० का भाग दिया तब स्पष्ट चन्द्रमा राश्यादि १।१९।५४।१९ हुआ; गति लानेके निमित्त ४८००० को ६० से गुणा तब २८८०००० हुये । भभोगासे भाग लिया तब लब्धि घट्यादि स्पष्ट चन्द्रगति ८४३।२० हुई ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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