मानसागरी - अध्याय २ - रविभावफल

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.


ग्रह फल

मनुष्यके शरीरसंबन्धी पदार्थ जिससे मालूम होते हैं वह ग्रहभावाध्याय विशेष रीतिसे अब कहता हूं ॥१॥

रविभावफल

जिसके जन्मकालमें सूर्य तनुभावमें स्थित हो वह बाल्यावस्थामें व्याधिकरके युक्त, नेत्ररोगसे दुःखी, नीचकी सेवामें मिलित, गृहस्थीसे रहित, भाग्यवान्, विकलही तरह भ्रमित और पुत्रपौत्रादिकरके हीन होता है ॥१॥

जिसके सूर्य धनस्थानमें होय वह पुत्र स्त्रीसे रहित, दुर्बलशरीरवाला, अतिदीन, रक्तनेत्रोंवाला, बुरे केशवाला हो और ताम्रके क्रयविक्रयसे धनवान्, गृहस्थीसे हीन और दुःखका भागी होता है ॥२॥

जिसके तीसरे भावमें सूर्य होय वह भाइयोंसे हीन अर्थात् भाई उसके मरजावें, मित्रोंका हित करनेवाला, पुत्र-स्त्रीकरके युक्त, धनवान्, धैर्ययुक्त, सहनशील, अधिक धनका विहार करनेवाला और स्त्रियोमें प्रीतिवाला होता है ॥३॥

जिसके सूर्य चतुर्थभावमें होय वह अनेक जनोंसे विहार करनेवाला, मधुरवाणीवाला, गानेबजानेमें अनुरक्त, समरका प्रधान, युद्धमें जिसकी भंग कभी न होय, बहुत धनवान्, कलत्रों और राजाओंको प्रिय होता है ॥४॥

जिसके सूर्य पंचमभावमें होय वह लडकोंका दुःखभागी, धनहीन, युवावस्थामें व्याधिसे युक्त, एक सुत ( पुत्र ) को उत्पन्न करनेवाला, अन्यस्त्रीवाला अथवा दूसरेके घरमें रहनेवाला, शूर, चपल बुद्धिवाला, विलासी, दुष्टकर्म करनेवाला और बुरे चित्तवाला होता है ॥५॥

जिसके सूर्य छठे भावमें होय वह योगशील, मतिवाला, अपने जनोंसे हित करनेवाला, जातिवर्गको आनन्द देनेवाला, दुर्बल स्त्रीवाला, सुन्दर मूर्तिवाला, विलासी, शत्रुओंको जीतनेवाला सुन्दर कर्मवाला और दृढ अंगवाला होता है ॥६॥

जिसके सूर्य सप्तमभावमें होय वह स्त्रीके विलासका सुख न पानेवाला, चंचल, दुष्टात्मा, समान ( पेट ) वाला और जिसका शरीर न अधिक दीर्घ न छोटा अर्थात् समान शरीरवाला, कपिलनेत्रोंवाला, पिंगल बावोंवाला और कुरुप होता है ॥७॥

जिसके सूर्य अष्टमभावमें पडे वह चंचल, शीलरहित, विद्वान्जनोंकी सेवा करनेवाला, सदा रोगकरके युक्त, विकल बहुत वार्ता करनेवाला, भाग्यकरके और शीलकरके रहित तथा रतिहीन, बुरे चाल चलनवाला, नीचोंकी सेवा करनेवाला और परदेशी होता है ॥८॥

जिसके सूर्य नवमभावमें स्थित होय वह सत्य बोलनेवाला, निंदित केशवाला, अपने कुलजनोंसे हित करनेवाला, देवता ब्राह्मणमें अनुरक्त, प्रथम अवस्था ( बालावस्था ) में रोगी, युवा अवस्थामें धैर्यवान्, बहुत धन करके युक्त, बडी उमरवाला और स्वरुपवान् होता है ॥९॥

जिसके सूर्य दशमभावमें होय वह तीव्र, गुणगण और सुखका भोगनेवाला, दानमें शीलवान्, अभिमानी, मृदुल छोटा कद, पवित्रतायुक्त, नृत्यगीतादिमें अनुराग करनेवाला, राजासे अधिक पूज्य और वृद्धावस्थामें रोगवान् होता है ॥१०॥

जिसके सूर्य ग्यारहवें भावमें स्थित होय वह बडा धनी, राजाके स्थानमें नौकरी करनेवाला, भोग करके हीन, गुणोंका जाननेवाला, दुर्बलशरीरवाला, धनकरके युक्त, स्त्रियोंके मनको चुरानेवाला, चपलमूर्ति और जातिवर्गको प्रसन्न करनेवाला होता है ॥११॥

जिसके सूर्य बारहवें भावमें स्थित होय वह जडमतिवाला, अधिक कामी, अन्यकी स्त्रीसे विलास करनेवाला, पक्षियोंको मारनेवाला, दुष्टचित्तवाला और कुत्सितरुपवाला होता है ॥१२॥

इति रविभावफलम् ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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