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निवेदन - तोसे अरज करुँ साँवरिया...

’निवेदन’ मे प्रस्तुत जो भी भजन है, वे सभी विनम्र भावोंके चयन है ।


तोसे अरज करुँ साँवरिया, मोसे मन नहिं जीत्यो जाय ।

मन मेरा यह चंचल भारी, छिन-छिन लेवे राड़ उधारी ।

तोड़ फेंक दे ज्ञान पिटारी, ना कछु पार बसाय ॥१॥

मन मेरा यह चंचल घोड़ा, सत्संगका मानत नहीं कोड़ा ।

ज्ञान ध्यानका लंगर तोड़ा, पल- पल में हिन हिनाय ॥२॥

मन हाथी नहीं काबू मेरे, न्हाय धोय सिर धूल बखेरे ।

महावत को भी नीचा गेरे, जरा नहीं भय खाय ॥३॥

कैसे राखूँ मन को बस में, मन कर रक्खा मुझको बस में ।

’तुलसी’ का मन विषय कुरस में, पल-पलमें ललचाय ॥४॥

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Last Updated : January 22, 2014

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