प्रायश्चित्तव्रत - व्रत ११ से १५

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


( ११ ) पर्णकृच्छ्र - नित्य स्त्रानसे पहले पञ्चगव्य - स्त्रान करके पहले ३ दिन उपवास, फिर ५ दिनतक प्रतिदिन पलास, गूलर, पद्म, बेल और कुश - इनके पत्तोंको जलमें उबालकर या इनमेंसे एक - एकको प्रतिदिन उबालकर पीनेसे ' पर्णकृच्छ्र ' होता है ।

पत्रैर्मतः पर्णकृच्छ्रः । ( मार्कण्डेय )

( १२ ) पद्मकृच्छ्र - पद्मके पत्तोंको उबालकर प्रतिदिन एक मास पीनेसे ' पद्मकृच्छ्र ' ४ होता है ।

पद्मपत्रैः पद्मकृच्छ्रः ।

( १३ ) पुष्पकृच्छ्र - पुष्पोंको उबालकर एक मास पीनेसे ' पुष्पकृच्छ्र ' ५ होता है ।

पुष्पैस्तत्कृच्छ्र उच्यते । "

( १४ ) फलकृच्छ्र - फलोंको उबालकर उनका जल एक मास पीनेसे ' फलकृच्छ्र ' ६ होता है ।

फलैर्मासेन क्वथितः फलकृच्छ्रो मनीषिभिः । "

( १५ ) मूलकृच्छ्र - उक्त वृक्षोंके मूलको उबालकर उसका जल एक मास पीनेसे ' मूलकृच्छ्र ' १ होता है । इन पर्ण, पद्म, पुष्प, फल और मूलोंका जल प्रतिदिन तैयार करना चाहिये । यह नहीं कि एक दिन इकट्ठा उबालकर पात्रमें भर ले और प्रतिदिन पीता रहे ।

१. मूलकृच्छ्रः स्मृतो मूलैः । ( मार्कण्डेय )

N/A

References : N/A
Last Updated : January 16, 2012

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP