वैशाख कृष्णपक्ष व्रत - कृष्णैकादशी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


कृष्णैकादशी -

वैशाख कृष्णकी एकादशीका नाम वरुथिनी है । इसका व्रत करनेसे सब प्रकारके पाप - ताप दूर होते हैं, अनन्त शान्ति मिलती है और स्वर्गादि उत्तम लोक प्राप्त होते हैं । व्रतीको चाहिये कि वह दशमीको हविष्यान्नका एक बार भोजन करे । कांस्यपात्र, मांस और मसूरदि ग्रहण न करे । फिर एकादशीको उपवास करे, उस दिन जूआ और निद्रा आदिका त्याग रखे । रात्रिमें भगवन्नाम - स्मरणपूर्वक जागरण करे और द्वादशीको मांस - कांस्यादिका परित्याग करके यथाविहित पारणा करे । ( वास्तवमें द्यूतक्रीड़ा आदिका तथा मांस आदिका सदा ही त्याग करना चाहिये ) ।

१. कांस्यं मांसं मसूरान्नं चणकं कोद्रवांस्तथा ।

शाकं मधु परान्नं च पुनर्भोजनमैथुने ।

वैष्णवो व्रतकर्ता च दशम्यां दश वर्जयेत् ॥

२. द्यूतक्रीडां च निद्रां च ताम्बूलं दन्तधावनम् ।

परापवादपैशुन्यं स्तेयं हिंसां तथा रतिम् ।

क्रोधं चानृतवाक्यं च एकादश्यां विवर्जयेत् ॥

३. मांसादिकं च पूर्वोक्त द्वादश्यामपि वर्जयेत् । ( भविष्योत्तरपुराणे )

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Last Updated : January 16, 2009

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