सायं-संध्या

रात या दिनमें जो भी अज्ञानवश विकर्म हो जायँ, वे त्रिकाल-संध्या करनेसे नष्ट हो जाते है।


(प्रातः संध्याके अनुसार करे)

उत्तराभिमुख हो सूर्य रहते करना उत्तम है । प्राणायामके बाद 'ॐ सूर्यश्च मेति०' के विनियोग तथा आचमन-मन्त्र के स्थानपर नीचे लिखा विनियोग तथा मन्त्र पढ़कर आचमन करे ।

विनियोग - ॐ अग्निश्च मेति रुद्र ऋषिः प्रकृतिशन्दोऽग्निर्देवता अपामुपस्पर्शेन विनियोगः ।

आचमन - ॐ अग्निश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम् । यदह्ना पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्‌भ्यामुदरेण शिश्ना अहस्तदवलुम्पतु । यत्किंच दुरितं मयि इदमहमापोऽमृतयोनौ सत्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा ।

(तै० आ० प्र० १० अ० २४)

अर्घ्य - पश्चिमाभिमुख होकर बैठै हुए तीन अर्घ्य दे ।

उपस्थान - चित्रके अनुसार दोनो हाथ बंदकर कमलके सदृश करे ।

शिवरूपा गायत्रीका ध्यान -

ॐ सायाह्ने शिवरूपां च वृद्धां वृषभवाहिनीम् ।

सूर्यमण्डलमध्यस्थां सामवेदसमायुताम् ॥

सूर्यमण्डलमें स्थित वृद्धारूपा त्रिशूल, डमरू, पाश तथा पात्र लिये वृषभपर बैठी हुई सामवेदस्वरूपा गायत्रीका ध्यान करे ।

आशौचमें संध्योपासनकी विधि

महर्षि पुलस्त्यने जननाशौच एवं मरणाशौचमें संध्योपासनकी अबाधित आवश्यकता बतलायी है । किंतु आशौचमें इसकी प्रक्रिया भिन्न हो जाती है । शास्त्रोंने इसने मानसी संध्याका विधान किया है । इसमें उपस्थान नही होता । यह संध्या आरम्भसे सूर्यके अर्घ्यतक ही सीमित रहती है । यहाँ दस बार गायत्रीका जप आवश्यक है । इतनेसे संध्योपासनका फल प्राप्त हो जाता है ।

एक मत यह है कि इसमें कुश और जलका भी प्रयोग न हो । निर्णीत मत यह है कि बिना मन्त्र पढ़े प्राणायाम करे, मार्जन-मन्त्रोंका मनसे उच्चारण कर, मार्जन करे । गायत्रीका सम्यक् उच्चारण कर सूर्यको अर्घ्य दे । फिर पैठीनसिके अनुसार सूर्यको जलाञ्जलि देकर प्रदक्षिणा और नमस्कार करे । आपत्तिके समय, रास्तेमें और अशक्त होनेकी स्थितिमें भी मानसी संध्या की जाती है ।

संध्या-विधि समाप्त

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Last Updated : May 24, 2018

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