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सूत्रधर

सुमित्रानंदन पंत - सूत्रधर

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


तुम धन्य, वस्त्र व्यवसाय कला के सूत्रधार,

बर्बर जन के तन से हर वल्कल, चर्म भार,

तुमने आदिम मानव की हर नव द्वन्द्व लाज,

बन शीत ताप हित कवच, बचाया जन समाज ।

तकली, चरखे, करघे से अब आधुनिक यंत्र

तुम बने यंत्र बल पर ही मानव लोक तंत्र

स्थापित करने को अब मानवता का विकास

यंत्रो के संग हुआ,सिखलाता नृ-इतिहास ।

जड़ नही यंत्र वे भाव रूप संस्कृति द्योतक

वे विश्व शिराएँ, निखिल सभ्यता के पोषक ।

रेडियो, तार औ फोन, - वाष्प, जल , वायु यान,

मिट गया दिशावधि का जिनसे व्यवधान मान,-

धावित जिनमे दिशि दिशि का मन, - वार्ता, विचार,

संस्कृति, संगीत, गगन में झंकृत निराकार ।

जीवन सौन्दर्य प्रतीक यंत्र जन के शिक्षक

युग क्राम्ति प्रवर्तक औ भावी के पथ दर्शक ।

वे कृत्रिम, निर्मित नही, जगत क्रम में विकसित,

मानव भी यंत्र, विविध युग स्थितियों में वर्धित ।

दार्शनिक सत्य नही, - यंत्र जड़, मानव कृत,

वे हे अमूर्त जीवन विकास की कृति निश्चित ।

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References :

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

फरवरी' ४०

Last Updated : October 11, 2012

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