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आधुनिका

सुमित्रानंदन पंत - आधुनिका

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


पशुओं से मृदु चर्म, पक्षियो से ले प्रिय रोमिल पर,

ऋतु कुसुमों से सुरँग सुरुचिमय चित्र वस्त्र ले सुंदर,

सुभग रूज, लिपस्टिक, ब्रौस्टिक, पौडर से कर मुख रंजित,

अंगराग, क्यूटेक्स, अलक्तक से बन शिख शोभित;

'सागर तल से मुक्ताफल, खानों से मणि उज्ज्वल,'

रजत स्वर्ण में अंकित तुम फिरती अप्सरि सी चंचल ।

शिक्षित तुम संस्कृत, युग के सत्याभासोम में पोषित,

समकक्षिणी नरों की तुम, निज द्वन्द्व मूल्य पर गर्वित ।

नारी की सौन्दर्य मधुरिमा औ महिमा से मंडित,

तुम नारी उर की विभूति से, ह्रदय सत्य से वंचित !

प्रेम, दया, सह्रदयता, शील, क्षमा पर दुख कातरता,

तुमपें तप, संयम, सहिष्णुता नहीं त्याग, तत्परता ।

लहरी सी तुम चपल लालसा श्वास वायु से नर्तित,

तितली सी तुम फूल फूल पर मँडराती मधुक्षण हित !

मार्जारी तुम, नही प्रेम को करती आत्म समर्पण,

तुम्हे सुहाता रंग प्रणय, धन पद मद, आत्म प्रदर्शन !

तुम सब कुछ हो, फूल, लहर, तितली, विहगी, मार्जारी,

आधुनिके, तुम नही अगर कुछ, नही सिर्फ तुम नारी !

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References :

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

फरवरी' ४०

Last Updated : October 11, 2012

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