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कठपुतले

सुमित्रानंदन पंत - कठपुतले

ग्रामीण लोगोंके प्रति बौद्धिक सहानुभूती से ओतप्रोत कविताये इस संग्रह मे लिखी गयी है। ग्रामों की वर्तमान दशा प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देती है।


भारत माता

ग्रामवासिनी ।

खेतों में फैला है श्यामल

धूल भरा मैला सा आँचल,

गंगा यमुना में आँसू जल,

मिट्टी की प्रतिमा

उदासिनी ।

दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,

अधरों में चिर नीरव रोदन,

युग युग के तम से विषण्ण मन,

वह अपने घर में

प्रवासिनी ।

तीस कोटि संतान नग्न तन,

अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन,

मूढ, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,

नत मस्तक

तरु तल निवासिनी !

स्वर्ण शस्य पर-पद तल लुंठित,

धरणी सा सहिष्णु मन कुंठित,

क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित,

राहु ग्रसित

शरदेन्दु हासिनी ।

चिन्तित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,

नमित नयन नभ बाष्पाच्छादित,

आनन श्री छाया-शशि उपमित,

ज्ञान मूढ

गीता प्रकाशिनी !

सफस आज उसका तप संयम,

पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,

हरती जन मन भय, भव तम भ्रम,

जग जननी

जीवन विकासिनी ।

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References :

कवी - श्री सुमित्रानंदन पंत

जनवरी' ४०

Last Updated : October 11, 2012

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