स्तुति श्रीनाथजी की

इस अति पुनीत श्री अनन्त व्रत कथा के अनुष्‍ठान ही से समस्त पापों का विनाश होता है और मनुष्य सुख तथा समृद्धि को प्राप्‍त होता है ।


श्रीनाथ ! बुलाओ मुझको भी नाथद्वारा

चरणों में रखलो मुझको देकर कृपा सहारा ॥ टेर ॥

है मोहजालमिथ्या अब तक फँसा था जिसमें ।

अब मैं समझ सका हूँ संसार एक कारा ॥१॥

झूँठे गृहस्थ सुख में होकर प्रसन्न मैंने ।

सत्यसौख्य के विधाता भगवान् तुम्हें विसारा ॥२॥

सब स्वार्थ के सगे हैं कोई नहीं है अपना ।

परमार्थ विघ्नकारक हैं बन्धु पुत्र दारा ॥३॥

सेवक तुम्हारा ’धरणीधर’ दीन बिचारा ॥

दो भक्‍ति भीख इसको सत्संग आदि द्वारा ॥४॥

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Last Updated : January 06, 2008

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