रेवा कीर्तन

इस अति पुनीत श्री अनन्त व्रत कथा के अनुष्‍ठान ही से समस्त पापों का विनाश होता है और मनुष्य सुख तथा समृद्धि को प्राप्‍त होता है ।


जय-जय रेवा तेरी करुँ सेवा अब होजा दीनदयाल री लाज रखो अब भक्‍तन की ।

अमरकंठ से चली माई रेवागढ़ मण्डला फिर आई,

गढ़ मण्डला की बावन राजा कन्या कर विमलाई, जय-जय रेवा०।

ब्रह्मपुरी से ब्रह्मा आये संग सखों को लाये ।

काशी से दो पंडित आये रेवा की करी सगाई । जय-जय रेवा० ।

भीतर से रेवा बाहर आई मन ही में भिग्य उठाई ।

अड़ बक आय तवा ने घेरी काहे जेहे अनब्याई । जय-जय रेवा० ॥

मारी है लात तबा भये रन बन छार-छार भये पानी ।

तुलसीदास आस रघुवर की हरि चरनन बलिहारी ॥ जय-जय रेवा० ॥

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Last Updated : January 06, 2008

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