भजन - नैन चकोर , मुखचंदहूको बार...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


नैन चकोर, मुखचंदहूको बारि डारौं,

बारि डारौं चित्तहिं मनमोहन चितचोरपै ।

प्रानहूकों बारि डारौं हँसन दसन लाल,

हेरन कटिलता और लोचनकी कोरपै ॥

बारि डारौं मनहिं सुअंग अंग स्यामा स्याम,

महल मिलाप रस रासकी झकोरपै ।

अतिहि सुघर बर सोहत त्रिभंगीलाल

सरबस बारौं वा ग्रीवाकी मरोरपै ॥

अब तौ तेरिय हाथ बिकानी ।

मृदु बोलन मुसक्यान माधुरी, तन मन नैन समानी ॥

लोक-लाज, कुल कानि तजी सब, जामें तुव रुचि चीनी ।

धरम करम ब्रत नेम सबै सो, तोई रँग रस भीनी ॥

तुव कारन यह भेष बनायो प्रगट उघरि करि नाची ।

नाउँ कुनाउँ धरौ किन कोऊ हौं नाहिन मति काँची ॥

होनी होय सो होय भले ही, तनमन लगन लगी है ।

ललितकिसोरी लाल तिहारे, मति अनुराग पगी है ॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 22, 2007

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP