भजन - दुनियाके परपंचोंमें हम मज...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


दुनियाके परपंचोंमें हम मजा नहीं कछु पाया जी ।

भाई-बंधु, पिता-माता पति सबसों चित अकुलाया जी ॥

छोड़-छाड़ घर, गाँव-नाँव कुल, यही पंथ मन भाया जी ।

ललितकिसोरी आनँदघन सों अब हठि नेह लगाया जी ॥

क्या करना है संपति-संतति, मिथ्या सब जग माया है ।

शाल-दुशाले, हीरा-मोतीमें मन क्यों भरमाया है ॥

माता-पिता पती-बंधु सब गोरखधंध बनाया है ।

ललितकिसोरी आनँदघन हरि हिरदै कमल बसाया है ॥

बन-बन फिरना बिहतर हमको रतन भवन नहिं भावै है ।

लतातरे पड़ रहनेमें सुख नाहिन सेज सुहावै है ॥

सोना कर धरि सीस भला अति तकिया ख्याल न आवै है ।

ललितकिसोरी नाम हरीका जपि-जपि मन सचुपावै है ॥

तजि दीनीं जब दुनिया-दौलत फिर कोईके घर जाना क्या ।

कंद मूल-फल पाय रहैं अब खट्टा-मीठा खाना क्या ॥

छिनमें साही बकसैं हमको मोतीमाल खजाना क्या ।

ललितकिसोरी रुप हमारा जानै नाँ तहँ आना क्या ॥

अष्‍टसिद्धि नवनिद्धि हमारी मुट्ठीमें हरदम रहतीं ।

नहीं जवाहिर, सोना-चाँदी, त्रिभुवनकी संपति चहतीं ॥

भावै ना दुनियाकी बातैं दिलवरकी चरचा सहती ।

ललितकिसोरी पार लगावैं मायाकी सरिता बहती ॥

गौर-स्याम बदनारबिंदपर जिसको बीर मचलते देखा ।

नैन बान, मुसक्यान संग फँस फिर नहिं नेक सँभलते देखा ॥

ललितकिसोरी जुगुल इश्‍कमें बहुतोंका घर घलते देखा ।

डूबा प्रेमसिंधुका कोई हमने नहीं उछलते देखा ॥

देखौ री, यह नंदका छोरा बरछी मारे जाता है ।

बरछी-सी तिरछी चितवनकी पैनी छुरी चलाता है ॥

हमको घायल देख बेदरदी मंद मंद मुसकाता है ।

ललितकिसोरी जखम जिगरपर नौनपुरी बुरकाता है ॥

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Last Updated : December 22, 2007

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