भजन - मुरकि मुरकि चितवनि चित चो...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


मुरकि मुरकि चितवनि चित चोरै ।

ठुमकि चलन हेरि दै बोलनि, पुलकनि नंदकिसोरै ॥

सहरावनि गैयान चौंकनी, थपकन कर बनमाली ।

गुहरावनि लै नाम सबनकौ धौरी धूमर आली ॥

चुचकारनि चट झपटि बिचुकनी, हूँ हूँ रहौ रँगीली ।

नियरावनि चोरवनि मगहीमें, झुकि बछियान छबीली ॥

फिरकैयाँ लै निरत अलापन, बिच-बिच तान रसीली ।

चितवनि ठिटुकि उढ़कि गैयासों, सीटी भरनि रसीली ॥

चाँपन अधर सैन दै चंचल, नैनन मेलि कटारी ।

जोरन कर हा हा करि मोहन, मुसकन ऐंड़ि बिहारी ॥

बाँह उठाय उचकि पग टेरनि, इतै कितै हौ स्यामा ।

निकसी नई आज तैं बनरिहु, मोरे ढिग अभिरामा ॥

हरुवे खोर साँकरी जुवतिन, कहत गुलाम तिहारौ ।

मिलियौ रैन मालती कुंजै तहँ पिक अरुन निहारौ ॥

काहू झटक चीर लकुटीतें, काहू पगै दबावै ।

काहू अंग परसि काहू तन, नैनन कोर नचावै ॥

उरझत पट नूपुरसों पाछे झुकि झुकि कै सुरझावै ।

ललितकिसोरी ललित लाड़िली दृग संकेत बतावै ॥

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Last Updated : December 22, 2007

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