हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|आत्मदशक| पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम आत्मदशक चातुर्यलक्षणनाम निस्पृहव्यापलक्षणनाम श्रेष्ठअतरात्मानिरूपणनाम शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम चंचललक्षणनिरूपणनाम चातुर्यविवरणनाम अधोर्धनिरूपणनाम सूक्ष्मजीवनिरूपणनाम पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम सिद्धांतनिरूपणनाम समास नववां - पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास नववां - पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ चारों खाणी के प्राणी होते । सारे उदक से ही बढते । ऐसे होते और जाते । अनगिनत ॥१॥ तत्त्वों का बना शरीर । अंतरात्मा संग हुआ तत्पर । खोजे उसका मूल अगर । तो वह उदकरूप ॥२॥शरदकाल के शरीर । निचोड़ निचोड़ कर झरता नीर । उभय रेत एकत्र । मिलता रक्त से ॥३॥ अन्नरस देहरस । रक्त रेत से बंधे मूस । रस द्वय से सावकाश । बढ़ने लगा ॥४॥ बढ़ते बढ़ते बढ़ गया । कोमल से कठिन हुआ । आगे उदक फैल गया । नाना अवयवों में ॥५॥ संपूर्ण होते ही बाहर आये । भूमि पर गिरते ही रोने लगे । सभी का यही होये । ऐसा है ॥६॥ देह बढ़े कुबुद्धि बढ़े । मूल से ही सारा होता जाये । सारा ही टूटे और बढ़े । देखते देखते ॥७॥ दिनों दिन सभी के शरीर । बढ़ने लगते आगे जाकर । सूझने लगते विचार । अलग अलग ॥८॥ फल में बीज आया । उसी न्याय से वहां हुआ । सुनते देखते समझ में आया । सब कुछ ॥९॥ बीज उदक से अंकुरित होते । उदक ना हो तो उड़ जाते । एक ही जगह उदक मिट्टी रहते । तो अच्छा ॥१०॥ दोनों में रहने पर बीज । भीगकर अंकुरित होता सहज । बढते बढते आगे रीझ । उदंड है ॥११॥ इधर मूल दौड़ लगाते । उधर अग्र डोलते । मूल अग्र द्विधा होते । बीज से ॥१२॥ मूल जाते पाताल में । अग्र दौडते अंतराल में । नाना पत्र पुष्प फलों से लदते पेड ॥१३॥ फलों से श्रेष्ठ सुमन । सुमनों से श्रेष्ठ पत्ते । पत्तों से श्रेष्ठ अनुसंधान । काष्ठों का ॥१४॥ काष्ठों से श्रेष्ठ मूल बारीक । मूली से श्रेष्ठ वह उदक । उदक सूखने से कौतुक । भूमंडल का ॥१५॥ ऐसी है इसकी प्रचीति । इसलिये सबसे श्रेष्ठ धरती । धरती से श्रेष्ठ मूर्ति । आपोनारायण की ॥१६॥ उससे श्रेष्ठ अग्निदेव । अग्नि से श्रेष्ठ वायुदेव । वायुदेव से श्रेष्ठ स्वभाव । अंतरात्मा का ॥१७॥ सबसे श्रेष्ठ अंतरात्मा । उसे ना जाने वह दुरात्मा । दुरात्मा याने दूर आत्मा । हुआ उससे ॥१८॥ पास रहकर भी चूक गये । प्रत्यय के इच्छुक ना रहे । व्यर्थ ही आये और गये । ईश्वर के कारण ॥१९॥अतः सबसे श्रेष्ठ देव । उससे होते ही अनन्यभाव । फिर इस प्रकृति का स्वभाव । पलटने लगे ॥२०॥ करे अपना व्यासंग । कदापि ना होने दे ध्यानभंग । बोलने चलने में व्यंग । पडने ही ना दे ॥२१॥ श्रेष्ठों ने जो निर्माण किया । उसे चाहिये देखना । क्या क्या श्रेष्ठ ने निर्माण किया । देखें कितना ॥२२॥वह श्रेष्ठ जहां चेता । वही भाग्यपुरुष हुआ । अल्प चेतना से हुआ । उसे अल्पभाग्य ॥२३॥ उस नारायण को मन में । अखंड स्मरण करें ध्यान में । फिर लक्ष्मी उससे । दूर जायेगी कहां ॥२४॥विश्व में है नारायण । उसका करते जायें पूजन । संतुष्ट करें इस कारण । कोई काया ॥२५॥ उपासना खोजकर देखी । तो वह हुई विश्वपालन कर्ती । न समझे लीला कोई भी । परीक्षा ना कर पाये ॥२६॥ देव की लीला देव के बिन । और दूसरा देखे कौन । देखे जितना उतना स्वयं । देव ही होये ॥२७॥उपासना सकल ही ठाई । आत्माराम कहीं नहीं । इसकारण ठाई ठाई । राम की ही सत्ता चले ॥२८॥ ऐसी मेरी उपासना । अनुमान में ला सके ना । ले जाती निरंजना । के उस पार ॥२९॥ देव कारण कर्म होते । देव कारण उपासक बनते । देव कारण ज्ञानी रहते । कितने सारे ॥३०॥ नाना शास्त्र नाना मत । देव ने ही कहें है समस्त । अचूक चूक व्यवस्थित अव्यवस्थित । कर्मानुसार ॥३१॥ देव को सारा करना पड़े । उसमें से उचित उतना लें । अधिकार अनुसार चलें । याने अच्छा ॥३२॥आवाहन विसर्जन । ऐसे ही कहा विधान । पूर्वपक्ष यहां हुआ पूर्ण । सिद्धांत आगे ॥३३॥ वेदांत सिद्धांत धादांत । प्रचीति प्रमाण निश्चित । पंचीकरण छोड़ कर हित । वाक्यार्थ देखें ॥३४॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे पिडोत्पत्तिनिरूपणनाम समास नववां ॥९॥ N/A References : N/A Last Updated : February 16, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP