हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|आत्मदशक| अधोर्धनिरूपणनाम आत्मदशक चातुर्यलक्षणनाम निस्पृहव्यापलक्षणनाम श्रेष्ठअतरात्मानिरूपणनाम शाश्वतब्रह्मनिरूपणनाम चंचललक्षणनिरूपणनाम चातुर्यविवरणनाम अधोर्धनिरूपणनाम सूक्ष्मजीवनिरूपणनाम पिंडोत्पत्तिनिरूपणनाम सिद्धांतनिरूपणनाम समास सातवां - अधोर्धनिरूपणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास सातवां - अधोर्धनिरूपणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ नाना विकारों का मूल । है यह मूलमाया ही केवल । अचंचल में जो चंचल । सूक्ष्मरूप से ॥१॥ मूलमाया ज्ञातृत्व की । मूलतः जो मूल संकल्प की । पहचान षड्गुणैश्वर की । इसी न्याय से ॥२॥प्रकृतिपुरुष शिवशक्ति । अर्धनारीनटेश्वर कहलाती । परंतु वह संपूर्ण जगज्जोति । मूल उसका ॥३॥ संकल्प का जो चलन । वही वायु का लक्षण । वायु और त्रिगुण । और पंचभूत ॥४॥ देखें अगर कोई बेल । गहरे रहते उसके मूल । पत्र पुष्प फल केवल । मूल के पास ही ॥५॥ इससे भी अलग नाना रंग । आकार विकार तरंग । नाना स्वाद अंतरंग । मूल में ही ॥६॥ वही मूल देखें अगर चीरकर । अब कुछ भी ना दिखे भीतर । बढ़ते बढ़ते आगे जाकर । दिखने लगे ॥७॥बेल उगी पहाड़ी से । अधोमुख चली बल से । आगे जाकर फैले । भूमंडल में ॥८॥ वैसी मूलमाया जान । पंचभूत और त्रिगुण । मूल में ही है यह प्रमाण । जानें प्रत्यय से ॥९॥ अखंड बढी बेल आगे । सजी नाना विकारों से । विकारों को विकार हुये । असंभाव्य ॥१०॥ उगी नाना शाखायें । उलझकर गुच्छ बन गये । अनंत अग्र फैल गये । सृष्टि में ॥११॥ कई फल गिरते । तुरंत ही नये आते । ऐसे होते और जाते । सर्वकाल ॥१२॥ एक बेल ही सूखी । पुनः वहीं से फूटी । ऐसी आई और गई । कई एक ॥१३॥ पत्ते झडते और फूटते । पुष्प फल इसी रीति से । इस बीच जीव जगते । असंख्यात् ॥१४॥ सारी बेल सूखती । जड से पुनः उगती । ऐसा संपूर्ण विचार जो ही । प्रत्यक्ष जानिये ॥१५॥ मूल को खोदकर निकाला । प्रत्ययज्ञान से निर्मूल किया । फिर बढ़ना ही रुक गया । सब कुछ ॥१६॥मूलतः बीज अंततः बीज । बीच में जलरूप बीज । ऐसा यह स्वभाव सहज । विस्तारित हुआ ॥१७॥ मूल में रहती जो बातें । बीज सृष्टि कहते उसे । जहां का अंश वहीं जाये । कष्ट के बिना ॥१८॥ जाता आता पुनः जाता । ऐसी प्रत्यावृत्ति करता । परतु आत्मज्ञानी की अवस्था । होती नहीं ऐसे ॥१९॥ न होता कहें भी ऐसे । फिर भी कुछ तो जानना पडे । अंतरंग में ही परतु पता कैसे । सब को चले ॥२०॥ उसीसे कार्य होते । परंतु उसे ना जानते । दिखे ना वे क्या करते । बेचारे लोग ॥२१॥ विषयभोग उसीसे होये । उसके बिना कुछ भी ना होये । स्थूल छोड़ सूक्ष्म में प्रविष्ट होये । ऐसा चाहिये ॥२२॥ जो अपने ही भीतर । तद्रूप ही जगदांतर । शरीरभेद के विकार । अलग अलग ॥२३॥ अंगुली को अंगुली की वेदना । एक की दूसरी को समझे ना । हांथ पांव अवयव नाना । इसी न्याय से ॥२४॥ अवयव का अवयव न जाने । फिर वह परायों का क्या जाने । परांतर इस कारण से । न जाना जाता ॥२५॥ सकल वनस्पति एक ही उदक से । नाना अग्रभेद दिखते । तोड़े उतने ही सूखते । बाकी हरेभरे रहते ॥२६॥ इसी न्याय से भेद हुआ । एक का दूसरा समझे ना । ज्ञातापन से आत्मा । को भेद नहीं ॥२७॥ आत्मत्व में भेद दिखे । देहप्रकृति कारण भासे । फिर भी जानते ही हैं । बहुतेक ॥२८॥ देखकर सुनकर जानते । सयाने अंतरंग परखते । धूर्त वे सारा ही समझते । गुप्तरूप से ॥२९॥ जो बहुतों का पालन करे । जो बहुतों के अंतरंग विवरण करे । धूर्तता से पता करे । सब कुछ ॥३०॥पहले मनोगत देखते । बाद में विश्वास रखते । प्राणिमात्र व्यवहार करते । इसी रीति से ॥३१॥ स्मरण के बाद विस्मरण । नगद प्रचीत प्रमाण । स्वयं अपना ही निधान । चूकता है ॥३२॥ अपना ही स्वयं को स्मरे ना । कहा वह याद आये ना । उठती अनंत कल्पना । याद कैसे रहे ॥३३॥ऐसा यह चंचल चक्र । कुछ सही कुछ वक्र । हुआ रंक अथवा शक्र । तो भी स्मरणास्मरण से ॥३४॥स्मरण याने देव । विस्मरण याने दानव । स्मरणविस्मरण से मानव । व्यवहार करते वर्तमान में ॥३५॥देवी और दानवी ऐसे । संपत्ति द्विधा जानिये । प्रचीत लायें मन में । विवेकसहित ॥३६॥ विवेकी से विवेक जानें । आत्मा से आत्मा पहचानें । नेत्र से ही नेत्र देखें । दर्पण में ॥३७॥ स्थूल से स्थूल खुजायें । सूक्ष्म से सूक्ष्म समझें । चिन्ह से चिन्ह दृढ धरें । अंतर्याम में ॥३८॥ विचार से जानियें विचार । अंतरंग से जानियें अंतरंग । अंतर से जानियें परातर । होकर ॥३९॥ स्मरण के बीच विस्मरण । यही भेद का लक्षण । एकदेशीय परिपूर्ण । होता नहीं ॥४०॥ आगे सीखे पीछे बिसरे । आगे उजाला अंधेरा पीछे । आगे स्मरे पीछे बिसरे । सभी कुछ ॥४१॥ तूर्या को जानें स्मरण । सुषुप्ति जानियें विस्मरण । दोनों भी शरीर में जान । क्रियारत है अभी ॥४२॥इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे अधोर्धनिरूपणनाम समास सातवां ॥७॥ N/A References : N/A Last Updated : February 16, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP