हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|मूर्खलक्षनाम| समास पांचवां रजोगुणलक्षणनाम मूर्खलक्षनाम समास पहला मूर्खलक्षणनाम समास दूसरा उत्तमलक्षणनाम समास तीसरा कुविद्यालक्षणनाम समास चौथा भक्तिनिरुपणनाम समास पांचवां रजोगुणलक्षणनाम समास छठवां तमोगुणलक्षणनाम समास सातवा सत्वगुणनाम समास आठवां सद्विद्यानिरुपणनाम समास नववां विरक्तलक्षणनाम समास दसवां पढतमूर्खलक्षणनिरूपणनाम समास पांचवां रजोगुणलक्षणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास पांचवां रजोगुणलक्षणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ मूलतः देह त्रिगुणों का । सत्वरजतम का । इनमें सत्व का । उत्तम गुण ॥१॥ सत्त्वगुण से भगवद्भक्ति । रजोगुण से पुनरावृत्ति । तमोगुण से अधोगति । पाते हैं प्राणी ॥२॥॥ श्लोक ॥ उर्ध्वं गच्छन्ति सत्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः । जघन्यगुणवृत्तिस्था अघो गच्छन्ति तामसाः ॥छ॥उसमें भी शुद्ध और सबल । वही कहता हूं सकल । शुद्ध वही जो निर्मल । सबल को बाधक जानो ॥३॥ शुद्ध सबल के लक्षण । सुनें सावधानी से विचक्षण । शुद्ध वह परमार्थी जान। सबल को संसारिक ॥४॥ उन संसारिकों की स्थिति । त्रिगुण में आचरण करे वृत्ति । एक आते ही दो चले जाते । निकल कर ॥५॥ रज तम और सत्त्व । इनसे ही चले जीवित्व । रजोगुण का कर्तृत्व । दिखाऊं अब ॥६॥ रजोगुण शरीर में आने से । व्यवहार करते कैसे । सावधान होकर चतुराई से । सुनो ॥७॥ मेरा घर मेरा संसार । वहां श्रेष्ठ कैसा परमेश्वर । ऐसा करे जो निर्धार । वह रजोगुण ॥८॥ माता पिता और कांता । पुत्र बहू और दुहिता । इनकी करे जो चिंता । वह रजोगुण ॥९॥ खाये अच्छा भोजन अच्छा । रहे अच्छा पहने अच्छा । दूसरों की वस्तुपर इच्छा । वह रजोगुण ॥१०॥ कैसा धर्म कैसा दान । कैसा जप कैसा ध्यान । पूछे ना जो पाप पुण्य । वह रजोगुण ॥११॥ ना जाने तीर्थ ना जाने व्रत । ना जाने अतिथि अभ्यागत । अनाचारी मनोगत । वह रजोगुण ॥१२॥ धनधान्य का संचित । मन रहता द्रव्यासक्त । अत्यंत कृपण जीवित । वह रजोगुण ॥१३॥ मैं तरुण मैं सुंदर । मैं बलाढ्य मैं चतुर । मैं सभी से ऊपर । कहे वह रजोगुण ॥१४॥ मेरा गांव मेरा शरीर । मेरा ठौर मेरा घर । ऐसी लालच मन में धरकर । रहे वह रजोगुण ॥१५॥ दूसरों का सब कुछ खोये । मेरा ही अच्छा रहे । ऐसी सहज इच्छा करे । वह रजोगुण ॥१६॥ कपट और मत्सर । उठे देह में तिरस्कार । अथवा काम का विकार । वह रजोगुण ॥१७॥ बच्चों से ममता । प्रीतिवश भाये कांता । समस्तों के प्रति लोलुपता । वह रजोगुण ॥१८॥ कष्ट आप्त जनों का । जब चित्त को लगने लगता । उस समय शीघ्रता से आता । रजोगुण ॥१९॥ संसार के बहुत कष्ट । कैसा होगा अंत । मन में याद आते संकट । वह रजोगुण ॥२०॥ अथवा पहले जो जो लिये भोग। वे सब मन में आये याद । होता दुःख अत्यंत । वह रजोगुण ॥२१॥ वैभव देखकर दृष्टि से । मन में लोभ उपजे । दुःखी होता आशा से । वह रजोगुण ॥२२॥ जो जो देखा दृष्टि ने । वह सब मांगा मन ने । न मिले तो दुःख माने । वह रजोगुण ॥२३॥ विनोदार्थ से भरे मन । करे श्रृंगारिक गायन । राग रंग तान मान । वह रजोगुण ॥२४॥ शरारत मसखरी निंदा । बोलने पर विवाद होता । हास्य विनोद करे सर्वदा । वह रजोगुण ॥२५॥ आलस उपजे प्रबल । मनोरंजन के नाना खेल । अथवा उपभोग के धांधल । वह रजोगुण ॥२६॥ कलावंत बहुरूपी । नाट्य अवलोकन में उद्योगी । नाना खेलों में दान की वृत्ति । वह रजोगुण ॥२७॥ उन्मत्त द्रव्य पर अत्यंत प्रीति । ग्रामज्य की चित्त में सदा व्याप्ति । प्रिय लगे नीचों की संगति । वह रजोगुण ॥२८॥ तस्करविद्या मन में उपजे । परन्यून कहना चाहे । नित्य नियम से मन अलसाये । वह रजोगुण ॥२९॥ देव कार्य में लज्जा करे। उदर के लिये कष्ट करे । प्रपंच से जो स्नेह करें । वह रजोगुण ॥३०॥ मिष्ठान्न के प्रति आकर्षण । अत्यादर से पिंडपोषण । रजोगुण ने किया उपोषण । ऐसा न सुना कभी ॥३१॥ श्रृंगारिक लगे प्रिय । भक्तिवैराग्य लगे अप्रिय । कला कुशल की प्रशंसा नित्य । वह रजोगुण ॥३२॥ परमात्मा की ना ले पहचान । सकल पदार्थों पर प्रेम । बलात् से दिलाये जन्म । वह रजोगुण ॥३३॥ ऐसा यह रजोगुण । लोभ से दिखलाये जन्ममरण । प्रपंच में वह बलवान जान । दारुण दुःख भोगे ॥३४॥ अब रजोगुण यह छूटे ना । संसारिक यह टूटे ना । प्रपंच में उलझी वासना । इसका क्या उपाय ॥३५॥ उपाय एक भगवद्भक्ति । यदि न आती हो विरक्ति । तो भी यथानुशक्ति । भजन करें ॥३६॥ काया वाचा और मन से । पत्र पुष्प फल जीवन से । ईश्वर को मन अर्पण करके । सार्थक करें ॥३७॥ यथाशक्ति दानपुण्य । मगर भगवान से अनन्य । सुख दुःख में मगर चिंतन । देव का ही करें ॥३८॥ आदि अंत में एक देव । मध्य में माया का प्रभाव । इस कारण पूर्ण भाव । भगवंत में रखें ॥३९॥ ऐसा सबल रजोगुण । संक्षेप में किया कथन । अब शुद्ध वह तू जान । पारमार्थिक ॥४०॥ उसे पहचानने के चिन्ह । सत्त्वगुण में होते जान । वह रजोगुण परिपूर्ण । भजन मूल ॥४१॥ ऐसा रजोगुण किया कथन । श्रोताओंने मन में किया अनुमान । अब आगे करना श्रवण । चाहिये तमोगुण का ॥४२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे रजोगुणलक्षणनाम समास पांचवां ॥५॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP