हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|दासबोध हिन्दी अनुवाद|मूर्खलक्षनाम| समास दूसरा उत्तमलक्षणनाम मूर्खलक्षनाम समास पहला मूर्खलक्षणनाम समास दूसरा उत्तमलक्षणनाम समास तीसरा कुविद्यालक्षणनाम समास चौथा भक्तिनिरुपणनाम समास पांचवां रजोगुणलक्षणनाम समास छठवां तमोगुणलक्षणनाम समास सातवा सत्वगुणनाम समास आठवां सद्विद्यानिरुपणनाम समास नववां विरक्तलक्षणनाम समास दसवां पढतमूर्खलक्षणनिरूपणनाम समास दूसरा उत्तमलक्षणनाम ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन समर्थ रामदास लिखीत दासबोध में है । Tags : dasbodhramdasदासबोधरामदास समास दूसरा उत्तमलक्षणनाम Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ श्रोता हो साबधान । अब कहता हूं उत्तम गुण । दृढ होगे चिन्ह जिसके कारण । सर्वज्ञता के ॥१॥ मार्ग पूछे बिना न जायें । पहचाने बिना फल ना खायें । गिरी हुई वस्तु ना उठायें । एकाएक ॥२॥ अतिबाद ना करें । मन में कपट ना धरें । खोज किये बिना न करें । कुलहीन कांता ॥३॥ विचार बिना न बोले । विवंचन बिना न चलें । मर्यादा बिन न हिलायें । कुछ एक ॥४॥ प्रीति बिन रूठे नहीं । चोर से पहचान पूछें नहीं । रात्रि में पथ से चलें नहीं । एकाएक ॥५॥ लोगों से आर्जव तोड़ें नहीं । पाप द्रव्य जोड़े नहीं । पुण्य मार्ग छोड़े नहीं । कभी भी ॥६॥ निंदा द्वेष करें नहीं । असत्संग घरें नहीं । द्रव्य दारा हरें नहीं । बलात् से ॥७॥ वक्ता को छेडें नहीं । ऐक्य को भंग करें नहीं । विद्याभ्यास छोड़ें नहीं । हो कुछ भी ॥८॥ मुंहजोर से झगड़े नहीं । वाचाल से बाद करें नहीं । संतसंग खंडित करें नहीं । अंतर्याम में ॥९॥ अति क्रोध करें नहीं । स्वजनों को दुखी करें नहीं । मन में आलस करें नहीं । सीख का ॥१०॥ क्षण क्षण में रूठे नहीं । मिथ्या पुरुषार्थ बोलें नहीं । कियें बिन कहें नहीं । अपना पराक्रम ॥११॥ कहे बोल भूले नहीं । प्रसंग में सामर्थ्य चूके नहीं । किये बिना उपहास करें नहीं । लोगों का कभी ॥१२॥ आलस में सुख मानें नहीं । चुगली मन में लायें नहीं । परखें बिना करें नहीं । कार्य कोई भी ॥१३॥ देह सुखाधीन करें नहीं । पुरुष प्रयत्न छोडें नहीं । कष्ट की तकरार करें नहीं । निरंतर ॥१४॥ सभा में लजाये नहीं । व्यर्थ बातें करें नहीं। होड शर्त लगायें नहीं । हो कुछ भी ॥१५॥ बहुत चिंता करें नहीं । आलसी बनकर रहें नहीं । परस्त्री को देखें नहीं । पाप बुद्धि से ॥१६॥ उपकार किसी का लें नहीं । लिया अगर तो रखे नहीं । परपीडन करें नहीं । विश्वासघात ॥१७॥ शौच्य बिना रहें नहीं । मलिन वस्त्र पहनें नहीं । जानेवाले से पूछें नहीं । कहाँ चले कहकर ॥१८॥ व्यापकता छोड़े नहीं । पराधीन रहे नहीं । अपना बोझा डालें नहीं । किसीपर भी ॥१९॥ लिखा पढी बिना व्यवहार करें नहीं । हीन का ऋण लें नहीं । बिना वाही के जायें नहीं । राजद्वार पर ॥२०॥ झूठे का पक्ष लें नहीं । सभा को मिथ्या करें नहीं । आदर नहीं वहां बोलें नहीं । स्वभावतः ॥२१॥ मत्सर कभी करें नहीं । अन्याय के बिना कष्ट दे नहीं । अनीति से बर्ताव करें नहीं । शरीर बल से ॥२२॥ बहुत अन्न खायें नहीं । बहुत निद्रा करें नहीं । बहुत दिन रहे नहीं । दुष्टों के यहां ॥२३॥ अपनों की ग्वाही दें नहीं । अपनी कीर्ति बखानें नहीं । अपने आप हंसें नहीं । बातें बताकर ॥२४॥ धूम्रपान करें नहीं । उन्मत्त द्रव्य सेवन करें नहीं । वाचालों से करें नहीं । मैत्री कभी ॥२५॥ काम के बिना रहे नहीं । नीच उत्तर सहें नहीं । जूठा भोजन सेवन करें नहीं । पिता का भी ॥२६॥ मुंह में गाली रखें नहीं । दूसरों को देखकर हसें नहीं । न्यून दोषारोपण करें नहीं । कुलीन लोगों के ॥२७॥ देखी जो वस्तु चुरायें नहीं । बहुत कंजूस बनें नहीं । प्रिय जनों से करें नहीं । कलह कभी ॥२८॥ किसी का घात करें नहीं । मिथ्या गवाही दें नहीं । अप्रमाण वर्तन करें नहीं । किसी काल ॥२९॥ चुगली चोरी करें नहीं । परद्वार रत रहें नहीं । पीछे न्यून बोलें नहीं । किसी के भी ॥३०॥ समय आने पर चूकें नहीं । सत्वगुण छोडें नहीं । बैरी को दण्डित करें नहीं । शरण आने पर ॥३१॥ अल्पधन से अकड़ें नहीं । हरिभक्ति के लिये लजायें नहीं । मर्यादाहीन आचरण करें नहीं । पवित्र जनों में ॥३२॥ मूर्खो से संबंध रखें नहीं । अधेरे में हाथ डालें नहीं । दुश्चित होकर भूलें नहीं । अपनी वस्तु ॥३३॥ स्नानसंध्या त्यागें नहीं। कुलाचार भग्न करें नहीं । अनाचार करें नहीं । आलस्य से ॥३४॥ हरिकथा त्यागें नहीं । निरुपण खण्डित करें नहीं । परमार्थ छोड़ें नहीं। प्रपंच बल से ॥३५॥ देव की मनौति भूलें नहीं । अपना धर्म छोड़े नहीं । अवांछित काम करें नहीं । विचार के बिना ॥३६॥ निष्ठुरता धरें नहीं । जीव हत्या करें नहीं । अतिवर्षा में जायें नहीं । अथवा कुअवसर पर ॥३७॥ सभा देखकर घबरायें नहीं । समयपर उत्तर टालें नहीं । धिक्कारने पर खोयें नहीं । अपना धीरज ॥३८॥ गुरुविरहित रहें नहीं । नीच जाति का गुरु करें नहीं । जीवन शाश्वत समझें नहीं । और वैभव ॥३९॥ सत्यमार्ग छोड़े नहीं । असत्य पथ से जायें नहीं । कभी अभिमान करें नहीं । असत्य का ॥४०॥ अपकीर्ति त्याग दें । सत्कीर्ति बढ़ायें । विवेक से दृढ धरें । मार्ग सत्य का ॥४१॥ ना लें ये उत्तम गुण । वे मनुष्य अवलक्षण । सुनो उनके लक्षण । अगले समास में ॥४२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे उत्तमलक्षणनाम समास दूसरा ॥२॥ N/A References : N/A Last Updated : February 13, 2025 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP