हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|नामरूप| ॥ समास पांचवां - कहानीनिरूपणनाम ॥ नामरूप ॥ समास पहला - आत्मानात्मविवेकनाम ॥ ॥ समास दूसरा - सारासारनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - उभारणीनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - प्रलयनाम ॥ ॥ समास पांचवां - कहानीनिरूपणनाम ॥ ॥ समास छठवां - लघुबोधनाम ॥ ॥ समास सातवां - प्रत्ययविवरणनाम ॥ ॥ समास आठवा - कर्तानिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - आत्मविवरणनाम ॥ ॥ समास दसवां - सिकवणनिरूपणनामः ॥ नामरूप - ॥ समास पांचवां - कहानीनिरूपणनाम ॥ इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास पांचवां - कहानीनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ कोई एक दोनों जन । पृथ्वी घूमती उदासीन । करते हुये कालक्रमण । कथा आरंभ किये ॥१॥ श्रोता पूछे वक्ता से । कहानी कहो अच्छी सी । वक्ता कहे श्रोता से । सुनो सावधानी से ॥२॥ एक स्त्री पुरुष थे । बहुप्रीति दोनों में । एक समान ही व्यवहार करते । भिन्नता नहीं ॥३॥ ऐसा कुछ काल बीता । उन्हें एक पुत्र हुआ । कार्यकर्ता और भला । सभी विषयों में ॥४॥ आगे उसे भी हुआ एक कुमर । वह पिता से भी अधिक आतुर । कुछ तदर्थ चतुर । व्यापकता से ॥५॥उसने उदंड विस्तार किया । बहुत कन्या पुत्रों को जन्म दिया । अपार लोकसंचय किया । नाना प्रकार से ॥६॥ उसका पुत्र जेष्ठ । वह अज्ञानी और कुपित । अथवा भूल होते ही नेमस्त । संहार करे ॥७॥ पिता चुपचाप बैठा । लडके ने बहुत विस्तार किया । सर्वज्ञ ज्ञाता भला । जेष्ठ पुत्र ॥८॥ पोता उसके आधा जाने । प्रपौत्र तो कुछ भी ना जाने । भूल होते ही संहार करे । महाक्रोधी ॥९॥ पुत्र सबका पालन करे। पोता ऊपरी ऊपर कमाये । प्रपौत्र भूल होते ही संहार करे । अकस्मात् ॥१०॥नेमस्त रूप में वंश बढ़ा । विस्तार प्रचंड ही हुआ । ऐसा बहुत समय बीता । आनंदरूप ॥११॥ विस्तार बढ़ा गिनती होये ना । पिता को कोई भी माने ना । परस्पर संशय मन में आना । बढ़ा बहुत ॥१२॥ उदंड गृहकलह शुरू हुआ । उससे कितनों का संहार हुआ । बड़ो बड़ो में संकट हुआ । निर्बंध हुये ॥१३॥अज्ञानवश डूबा आचार । फिर सभी का हुआ संहार । जैसे यादवों का हुआ नाश । उन्मत्ता से ॥१४॥ पिता पुत्र पौत्र प्रपौत्र । सब का हुआ निःपात । कन्या पुत्र हेत मात । अणुमात्र नहीं ॥१५॥ऐसी कहानी का जिसने विवरण किया । वह जन्म से मुक्त हुआ । श्रोता वक्ता धन्य हुआ । प्रचीति से ॥१६॥ ऐसी कहानी अपूर्व जो यह । होती रहती सदैव । इतना कहकर गोसावी वह । शांत हुये ॥१७॥ हमारी कहानी हो समाप्त । तुम्हारे अंतरंग में हो व्याप्त । यह कहानी करे विवरित । कोई तो ॥१८॥गिरते पडते याद आया । इतना संकलित कहा । न्यूनपूर्ण जो क्षमा । करनी चाहिये श्रोताओं ॥१९॥ ऐसी कहानी निरंतर । विवेक से सुनते जो नर । दास कहे जगदुद्धार । वे ही करते ॥२०॥ उस जगदुद्धार के लक्षण । कहे करना चाहिये विवरण । सार चुनो निरूपण । इसे कहते ॥२१॥ निरूपण में करे विवरण प्रत्यय से । नाना तात्त्विक प्रश्न सुलझायें । समझते समझते हो जाये । निःसंदेह ॥२२॥ विवरण कर देखें तो अष्टदेह । आगे सहज ही निःसंदेह । अखंड निरूपण से रहे । समाधान ॥२३॥ तत्त्वों का कोलाहल जहां रहें । शांति वहां कैसे रहे । इस कारण उपाधि से दूर रहे । कोई एक ॥२४॥ऐसा सूक्ष्म संवाद । किया वही पुनः करें विशद । अगले समास में लघुबोध । सुनें सावधानी से ॥२५॥इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे कहानीनिरूपणनाम समास पांचवां ॥५॥ N/A References : N/A Last Updated : December 08, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP