नामरूप - ॥ समास पांचवां - कहानीनिरूपणनाम ॥

इस ग्रंथराज के गर्भ में अनेक आध्यात्मिक ग्रंथों के अंतर्गत सर्वांगीण निरूपण समाया हुआ है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
कोई एक दोनों जन । पृथ्वी घूमती उदासीन । करते हुये कालक्रमण । कथा आरंभ किये ॥१॥
श्रोता पूछे वक्ता से । कहानी कहो अच्छी सी । वक्ता कहे श्रोता से । सुनो सावधानी से ॥२॥
एक स्त्री पुरुष थे । बहुप्रीति दोनों में । एक समान ही व्यवहार करते । भिन्नता नहीं ॥३॥
ऐसा कुछ काल बीता । उन्हें एक पुत्र हुआ । कार्यकर्ता और भला । सभी विषयों में ॥४॥
आगे उसे भी हुआ एक कुमर । वह पिता से भी अधिक आतुर । कुछ तदर्थ चतुर । व्यापकता से ॥५॥
उसने उदंड विस्तार किया । बहुत कन्या पुत्रों को जन्म दिया । अपार लोकसंचय किया । नाना प्रकार से ॥६॥
उसका पुत्र जेष्ठ । वह अज्ञानी और कुपित । अथवा भूल होते ही नेमस्त । संहार करे ॥७॥
पिता चुपचाप बैठा । लडके ने बहुत विस्तार किया । सर्वज्ञ ज्ञाता भला । जेष्ठ पुत्र ॥८॥
पोता उसके आधा जाने । प्रपौत्र तो कुछ भी ना जाने । भूल होते ही संहार करे । महाक्रोधी ॥९॥
पुत्र सबका पालन करे। पोता ऊपरी ऊपर कमाये । प्रपौत्र भूल होते ही संहार करे । अकस्मात् ॥१०॥
नेमस्त रूप में वंश बढ़ा । विस्तार प्रचंड ही हुआ । ऐसा बहुत समय बीता । आनंदरूप ॥११॥
विस्तार बढ़ा गिनती होये ना । पिता को कोई भी माने ना । परस्पर संशय मन में आना । बढ़ा बहुत ॥१२॥
उदंड गृहकलह शुरू हुआ । उससे कितनों का संहार हुआ । बड़ो बड़ो में संकट हुआ । निर्बंध हुये ॥१३॥
अज्ञानवश डूबा आचार । फिर सभी का हुआ संहार । जैसे यादवों का हुआ नाश । उन्मत्ता से ॥१४॥
पिता पुत्र पौत्र प्रपौत्र । सब का हुआ निःपात । कन्या पुत्र हेत मात । अणुमात्र नहीं ॥१५॥
ऐसी कहानी का जिसने विवरण किया । वह जन्म से मुक्त हुआ । श्रोता वक्ता धन्य हुआ । प्रचीति से ॥१६॥
ऐसी कहानी अपूर्व जो यह । होती रहती सदैव । इतना कहकर गोसावी वह । शांत हुये ॥१७॥
हमारी कहानी हो समाप्त । तुम्हारे अंतरंग में हो व्याप्त । यह कहानी करे विवरित । कोई तो ॥१८॥
गिरते पडते याद आया । इतना संकलित कहा । न्यूनपूर्ण जो क्षमा । करनी चाहिये श्रोताओं ॥१९॥
ऐसी कहानी निरंतर । विवेक से सुनते जो नर । दास कहे जगदुद्धार । वे ही करते ॥२०॥
उस जगदुद्धार के लक्षण । कहे करना चाहिये विवरण । सार चुनो निरूपण । इसे कहते ॥२१॥
निरूपण में करे विवरण प्रत्यय से । नाना तात्त्विक प्रश्न सुलझायें । समझते समझते हो जाये । निःसंदेह ॥२२॥
विवरण कर देखें तो अष्टदेह । आगे सहज ही निःसंदेह । अखंड निरूपण से रहे । समाधान ॥२३॥
तत्त्वों का कोलाहल जहां रहें । शांति वहां कैसे रहे । इस कारण उपाधि से दूर रहे । कोई एक ॥२४॥
ऐसा सूक्ष्म संवाद । किया वही पुनः करें विशद । अगले समास में लघुबोध । सुनें सावधानी से ॥२५॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे कहानीनिरूपणनाम समास पांचवां ॥५॥

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Last Updated : December 08, 2023

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