जगज्जोतिनाम - ॥ समास सातवां - सगुणभजननिरूपणनाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
अवतार आदि ज्ञानी संत । सारसार विचार से मुक्त । चलता उनका सामर्थ्य । किस तरह ॥१॥
यह आशंका श्रोताओं की । देखें तो प्रश्न किया नेक ही । सुने सावधानी । से कहे वक्ता ॥२॥
ज्ञानी मुक्त हो गये । बाद में उनका सामर्थ्य चले । परंतु वे नहीं आये । वासना धर कर ॥३॥
लोगों को होता चमत्कार । लोग मानते साचार । परंतु इसका विचार । होना चाहिये ॥४॥
जीते जी कितने ही ना जानते । जनों में चमत्कार होते । ऐसों की सद्य प्रचीति देखें । जांच परखकर ॥५॥
वह तो स्वयं नहीं गया । लोगों ने प्रत्यक्ष देखा । ऐसा यह चमत्कार हुआ । इसको क्या कहें ॥६॥
फिर भी यह लोगों का भावार्थ । भाविकों को देव यथार्थ । अन्यत्र कल्पना व्यर्थ । कुतर्क की ॥७॥
भाया सो स्वप्न में देखा । परंतु क्या वहां आया । कहोगे उसने याद किया । तो फिर द्रव्य दिखे क्यों ॥८॥
एवं अपनी कल्पना । स्वप्न में आते पदार्थ नाना । मगर वे पदार्थ चलते ना । अथवा याद नहीं आते ॥९॥
यहां टूटी आशंका । ज्ञाता का जन्म न करें कल्पना । समझे ना फिर भी विवेक द्वारा । देखें अच्छी तरह ॥१०॥
ज्ञानी मुक्त होकर गये । उनका सामर्थ्य यूं ही चले । क्योंकि वे पुण्यमार्ग पर चले । इस कारण ॥११॥
इसलिये पुण्यमार्ग पर चलें । भजन देव का बढायें । न्याय छोड़कर न जायें । अन्याय पथ से ॥१२॥
नाना पुरश्चरण करें । नाना तीर्थाटन घूमें । नाना सामर्थ्य संपादन करें । वैराग्य बल से ॥१३॥
निश्चय वस्तु के प्रति होये । तभी ज्ञानमार्ग से ही सामर्थ्य चढ़े । कुछ एक एकांत टूटे । ऐसा न करें ॥१४॥
एक गुरू एक देव । कहीं तो भी रखें भाव । भावार्थ न हो तो व्यर्थ । सब कुछ ॥१५॥
निर्गुण का ज्ञान हुआ । इस कारण सगुण का अलक्ष्य किया । फिर वह ज्ञाता लूटा गया । दोनों ओर से ॥१६॥
नहीं भक्ति नहीं ज्ञान । बीच में ही फैला अभिमान । इस कारण जपध्यान । छोडें ही नहीं ॥१७॥
जो छोड़ेगा सगुण भजन । होगा अपयशी पाकर भी ज्ञान । सगुण को इस कारण । छोड़ें ही नही ॥१८॥
निष्काम बुद्धि से भजन । त्रिलोक में नहीं होती तुलना । समर्थ बिन होता ना । निष्काम भजन ॥१९॥
कामना से फल मिले । निष्काम भजन से भगवंत जुड़े । फल भगवंत कहां के । कहां महदंतर ॥२०॥
नाना फल पास देव के । और फल अंतर करे भगवंत से । परमेश्वर को इस कारण से । निष्काम भजें ॥२१॥
निष्काम भजन का फल निराला । असीमित है सामर्थ्य मिलता । वहां बेचारे फलों का । क्या काम ॥२२॥
भक्त जो मन में धरें । बह भगवान स्वयं ही करें । वहां कभी ना लगे । अलग भाव ॥२३॥
दोनों सामर्थ्य की होते एकता । काल से न सम्हले सर्वथा । वहां इतरों की क्या कथा । कीटक न्याय से ॥२४॥
इस कारण निष्काम भजन । ऊपर विशेष ब्रह्मज्ञान । उसकी तुलना में त्रिभुवन । भी न्यून लगता ॥२५॥
यहां बुद्धि का प्रकाश । और न बढे विशेष । प्रताप कीर्ति और यश । निरंतर ॥२६॥
निरूपण का विचार । और हरिकथा का गजर । वहां होते तत्पर । प्राणीमात्र ॥२७॥
जहां भ्रष्टाचार होये ना । वह परमार्थ भी छुपेना । समाधान बिगडेना । निश्चय का ॥२८॥
सारासार विचार करना । न्यायअन्याय अखंड देखना । बुद्धि भगवंत का देना । पलटे ना ॥२९॥
भक्त भगवंत से अनन्य । उसे बुद्धि देता स्वयं । एतदर्थ भगवद् वचन । सुनो सावधानी से ॥३०॥

॥ श्लोकार्थ ॥ ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥छ॥

इस कारण सगुण भजन । ऊपर विशेष ब्रह्मज्ञान । प्रत्यय का समाधान । जग में दुर्लभ ॥३१॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे सगुणभजननिरूपणनाम समास सातवां ॥७॥

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Last Updated : December 05, 2023

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