जगज्जोतिनाम - ॥ समास दूसरा - देहआशंकानाम ॥

श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है ।


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
स्वामी ने विचार दिखाया । यहां विष्णु का अभाव दिखाई दिया । ब्रह्मा विष्णु महेश को वहां । स्थान नहीं ॥१॥
उत्पत्ति स्थिति संहार । ब्रह्मा विष्णु महेश्वर । इसका देखने पर विचार । प्रत्यय नहीं ॥२॥
ब्रह्मा उत्पत्तिकर्ता चार मुखों का । यहां प्रत्यय नहीं उसका । पालनकर्ता विष्णु चार भुजाओं का । उसे भी जाना सुनकर ॥३॥
महेश संहारकर्ता । यह भी प्रत्यय कैसे आता । लिंगमहिमा पुराण कथा में । उसे विपरीत ॥४॥
मूलमाया रचाई किसने । यह भी समझना चाहिये । तीनों देवों के रूप हुये । इस पार ॥५॥
मूलमाया लोकजननी । उससे गुणक्षोभिणी । गुणक्षोभिणी से त्रिगुणी । देवों का जन्म ॥६॥
ऐसे कहते शास्त्रकारक । और प्रवृत्ति के भी लोग । प्रत्यय पूछने पर कई एक । शोर मचाते ॥७॥
इसकारण उनसे पूछें ना । वे प्रत्यय दे सकें ना । प्रत्यय बिना प्रयत्न नाना । ठगबाजी ॥८॥
प्रचीति बिना वैद्य कहलाते । व्यर्थ ही उठापटक करते । उस मूर्ख को फंसाते । प्राणीमात्र ॥९॥
वैसा ही यह भी विचार । प्रत्यय से करें निर्धार । प्रत्यय न हो तो अंधकार । गुरुशिष्यों को ॥१०॥
खैर लोगों को कहें क्या । लोग कहते वही भला । परंतु स्वामी ने कहना । विशद करके ॥११॥
कहे कि देव ने माया बनाई । फिर भी देवों के रूप माया में आये । अगर कहें माया ने माया बनाई । फिर वह दूसरी नहीं ॥१२॥
अगर कहे भूतों ने बनाई । तो वह है भूतों की ही बनी । अगर कहे परब्रह्म ने बनाई । तो ब्रह्म में कर्तृत्व नहीं ॥१३॥
और माया है अगर सत्य । तो ब्रह्म के कर्तृत्व का प्रश्न । माया को कहें मिथ्य अगर । फिर कर्तृत्व कैसा ॥१४॥
अब यह सारा ही सुलझाये । और मन को प्रत्यय आये । ऐसे करना चाहिये । देव ने कृपालुता से ॥१५॥
शब्द मात्राबिना नहीं । मात्रा देहबिना नहीं । देह निर्माण होता नहीं । देहबिना ॥१६॥
उन देहों में नरदेह । उन नरदेहों में ब्राह्मणदेह । देखो उस ब्राह्मणदेह । को अधिकार वेदों में ॥१७॥
अस्तु वेद कहां से हुये । देह किससे बनाये । देह कैसे प्रकट हुये । किस प्रकार से ॥१८॥
ऐसा दृढ हुआ अनुमान । करना चाहिये समाधान । वक्ता कहें सावधान । हो जायें अब ॥१९॥
प्रत्यय देखो तो संकट । सब कुछ होता उलटापलट । अनुमान से होता व्यतीत । काल घडी हर घडी ॥२०॥
लोकरीति शास्त्रनिर्णय । इनमें बहुधा निश्चय । इस कारण एक प्रत्यय । आयेगा नहीं ॥२१॥
अब शास्त्रों से संकोच करे । तो यह गुत्थी ना छूटे । गुत्थी को सुलझाये । तो शास्त्रभेद दिखे ॥२२॥
शास्त्ररक्षा कर प्रत्यय लाया । पूर्वपक्ष त्यागकर सिद्धांत देखा । सयाना मूर्ख समझाया । एक वचन से ॥२३॥
शास्त्रों में ही पूर्वपक्ष कहा । पूर्वपक्ष को कहा जाये मिथ्या । विचार देखें तो हमारा । दोष नहीं ॥२४॥
तथापि कहूं कुछ एक । शास्त्र की रक्षा कर कौतुक । श्रोताओं ने सादर विवेक । करना चाहिये ॥२५॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे देहआशंकानाम समास दूसरा ॥२॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 05, 2023

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP