हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|गुणरूपनाम| ॥ समास चौथा - जाणपणनिरूपणनाम ॥ गुणरूपनाम ॥ समास पहला - आशकानाम ॥ ॥ समास दूसरा - ब्रह्मनिरूपणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - निःसंगदेहनिरूपणनाम ॥ ॥ समास चौथा - जाणपणनिरूपणनाम ॥ ॥ समास पांचवां - अनुमाननिरसननाम ॥ ॥ समास छठवां - गुणरूपनिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवां - विकल्पनिरसननाम ॥ ॥ समास आठवां - देहांतनिरूपणनाम ॥ ॥ समास नववां - संदेहवारणनाम ॥ ॥ समास दसवां - स्थितिनिरूपणनाम ॥ गुणरूपनाम - ॥ समास चौथा - जाणपणनिरूपणनाम ॥ श्रीसमर्थ ने इस सम्पूर्ण ग्रंथ की रचना एवं शैली मुख्यत: श्रवण के ठोस नींव पर की है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास चौथा - जाणपणनिरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पृथ्वी में लोग सकल । कोई संपन्न कोई दुर्बल । कोई निर्मल कोई अमंगल । निमित्त क्या ॥१॥ कई एक राजा हो रहते । कई एक दरिद्र भोगते । कई एक उत्तम स्थिति पाते । कई एक अधमाधम ॥२॥ऐसा हुआ किस कारण । मुझे देना चाहिये निरूपण । इसका उत्तर श्रवण । करना चाहिये श्रोताओं ने ॥३॥इन सबकी गुणों से गति । सगुण भोगते भाग्यश्री । अवगुणों को दरिद्र प्राप्ति । यदर्थि संदेह नहीं ॥४॥जो जो जहां पैदा हुआ । वह उस व्यवसाय में लगा । उसे लोग कहते भला । कार्यकर्ता ॥५॥ज्ञाता वह कार्य करे । नासमझ कुछ भी न करे । ज्ञाता पेट भरे । नासमझ भीख मांगे ॥६॥यह तो प्रकट ही रहे । जनों में देखें तो प्रत्यक्ष दिखे । विद्या बिन अभागे रहते । विद्या है तो भाग्यवंत ॥७॥अपनी विद्या न सीखेगा । तो क्या भीख मांगेगा। ऐसा उपदेश जहां वहां । वरिष्ठ देते ॥८॥अभागा है जेष्ठ । और समर्थ है कनिष्ठ । क्योंकि विद्या से है श्रेष्ठ । इस कारण ॥९॥विद्या नहीं बुद्धि नहीं । विवेक नहीं साक्षेप नहीं । कुशलता नहीं कारोबार नहीं । इस कारण प्राणी अभागा ॥१०॥ इतने सब बसे जहां । वैभव की कमी नहीं वहां । वैभव छोड़ने पर पीछे पड़ता । अपयश ॥११॥जेष्ठ समर्थ और कनिष्ठ भिखारी । सुनो यह कथा किस तरह की । जेष्ठ समान न करे कारोबारी । इस कारण ॥१२॥ जैसी विद्या वैसी चाह । जैसा कारोबार वैसा वैभव । प्रतिष्ठा समान हावभाव । लोग करते ॥१३॥विद्या नहीं वैभव नहीं । वहां निर्मलता कैसे रहे। अभागेपन से बुरा दिखे । मैला और विकारी ॥१४॥पशु पक्षी गुणवंत । उन पर कृपा करते समर्थ । गुण ना होने पर जीना व्यर्थ । प्राणिमात्रों का ॥१५॥गुण नहीं गौरव नहीं । सामर्थ्य नहीं महत्त्व नहीं । कारोबार नहीं वैभव नहीं । प्राणिमात्र को ॥१६॥इस कारण उत्तम गुण । वे ही भाग्य के लक्षण । लक्षण बिना अवलक्षण । सहज ही आये ॥१७॥जनों में जो ज्ञाता । उसे रहती मान्यता । रहने पर कोई एक विद्या । महत्व पाता ॥१८॥प्रपंच अथवा परमार्थ । ज्ञाता वही समर्थ । अज्ञानी को जानो व्यर्थ । निःकारण ॥१९॥अज्ञानता में बिच्छू सर्प डसे । अज्ञानता में जीवघात होये । अज्ञानता में कार्य नष्ट होंयें । कोई एक ॥२०॥अज्ञानवश प्राणी भ्रमित होये । अज्ञानवश सनकी होये। अज्ञानवश ठो भूलें । पदार्थ कुछ भी ॥२१॥अज्ञानी को बैरी जीतता । अज्ञानी को अपाय होता । अज्ञानी का संहार होता । जीवनाश ॥२२॥अपना स्वहित न समझे जन । यातना भोगते इस कारण । अज्ञानी की ज्ञानबिन । अधोगति ॥२३॥माया ब्रह्म जीवशिव । सारासार भावाभाव । ज्ञाता को होता व्यर्थ । जन्ममरण ॥२४॥कर्ता कौन निश्चय से । बद्ध मोक्ष वह किस से । जानता जो प्राणी ऐसे । मुक्ति पाये ॥२५॥जानियें देव निर्गुण । जानिये मैं हूं कौन । जानिये अनन्य लक्षण । याने मुक्त ॥२६॥जितना जानकर त्याग दिया । उतना दृश्य पार किया । ज्ञाता का ज्ञात होते ही टूट गया । मूल मैंपन का ॥२७॥ज्ञान बिन कोटि से ऊपर । साधन किये अपरंपार । तो भी मोक्ष का अधिकार । मिलेगा नहीं ॥२८॥मायाब्रह्म पहचानिये । अपने को स्वयं जाने । इतने से ही सहजता से । चूके जन्म ॥२९॥जानने पर समर्थ का अंतर । प्रसंग में व्यवहार तदनंतर । भाग्य वैभव अपार । उसे ही मिलता ॥३०॥इसलिये जानना नही सामान्य । ज्ञाता होता है सर्वमान्य । कुछ भी ना जानें तो अमान्य । करते सभी ॥३१॥पदार्थ को देख भूत माना । अज्ञानवश झाड़फूंक से प्राण गंवाया । खटाटोप है मिथ्या । ज्ञाता जानते ॥३२॥ज्ञाता को समझे मर्म । अज्ञानी के खोटे कर्म । सभी कुछ धर्माधर्म । ज्ञाता को समझे ॥३३॥अज्ञानी को यमयातना । ज्ञाता को कुछ भी होये ना । सकल जानकर विवंचना । करे वह मुक्त ॥३४॥अज्ञानवश कुछ राजकारण । अपमान कर लेते प्राण । अज्ञानता से कठिन वर्तमान । सबका होता ॥३५॥इस कारण है अज्ञान खोटा । अज्ञानी प्राणी वह करंटा । ज्ञान विवरण करने से टूटता । जन्ममरण ॥३६॥इस कारण अलक्ष्य न करें। जानना ही है उपाय । ज्ञाता को मिलती राह । परलोक की ॥३७॥जानना सब को प्रमाण । मूर्ख को लगे अप्रमाण । मगर अलिप्तपन का चिन्ह । जानने पर समझे ॥३८॥एक त्यागा जो ज्ञातापन । प्राणी को छुड़ायेगा कौन । कोई भी कार्य ज्ञानबिन । तो समझे नहीं ॥३९॥ ज्ञातृत्व ने स्मरण । अज्ञातृत्व याने विस्मरण । दोनों मे कौन प्रमाण । सयाने समझते ॥४०॥ज्ञाता जन वे सयाने । अज्ञानी पागल दीनता भरे । विज्ञान भी ज्ञातृत्व से । समझ में आये ॥४१॥जहां ज्ञातापन कुंठित हुआ । वहां बोलना ही टूट गया । हेतुरहित प्राप्त हुआ । समाधान ॥४२॥श्रोतां कहते यह प्रमाण । हुआ परम समाधान । परंतु पिंडब्रह्मांड ऐक्यलक्षण । वे निरूपित कीजिये ॥४३॥ब्रह्मांड में वही जो बसे पिंड में । बहुत कहते ऐसे । परंतु इसका प्रत्यय समझे । ऐसा करना चाहिये ॥४४॥इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे जाणपणनिरूपणनाम समास चौथा ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : December 04, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP