हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|स्तवणनाम| ॥ समास छठवां श्रोतेस्तवननाम ॥ स्तवणनाम अनुक्रमणिका ग्रंथ परिचय ॥ समास पहला मंगलाचरण ॥ ॥ समास दूसरा गणेशस्तवननाम ॥ ॥ समास तीसरा शारदास्तवननाम । ॥ समास चौथा सद्गुरुस्तवननाम । ॥ समास पांचवा संतस्तवननाम ॥ ॥ समास छठवां श्रोतेस्तवननाम ॥ ॥ समास सातवा कवीश्वरस्तवननाम ॥ ॥ समास आठवां सभास्तवननाम ॥ ॥ समास नववां परमार्थस्तवननाम ॥ ॥ समास दसवां नरदेहस्तवननिरूपणनाम ॥ स्तवणनाम - ॥ समास छठवां श्रोतेस्तवननाम ॥ इस ग्रंथ के श्रवण से ही ‘श्रीमत’ और ‘लोकमत’ की पहचान मनुष्य को होगी. Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास छठवां श्रोतेस्तवननाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ अब वंदन करूं श्रोता जन । भक्त ज्ञानी संत सज्जन । विरक्त योगी गुणसंपन्न । सत्यवादी ॥१॥ सत्त्व के सागर एक बुद्धि के आगर एक । श्रोते खानि एक । नाना शब्दरत्नों के ॥२॥ जो नाना अर्थामृत के भोक्ता । जो वक्त पर वक्तों के भी वक्ता । नाना संशयों के छेदन कर्ता । निश्र्चई पुरुष ॥३॥ जिनकी धारणा अपार । जो ईश्वर के अवतार । अथवा प्रत्यक्ष सुरवर । बैठे हैं जैसे ॥४॥ अथवा ये ऋषेश्वरों की मंडली । शांत स्वरूप सत्त्व बलशाली । जिनसे सभामंडली । की परम शोभा ॥५॥ हृदय में वेदगर्भ का विलास । मुख में सरस्वती का विलास । साहित्य बोलते ही भास । होता देवगुरू का ॥६॥ जो पवित्रता में वैश्वानर । जो स्फूर्ति किरणों के दिनकर । ज्ञातागुण से दृष्टि के समक्ष । ब्रह्मांड न आता ॥७॥ जो अखंड सावधान । जिन्हें त्रिकाल का ज्ञान । सर्वकाल निराभिमान । आत्मज्ञानी ॥८॥ जिनके दृष्टि से निकल गया । ऐसे कुछ भी बचा न रहा । पदार्थमात्र पर लक्ष्य किया । मन जिन्होंने ॥९॥ जो जो भी करे स्मरण । उसका उन्हें पूर्व से ही ज्ञान । वहां कैसा अनुवाद कथन । ज्ञाता बनकर करे ॥१०॥ परंतु ये गुणग्राहक । इस कारण कहता हूं निःशंक । भाग्य पुरुष क्या एक । नहीं करते सेवन ॥११॥सदा करते सेवन दिव्यान्न । परिवर्तन के लिये सादा अन्न । वैसे ही मेरे वचन । पराकृत से ॥१२॥अपने शक्ति अनुसार । भाव से पूजें परमेश्वर । परंतु पूजो नहीं यह विचार । कहीं भी नहीं ॥१३॥ वैसे मैं एक वाक्दुर्बल । श्रोता परमेश्वर ही केवल । इसकी पूजा असंबद्ध वाचाल । करना चाहूं ॥१४॥ व्युत्पत्ति नहीं कला नहीं । चातुर्य नही प्रबंध नहीं । भक्ति ज्ञान वैराग्य नहीं । मधुरता नहीं वचनों की ॥१५॥ ऐसा मेरा वाग्विलास । निःशंक कहता हूं सावकाश । भाव का भोक्ता जगदीश । इस कारण ॥१६॥ आप श्रोता जगदीशमूर्ति । वहां कितनी मेरी व्युत्पत्ति । बुद्धिहीन अल्पमति । करता हूं धृष्टता ॥१७॥ समर्थ का पुत्र मूर्ख जगत में । मगर सामर्थ्य है उसके अंग में । आप संतों से धृष्टता मैं । करता हूं इस कारण ॥१८॥ व्याघ्र सिंह भयानक । देखकर भयचकित लोक । तो भी उनके शावक निःशंक । उनके सम्मुख खेलते ॥१९॥ वैसा मैं संतों का अंकित । बोलता आप संतों के साथ । तो भी मेरी चिंता आपका चित्त । करेगा ही निश्चित ॥२०॥ सदोष कहे अगर अपने ही स्वजन । तो उसका करना पडता संपादन । परंतु कुछ ना करना पडा कथन । न्यून वह पूर्ण कीजिये ॥२१॥ यह तो प्रीति का लक्षण । सहजता से करे मन । वैसे आप संतसज्जन । मां बाप विश्व के ॥२२॥ जानकर जीव में मेरा आशय । अब उचित वही कीजिये । आगे कथा पर अवधान दीजिये । कहे दासानुदास ॥२३॥ इति श्रीदासबोधे गुरूशिष्यसंवादे श्रोतेस्तवननाम समास छठवां ॥६॥ N/A References : N/A Last Updated : November 27, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP