हिन्दी पद - पदे १ से ५

संत नामदेवजीने हिन्दी में भी बहुत सुंदर और भक्तिपूर्ण रचनायें की है ।


१.
उत्तम नरतनु पायरे भाई । गाफल क्यौं हुवा दिवाने जू ॥१॥
सावध सावध भजले रे राजा । नही आवे ऐशी घडी जू ॥ध्रु०॥
जिन्ने जन डारा है तुजकूं । बिसर गया उनका ध्यान जू ॥२॥
फिर पस्तयेगा दगा पायेगा । निकल जायेगा अवसान जू ॥३॥
क्य अकरना सो आइ करले । फिर नही ऐसी जोडी जू ॥४॥
हंस जायेगा पिंजरा पडेगा । तुज कैसी भूल पडी जू ॥५॥
सुन्नेका मंदिर मेहेल बनाया । धन संपत नहि तेरी जू ॥६॥
मा भैन और जोरु लडके । सुखके खातर सारे जू ॥७॥
अकेले आना अकेले जाना । सब झुटी माया पसरी जू ॥८॥
लख चौर्‍यांसीका फेरा आवेगा । तब चुपी बैठे बदे जू ॥९॥
फिरता फिरतां जीव दमता है बाबा । कोन रखे तेरे तनकू जू ॥१०॥
जिस माय उदरीं जन्म लीयेगा । तेरे संगत दु:ख उनकू जू ॥११॥
गरभीकी यातना सुनलेरे भाई । नवमास बंधन डारे जू ॥१२॥
नहीं जगा हलने चलनेकु बाबा । छुडानेकु कोई नहीं आवे जू ॥१३॥
आगलगी क्या देखत अंधे । कायके खातर सोया जू ॥१४॥
ऐसी बात सुनके नामा सावध हुवा । गुरुके पाव मिठी डारी जू ॥१५॥
मै अनाथ दुबले शरण भये तुजकू । आब जो मेरी लाज राखी जू ॥१६॥
२.
ज्यो कोई वसुधा दान दे आवे । पूर्ण जज्ञ करें करावे ॥
तीरथ बरथ करे स्नान । नही नही हरीनाम समान ॥१॥
ज्यो कोई ज्यावे हीमालये गले । काशी करवत लेकर मरे ॥
द्सवे द्वारे काढे प्राण । नही नहीं हरिनाम समान ॥२॥
काया कष्ठावे कलेवर जीवे । ना कुच खावे ना कुच पीवे ।
गगन मंडळमों जोग ध्यान । नही नही हरिमान समान ॥३॥
आगली पिछली बात बनावें । नेम धरममें मन छुपावे ।
च्यारो बेद पुढे पुरान । नही  नही हरिनाम समान ॥४॥
सद्‍ग्रुरूकी जद कृपा भई । प्रेम भगत हरदे धर लाई ।
कहे नामदेव भज भगवान । नही नही हरिनाम समान ॥५॥
३.  
जहा तुम गीरीवर ताहां हम मोरा । जहं तुम चंदा तहां मै चकोरा ॥१॥
जहां तुम तरुवर तहां मै पंछी । जहां तुम सरोवर तहांमै मच्छी ॥धृ०॥
जहां तुम दीवा तहां मै बत्ती । जहां तुम पंथी तहां मै साती ॥२॥
बेलके पाती शंकर पूजा । नामदेव कहे भाव नही दुजा ॥३॥
४.
हीन दिन जात मोरी पंढरीके राया । ऐसा तुमनें नामा दरजी कायकु बनाया ॥१॥
टाळ बिना  लेके नामा राऊलमे गया । पूजा करते बम्हन उन्नें बाहेर ढकाया ॥२॥
देवलके पिछे नामा अल्लक पुकारे । जदिर जीदर नामा उदर देऊळ ही फिरे ॥३॥
नाना बर्ण गवा उनका एक बर्ण दूध । तुम कहाके बम्हान हम कहाके सुद ॥४॥
मन मेरी सुई तन मेरा धागा । खेचरजीके चरनपर नामा सिंपी लागा ॥५॥
५.
दूध पियो गोविंद लाला ॥धु०॥
काला बछरा कपिला गाईं दूध दुहावत नामा जाई ॥१॥
सोनेका गडवा दूधने भरिया । पिवो नारायण आगे धरिया ॥२॥
परभुवनकी मुरत दूध न पिवत । सीर पछार नामा रोवत ॥३॥
ऐसा भगत मै कबु न पाया । नामदेवनें देव हसाया ॥४॥

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Last Updated : November 11, 2016

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