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पुरोडाश
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پُروڈاش
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پُروڑاش
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புரோடாஸ்
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পুরোডাশ
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ਪੁਰੋਡਾਸ਼
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ପୁରୋଡାଶ
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પુરોડાશ
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പുരോടശ
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అవిస్సు
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यज्ञ पुरोडाश कावळयास काय
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పిండం
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पुरोडाशः
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అవిశ్న
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हवनीयद्रव्यशेष
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यथापुरोडाशम्
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शृतावदान
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अपिवाप
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पुरस्तात्पुरोडाश
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गर्भपुरोडाश
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ऐंद्राग्न
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बृगल
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भक्तीद्यावापृथिवी
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अरण्येऽनूच्य
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पुरोडाशीय
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पौरोदाश
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पुरोडाश्य
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अद्ग
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पौरोडाश
Meanings: 3; in Dictionaries: 2
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दिवसे
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तृप्र
Meanings: 12; in Dictionaries: 3
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अष्टाकपाल
Meanings: 11; in Dictionaries: 5
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और्ध्वदेहिकादिप्रकरणम् - अथब्रह्मान्वाधानम्
ऋग्वेदीयब्रह्मकर्मसमुच्चयः
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धर्मसिंधु - ब्रह्मान्वाधान
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे.
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ब्रध्न
Meanings: 31; in Dictionaries: 3
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धर्मसिंधु - आग्रयणगौणप्रकार
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे. This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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मुक्तेश्वरांची कविता
' अभंग ' म्हणजे संतकवींनी समाजजागृतीसाठी केलेल्या रसाळ रचना.
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अध्याय ७४ वा - श्लोक ३१ ते ३५
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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एकनाथी भागवत - श्लोक १३ वा
नाथमहाराजांचा हा प्रासादिक ग्रंथ परमपूज्य असल्याने यावर भक्तजनांची आदरबुद्धी आहे.
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धर्मसिंधु - यमलजननशान्ति
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे. This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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कपाल
Meanings: 100; in Dictionaries: 13
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शंस्
Meanings: 28; in Dictionaries: 4
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निर्वाणप्रकरणं - सर्गः १०९
योगवाशिष्ठ महारामायण संस्कृत साहित्यामध्ये अद्वैत वेदान्त विषयावरील एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ आहे. ह्याचे रचयिता आहेत - वशिष्ठ
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प्रायश्चित्तमयूख - प्रायश्चित्त १०३ वे
विधिविहित नित्यकर्म (संध्यादि) न केल्यामुळे, पाप केल्याने व सुरा इत्यादि निषिद्ध पदार्थांचे सेवन केल्यानें त्याच्या शुद्धिसाठी जें कर्म सांगण्यात येतें तें प्रायश्चित्त होय.
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स्कंध ११ वा - अध्याय १८ वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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मुद्गल भक्त
भक्तो और महात्माओंके चरित्र मनन करनेसे हृदयमे पवित्र भावोंकी स्फूर्ति होती है ।
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धर्मसिंधु - आग्रयणकाल
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे. This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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एकनाथी भागवत - श्लोक ८ वा
नाथमहाराजांचा हा प्रासादिक ग्रंथ परमपूज्य असल्याने यावर भक्तजनांची आदरबुद्धी आहे.
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धर्मसिंधु - पुनरुपनयन
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे. This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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श्रीविष्णुपुराण - प्रथम अंश - अध्याय ८
भारतीय जीवन-धारा में पुराणों का महत्वपूर्ण स्थान है, पुराण भक्ति ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है,वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है।
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