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सहजं किल यद्विनिंदितम् न खलु तत्कर्म विर्वजनीयम्

   
Script: Devanagari

सहजं किल यद्विनिंदितम् न खलु तत्कर्म विर्वजनीयम्

   पशुमारणकर्मदारुणो अनुकंपामृदुरेव श्रोत्रियः l-शाकुंतल. जें वरुन दोषास्पद दिसलें तरी तें प्रत्येक कर्म वाईटच असतें असें नाहीं. -गांगा. २४५.

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सहजं किल यद्विनिंदितम् न खलु तत्कर्म विर्वजनीयम्   खलु      किल   न न   ن(न)   अनंतपारं किल शब्दशास्त्रं   उद्योगः खलु कर्तव्यः।   certainly   काम न आना   बाल बाँका नहीं करना   वरं प्राणत्यागो न पुनरधमानामुपगमः।   कामी न येणे   न देवाय न धर्माय   न भूतो न भविष्यति   आरंभशूराः खलु दाक्षिणात्याः   न पुत्रो न पुत्री   न बिगुमा   व्यंजनाक्षर न   व्यञ्जनाक्षर न   न अक्षर   न व्यंजन   कफी न   गोबाय न   गौथुम न   संग्रा न   दालान न   जथुम न   बांग्ला न   बिखुमजोनि न   लाइफां न   रान्दिनि न   फाक्का न   न उष्टावलेला   न कपलेला   न गायसन   न गैजारङै   न जोखलेले   न पाहण्याजोगा   न बानायनाय   न मालिक   न रैखागिरि   पारलामेन्ट न   पन्चायत न   न बिगोमाजो   न लोटलेला   न नेग्रा   न भोगलेला   न मागता   न मोजलेला   न लुनाय   न उतरणें   न खाण्याजोगा   न गायसनजा   न बां   बायखोन्दा न   कामातुराणां न भयं न लज्‍जा।   अर्थातुराणां न पिता न बंधुः   बांला न   न तुटणारा   न बोलणे   आफाद न   अट्टालिखा न   थालानै न   बिहावनि न   लिर(न)   न उडणारा   न कळलेला   न कापलेला   न केलेला   न खाल्लेला   न चाखलेला   न तासलेला   न तोललेले   न थांबविण्याजोगा   न नमलेला   न नांगरलेला   न पाहण्यासारखा   न फसं   न बरसणारा   न भरलेला   न मस्तवलेला   न मापलेला   न वापरलेला   न समजणारा   न सांगण्याजोगा   दोनथुमग्रा न   न बिगोमा   न बेंग्रा   आलासि-न   खासोर न   संसद न   मोब्लिब न   फावथाइ न   न घडण्याजोगा   न स्त्रीस्वातन्त्र्यमर्हति।   हाथरखि न   न गैजारङि   इष्क स्वसंतोषें घडे, सांगण्यानें न जडे   न भीतो मरणादस्मि केवल्म दूषितं यशः।   
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