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वयं पश्र्चाधिकं शतम्

   
Script: Devanagari

वयं पश्र्चाधिकं शतम्

   (सं.) कौरव शंभर होते व पांडव पांच होते. यांचें परस्परांत वैर होतें पण परकीय शत्रूशीं झुंजतांना ते एक म्हणजे एकशेंपांच होऊन लढत. यावरुन आपसांत कितीहि दुही असली तरी परकीय शत्रुशीं एक होऊन विरोध करणें. ‘ परस्परविरोधेन वयं पत्र्च ते शतम् । अन्यैः साकं विरोधेन वयं पत्र्चोत्तरं शतम् ॥ -सम ५९.८.

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