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मृदंगो मुखलेपेन करोति मधुरध्वनिम्

   
Script: Devanagari

मृदंगो मुखलेपेन करोति मधुरध्वनिम्

   ( सं.) मृदंगाला पीठ लावल्यावरच त्यांच्यांतून गोड आवाज निघतो, याप्रमाणें तोंड दाबलें म्हणजे मनुष्य गोड बोलूं लागतों. सबंध श्लोक असा - को न याति वशं लोके मुखं पिंडेन पूरितः। मृदंगो मुखलेपन करोति मधुरध्वनिम् ॥

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मृदंगो मुखलेपेन करोति मधुरध्वनिम्   बुभुक्षितः किं न करोति पापं ।   यस्म नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किं?   विच्छायीकृ   वितुषीकृ   विधनीकृ   विपुलीकृ   विशेषणीकृ   सपिण्डीकृ   श्यामीकृ   कीर्तकः   कुतर्किन्   अग्रणीकृ   वाहनीकृ   विक्लवीकृ   विपक्षीकृ   विप्रतिकृ   विभिन्नीकृ   विरसीकृ   सरलीकृ   सविधीकृ   शिशिरीकृ   शुभीकृ   शूरीकृ   सज्यीकृ   सफलीकृ   संकेतीकृ   व्यङ्गुलीकृ   अन्तरीकृ   लिप्तीकृ   माञ्जिष्ठीकृ   मासीकृ   मनुजीकृ   मन्त्रवशीकृ   सार्थीकृ   सुधीकृ   स्फीतीकृ   अगोचरीकृ   ग्रासपात्रीकृ   घण्टानादः   विकटीकृ   विगुणीकृ   विप्रसात्कृ   विभागीकृ   विमदीकृ   विमानीकृ   विरथीकृ   विरहीकृ   विस्पष्टीकृ   सरसीकृ   साक्षिमात्राकृ   साक्षीकृ   शाकरसीकृ   शालीनीकृ   शीतलीकृ   शीतीकृ   शीत्कृ   शीर्णीकृ   शुक्लीकृ   शुचीकृ   शेखरीकृ   समच्छेदीकृ   समयीकृ   समीपीकृ   समृद्धीकृ   शोणीकृ   श्यामलीकृ   श्लक्ष्णीकृ   संविभागीकृ   वज्रसारीकृ   वलयीकृ   वहनीकृ   वह्निसात्कृ   वाजीकृ   व्यजनीकृ   व्यन्तीकृ   व्यर्थीकृ   व्यसनीकृ   व्याकोशीकृ   व्यूहीकृ   शकलाकृ   शयनीकृ   शरीकृ   रहीकृ   राजमार्गीकृ   भस्माकृ   भृकुटिः   मुकुलीकृ   यानीकृ   यौगिकः   मयूरनृत्यम्   बधिरीकृ   नित्यहोमः   सावयवीकृ   सिंहीकृ   सितीकृ   सुगुप्तीकृ   हस्तीकृ   हिमीकृ   सुसज्जीकृ   
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