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अध्याय ४ - सर्वतोभद्रचक्र

मानसागरी - अध्याय ४ - सर्वतोभद्रचक्र

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.


सर्वतोभद्रनामसे प्रसिद्ध त्रैलोक्यदीपन चक्रको कहता तूं जिससे सम्पूर्ण शुभाशुभ फलोंका प्रकाश होजाता है । एकके वेधमें धनका नाश, तीनके वेधमें भंग और चार ग्रहोंके वेधमें मृत्यु होवै । एक आदि क्रूरग्रहके वेधमें मनुष्योंको उद्वेग तथा हानि, रोग तथा मृत्यु क्रमसे कहे अर्थात् एक क्रूरग्रहके वेधसे उद्वेग, दोसे हानि, तीनसे रोग और चारके वेधसे मृत्यु होती है । जो जन्मनक्षत्रपर पापग्रह वेधैं तो चित्तको भ्रम होय और अक्षर पापग्रह वेधै तो हानि होय. जन्मस्वरको पापी वेधैं तो व्याधि उत्पन्न हो और जन्मतिथिपर पापग्रहोंका वेध होय तो भय हो और जन्मराशिपर पापग्रहोंका वेध होय तौ विघ्न होय और पांचों वेध होनेसे मृत्यु होती है । सूर्यका वेध होनेसे मनको ताप होय. मंगलका वेध होनेसे द्रव्यकी हानि होय. शनैश्चरसे रोगपीडा होय और राहु केतुके वेधसे विघ्न होता है । चन्द्रमाके वेधमें मिश्र जानना, शुक्रके वेधसे शत्रुभय, बुधके वेधसे सुन्दर बुद्धि होय और बृहस्पतिका वेध सर्वफलदायक कहा है ॥१-६॥

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Last Updated : January 22, 2014

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