हिंदी सूची|भारतीय शास्त्रे|ज्योतिष शास्त्र|मानसागरी|चतुर्थ अध्याय|
अध्याय ४ - राजयोग प्रकरण

मानसागरी - अध्याय ४ - राजयोग प्रकरण

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

The horoscope is a stylized map of the planets including sun and moon over a specific location at a particular moment in time, in the sky.


अब राजयोग प्रकरण वर्णन करते हैं -

जिसके जन्मकालमें वा प्रश्न, विवाह, यात्रा, तिलक इन लग्नमें लग्नका स्वामी बलवान् होकर लग्नमें वा केन्द्र ( १।४।७।१० ) त्रिकोण ५।९ में या ग्यारहवें स्थानमें स्थित हो तो शीघ्रही राज करता है तथा शीलवान् विभवकरके युक्त हाथी घोडा मुक्ता छत्रसे युक्त होता है, यदि नीचकुलमें भी उत्पन्न हो तो वह मनुष्य राजा होता है और राजवंशमें उत्पन्न हो तो अवश्यही राजा जानना ऐसी गर्गादिसुनियोंकी सम्मति है । जिसके जन्मसमयमें अकेला शुक्र ग्यारहवें वा केन्द्र ( १।४।७।१० ) में जन्मराशिमें तीसरे घरमें अथवा त्रिकोणमें स्थित हो तो वह मनुष्य विद्या और ज्ञानसे युक्त राजा जिसकी कीर्ति संसारमें विख्यात होवे दानी तथा मानी शूरवीर घोडा वा गुणसे संयुक्त तथा अच्छे हाथियोंकरके सेव्यमान होता है । जिसके जन्मकालमें दशमस्थानका स्वामी वा चतुर्थस्थानका स्वामी केन्द्र ( १।४।७।१० ) वा नववें या पांचवें स्थानमें स्थित हो और सातवें स्थानका स्वामी दूसरे स्थानमें हो तौ वह सिंहासनपर बैठे और मनुष्योंका स्वामी अर्थात् राजा हो जिसकी कीर्ति संसारमें प्रगट हो मदकरके गलित है कपोल जिनके ऐसे अच्छे हाथियों करके सेव्यमान होता है ॥१-३॥

जिसके जन्मसमयमें कोई एकभी ग्रह केन्द्र अथवा नवम पंचम स्थानमें स्थित हो तो वह सूर्यके किरणोंके समान दिशाओंमें प्रकाशमान होता है और अशुभ दोषोंको नाशकरके बडी उमरवाला रोगरहित मनुष्यको करता है । यदि चन्द्रमा सूर्यको देखता हो ऐसे योगमें जन्मलेनेवाला पृथ्वीका स्वामी ( राजा ) होता है ॥४॥५॥

जिसके जन्मकालमें चन्द्रमा केन्द्र स्थानमें पडै तो पुत्रवती तथा स्वरुपवती प्रियभार्या ( स्त्री ) मिलै । धन, सुवर्ण समृद्धि, माणिक, हीरा, रत्न ये सब अनायास करके इकट्ठा हो और चन्दनसे अपना अंग चरचना करै ॥६॥

जिसके जन्ममें शुक्र, बुध, बृहस्पति केन्द्र ( १।४।७।१० ) स्थानमें स्थित हो और दशमस्थानमें मंगल पडै तो ऐसे योगमें उत्पन्न हुआ मनुष्य कुलदीपक होता है । जिसके प्रसूतिकालमें राहु बुधके स्थानसे केन्द्र वा कोणमें स्थित हो तो वह घोडा रथ नर हाथी रत्न इन सब पदार्थोसे युक्त रत्नके समान धान्यवाला तथा समुद्रके निकट वास करनेवाला बहुत जनोंका प्यारा सत्य बोलनेवाला होता है । जिसके केन्द्रस्थान ( १।४।७।१० ) में अकेला बृहस्पति स्थित हो तो और सब ग्रह क्या करसकते हैं अर्थात् अरिष्टकारक ग्रहभी अशुभफल नहीं करसकते हैं जैसे एक सिंह मतवाले हाथियोंके यूथको भगादेता है । जिसके एकही बृहस्पति केन्द्र वा नवम पंचम लाभ वा लग्नमें पडै सौ शेष अवलग्रह कुछ नहीं करसकते हैं ॥७-१०॥

जिसके शुक्र केन्द्रस्थानमें पडै तो वह अच्छे वदनवाला, स्त्रियोंको प्रिय, सकलजनोंके उपकरमें समर्थ, बडी उमरवाला ध्वजविषयमें गुणवान् धनवा ++ ( पान नं २२३ ) पूर्ण होता है । जिसके दशमस्थानमें शनैश्चर स्थित हो तो वह मनुष्य धनवान्, पंडित, शूरवीर, मंत्री, दंड देनेका अधिकारी, नायक पुरों और ग्रामका मालिक होता है । जिसके तुला, धन, मीनमें स्थित शनि लग्नमें पडै तो राजवंशमें उत्पन्न पुरुष राजा होता है ॥११॥१३॥

जिसके बृहस्पति केन्द्रमें होवै वह सुन्दर स्त्री बहुत सोना - वस्त्र - अधिक लक्ष्मी करके युक्त, शास्त्र कौतुक, गीत नृत्यका जाननेवाला, रसादिक पदार्थ व्यापार, दीक्षा गुरु करके युक्त, पुत्र और भ्रातृजनोंसहित, स्थिरबुद्धिवाला, कर्ता अधिक प्रीतिसे युक्त, सुखी और अच्छे कार्य करनेवाला होता है । जिसके जन्मकालमें लग्नका स्वामी अपने घरमें प्राप्त होकर दशमभावमें स्थित होवै वह राजा चक्रवर्ती राजाओंकरके सेव्य सेना प्रतापसे शत्रुपक्षको नाश करनेवाला, जैसे इन्द्र देवतागणों करके युक्त वैसाही मनुष्य होता है ॥१४॥१५॥

जिसके जन्मसमय चन्द्रमा उपचय ( ३।६।१०।११ ) स्थानमें स्थित हो और शुभग्रह अपने घरमें अथवा अपने नवांशमें होकर केन्द्रस्थान ( १।४।७।१० ) में स्थित हों यद्वा चन्द्रमा स्वगृहमें अथवा स्वनवांशमें प्राप्त होकर उपचय स्थानमें स्थित हो और शुभग्रह केन्द्रमें हों अथवा शुभग्रहभी अपने घरमें वा नवांशमें प्राप्त होकर केन्द्रमें स्थित होवैं और पापग्रह बलहीन होवैं तो वह इन्द्रके समान बलवान् राजा होता है ॥१६॥

जिसके मीनराशिमें शुक्र स्थित ( बलवान् होकर केन्द्रमें ) होवै वह विद्या, कला और गुण एवं कामधेनु, भोगोंकरके युक्त, जितेन्द्रिय, देशका स्वामी, पुर, पत्तन, हाथी और धनक के युक्त और दीक्षाकरके सकलमंडलमें विख्यात होता है । जिसके कामेज ( श ) कन्याराशिमें हो छठे आठवें स्थानमें स्थित हो और राहु केन्द्रत्रिकोणमें अथवा बारहवें भावमें स्थित होवै तो वह कामी, शूरवीर, बलवान्, भोगी और हाथी, घोडे, छत्र इन करके युक्त और बहुत पुत्रोंवाला होता है । जिसके जन्मसमयमें चन्द्रमा वृष कन्या कर्कराशिमें स्थित हो और उच्चका राहु होवे वह राजाओंका राजा, बहुत लक्ष्मी, हाथी, घोडा, मनुष्य, नौका और बुद्धि करके युक्त, पंडित और कुलका प्रकाश करनेवाला होता है । जिसके जन्मसमय बुध, बृहस्पति और शुक्र, केन्द्र ( १।४।७।१० ) अथवा त्रिकोण ( ९।५ ) में स्थित होवैं वह धर्म, अर्थ, विद्या, यश, कीर्ति, लाभ, शांतस्वभाव और सुन्दर शील इन करके युक्त मनुष्योंका स्वामी ( राजा ) होता है ॥१७-२०॥

जिसके शुक्र, बृहस्पति, चन्द्रमा केन्द्रस्थानमें स्थित होवें वह कर्मसाध्य, बहुत धनकी वृद्धिवाला होता है और शनैश्चर, बुध, सूर्य तथा बृहस्पति ये सब त्रिकोण अर्थात् नवम पंचम भावमें स्थित हों और मंगल दशमभावमें स्थित होवैं तो राजयोग होता है । जिसके जन्म अथवा यात्राके समय शुभग्रह केन्द्र त्रिकोणमें स्थित होवै और तीसरे, ग्यारहवें, छठे पापग्रह स्थित होवें वह शीघ्र पृथ्वीके स्वामित्वको प्राप्त होता है । जिसके जन्मसमय चन्द्रमा ग्यारहवें अथवा त्रिकोणमें स्थित होवैं तो अवश्य राजाके तुल्य उसको करता है दोनों कुलमें अरिष्टोंको नाश करके आनन्दको करता है. जैसे दीपक अंधकारको नाश करके प्रकाशको करता है ॥२१-२३॥

जिसके छठे स्थानमें बृहस्पति और ग्यारहवें भावमें चन्द्रमा होवै वह ऐसे योगमें उत्पन्न हुआ प्रसिद्ध कुलका प्रकाशक होता है । जिसके लग्नका स्वामी अथवा बृहस्पति वा शुक्र केन्द्र ( १।४।७।१० ) स्थानमें स्थित हो वह बडी उमरवाला, राजाका प्यारा होता है । दशवें बुध और सूर्य हो और मंगल राहु छठे होवैं तो यह रजयोग है, इसमें उत्पन्न हुआ पुरुष नायक होता है ॥२४-२६॥

पहिलेमें बृहस्पति और अंतमें शनैश्चर और बीचमें शेषग्रह हों तो मी कुटुंब और उत्तम बलकरके युक्त राजयोग जानिये । जिसके तीसरे स्थानमें बृहस्पति और आठवें स्थानमें शुक्र और बीच वा अन्तमें और ग्रह हों तो भी निश्चय राजा होता है । वृषराशिमें बृहस्पति और मिथुनमें चन्द्रमा और मकरमें मंगल व सिंहमें शनैश्चर और कन्यामें बुध और सूर्य तथा तुलामें शुक्र होय तो यह राजयोग है इसमें उत्पन्नहुआ मनुष्य महाराजा होता है ॥२७-३०॥

आठ वा बारह वर्ष यदि जीता रहा तो संसारभरका पालक, पृथ्वीभरका राजा होता है । जिसके जन्मसमय अकेला बृहस्पति लग्नमें स्थित हो ओर सब योग अशुभभी हों तो वह पुरुष बहुत कालतक जीनेवाला, बुद्धिमान् और नायक होता है । धनराशिमें शुक्र वा मंगल और मीनराशिमें बृहस्पति और तुलामें बुध एवं शनि और चन्द्रमा नीच राशि ( १।८ ) में स्थित हो तो भी राजयोग होता है ॥३१-३३॥

इस योगमें उत्पन्न होनेसे धनरहित राजा होता है और दाता, भोग करनेवाला, प्रसिद्ध, पूज्य और मण्डलभरका नायक होता है । मीनराशिमें शुक्र और अंतमें ( बारहवें ) बुध और धनमें राहु और लग्नमें सूर्य और तीसरे मंगल हो तो राजयोग होता है । जिसके तीसरे स्थानमें बृहस्पति और ग्यारहवें चन्द्रमा होवे सोभी घरहीमें स्थित बडा प्रसिद्ध कुलदीपक राजा होता है ॥३४-३६॥

जिसके शुभस्थानमें स्थित शुभग्रह केन्द्रभावमें पडैं ऐसे योगमें उत्पन्न हुवा पुरुष शुभकर्म करनेवाला होता है । जिसके उच्चस्थानमें प्राप्त शुभग्रह केन्द्रस्थानमें स्थित हों तो नीचकुलमें उत्पन्न भी राज्यको प्राप्त होता है अर्थात् राजा होता है । जिसके अपने ही स्थानमें स्थित बृहस्पति, बुध और शनैश्चर हों वह बडी उमरवाला और पद पदमें सम्पदावाला होता है । जिसके मीनराशिमें बृहस्पति, शुक्र और चन्द्रमा होवैं वह राज्यको पानेवाला और बहुत पुत्रोंवाली स्त्रीवाला होता है ॥३७-४०॥

जिसके पंचमभावमें बृहस्पति और दशवें चन्द्रमा स्थित हो वह राज्यवाला, महाबुद्धिमान्, तपस्वी और जितेन्द्रिय होता है । जिसके सिंहराशिमें बृहस्पति अथवा तुला, कर्क, धन, मकर इन राशियोंमें हो औरग्रह अन्यस्थानमें स्थित होवैं सो देशभरका राजा होता है । तुला, धन, मीन वा लग्नमें स्थित शनैश्चर जिसके होवै वह पुण्यअनुभव सहित राजा होता है ॥४१-४३॥

पांचवें स्थानमें बुध हो और कर्कराशिका चन्द्रमा हो और नवमस्थानमें शुभग्रह स्थित हों तो राजयोग होता है । जिसके मकर, कुंभ, मीन, वृष, मिथुन, मेष इन राशियोंमें सब ग्रह स्थित होवैं वह प्रसिद्ध राजा होता है । बुध, शुक्र, बृहस्पति, शनैश्चर इन चार ग्रहोंकरके सहित राहु केन्द्रस्थानमें स्थित हो तो लक्ष्मी, आरोग्य, पुत्र और सन्मानादिक फलको देता है ॥४४-४६॥

जिसके चौथे स्थानमें शुक्र, बृहस्पति, चन्द्रमा, मंगल, सूर्य, शनैश्चर होवैं वह निश्चय राजा होता है । जिसके आठवें और बारहवें क्रूरग्रह और शुभग्रह दोनों हों तो यह भी राजयोग है, इसमें उत्पन्न हुआ पुरुष राजा होता है । लग्नमें शनैश्चर तथा चन्द्रमा और नववें, पांचवें, बृहस्पति और सूर्य और दशवें मंगल हो तो राजयोग होता है । जिसके नवम सूर्य अपने घरका स्थित हो तिसके भाई नहीं जीते हैं, अकेला ही राजाके तुल्य होता है ॥४७-५०॥

जिसके दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, छठे, दशवें इन स्थानोंमें ग्रह होवैं तो राजयोग होता है. इस योगमें उत्पन्न हुआ पुरुष अकेला ही राजा होता है । जिसके लग्नमें क्रूरग्रह और बारहवें शुभग्रह और दूसरे भी क्रूरग्रह हों तो राजयोग होता है. इस योगमें बारहवें क्रूरग्रह और दूसरे शुभग्रह और सातवें शुभग्रह होवैं तो वह परिवारका नाश करनेवाला होता है ॥५१-५३॥

जिसके दूसरे स्थानमें चन्द्रमा वा बुध हो और मेषराशिमें बृहस्पति हो तथा, दशवें राहु शुक्र हों ती भी राजयोग होता है । जिसके सिंहराशिमें बृहस्पति कन्याराशिमें शुक्र, मिथुनराशिमें शनैश्चर और स्वक्षेत्री भौम चौथे स्थानमें हो तो ऐसे योगमें उत्पन्न मनुष्य नायक होता है । जिसके कन्याराशिमें शनैश्चर वा चन्द्रमा हो सिंहराशिमें बृहस्पति, कुंभराशिमें राहु हो और मकरराशिमें मंगल हो तो ऐसे योगमें उत्पन्न हुआ मनुष्य संसारका पालन करनेवाला होता है ॥५४-५६॥

जिसके धनराशिमें शुक्र, मकरराशिमें बृहस्पति, कुंभराशिमें सूर्य, मीनराशिमें मंगल हो तो वह तीस वर्षमें संपूर्ण कर्मोका करनेवाला होता है । जिसके कर्कराशिमें बृहस्पति हो और ग्यारहवें चन्द्रमा, बुध, शुक्र होवैं, मेषराशिमें सूर्य हो तो वह राजा होता है । जिसके दशमस्थानमें बृहस्पति बुध शुक्र तथा चन्द्रमा होवैं तिसके संपूर्ण कर्म सिद्ध होवें और राजाओंमें पूज्य होवैं । जिसके छठे, आठवें, पांचवें, नववें, बारहवें शुभग्रह और क्रूरग्रह होवैं । जिसके छठे, आठवें, पांचवें, नववें, बारहवें शुभग्रह और क्रूरग्रह होवैं वह भी राजाओंमें पूज्य होता है ॥५७-६०॥

जिसके पांचवें मंगल, छठे राहु, आठवें शुक्र, नववें सूर्य हो वह कुलका पालन करनेवाला होता है । लग्नमें शनैश्चर तथा चन्द्रमा और आठवें शुक्र हो ऐसे योगमें उत्पन्न हुआ जन मानी और बहुत प्रिय होता है । मिथुनराशिमें राहु और सिंहमे मंगल हो इस योगमें उत्पन्न हुआ राजा हाथी घोडोंका नायक होता है ॥६१-६३॥

धनके आधेमें चन्द्रमायुक्त सूर्य लग्नमें बली शनैश्चर और मकरराशिमें मंगल होवैं तो इस योगमें उत्पन्न हुआ बालक महाराजा होता है और राजालोग दूरहीसे चरणोंमें शिर नवाते हैं । जिसके उच्चाभिलाषी सूर्य नववें वा पांचवें पडै वह नीचकुलमेंभी उत्पन्न हुआ धनयुक्त राजा होता है ॥६४-६६॥

जिसके दूसरे स्थानमें शुक्र दशवें बृहस्पति और छठे राहु हो तो वह पराक्रमी राजा होता है । जिसके चार ग्रह ( पाप व शुभ ) एकही स्थानमें तीसरे, पांचवें, नववें लग्न दूसरे इनमेंसे किसी स्थानमें हो तो भी राजयोग होता है । छठे आठवें सातवें स्थानमें स्थित चन्द्रमा विना सूर्य सब ग्रहों करके देखाजाता हो तो इस योगमें उत्पन्न हुआ पुरुष बडी आयुवाला राजा होता है । नवम, पंचम, चतुर्थ इन स्थानोमें सब ग्रह स्थित हों तो ऐसे योगमें प्रथमका उत्पन्न हुआ नष्ट होजाता है और पीछेका जीता है । विवाहित स्त्रीके विना अन्यसे एक पुत्र होता है वह संसारमें प्रसिद्ध, त्यागी, बडी उमरवाला राजा होता है ॥६७-७१॥

राहू, शुक्र, मंगल तथा शनि कन्याराशिमें स्थित हों तो ऐसे योगमें उत्पन्न हुआ मनुष्य कुबेरसे अधिक धनवाला होता है । लग्नमें बृहस्पति, मीनमें शुक्र, मेषमें सूर्य मकरराशिमें मंगल हो तो ऐसे योगमें दासके वंशमें उत्पन्न हुआभी छत्रधारी राजा होता है । दशवें स्थानमें बृहस्पति और ग्यारहवें भावमें चन्द्रमा जिसके होवै वह संसारमें कुलका प्रकाश करनेवाला होता है ॥७२-७४॥

दशवें स्थानमें बुध सूर्य छठे राहु मंगल हो तो राजयोग होता है, इसमें उत्पन्न हुआ मनुष्य नायक होता है । जिसके चार ग्रह एकही स्थानमें प्राप्त होकर दूसरे नववें तीसरे तथा लग्नमें स्थित हों तो इस योगमें उत्पन्न हुआ मनुष्य राजाके समान होता है किंतु राजा नहीं होता है ॥७५-७६॥

कर्कराशिमें बृहस्पति चन्द्रमायुक्त स्थित हो और बलवान् शुक्र केन्द्रमें हो और शेषग्रह ग्यारहवें तीसरे छठे स्थित होवे तो इस योगमें उत्पन्न हुआ पुरुष बडा उमरवाला, चक्रवर्ती राजा होता है । जिसके शुक्र, तुला, मीन, मेष, वृष इन राशियोंमें होवे वह राजमानी, कलाकौतुकी होता है और उसके तीन पुत्र बडी उमरवाले तेईस वर्षके उपरान्त पैदा होते हैं । जिसके बलवान् होकर लग्नका स्वामी केन्द्रमें स्थित हो उसको राजाके तुल्य करता है. यदि गोपकुलमें भी उत्पन्न होवे क्या आश्चर्य है जो राजाका पुत्र होय ॥७७-७९॥

जिसके सूर्य तृतीयस्थानमें हो, शुक्र चतुर्थस्थानमें, बुध दुसरे वा पंचमस्थानमें हो परन्तु नीचराशिमें और दशवें बारहवें स्थानमें कोई ग्रह न स्थित हो तो वह तीन समुद्रपर्यन्त पालन करनेवाला राजा होता है । जिसके जन्मकालमें उच्चका बृहस्पति केन्द्र ( १।४।७।१० ) में नववें पांचवें स्थित होवै और चन्द्रमा, बुध शुक्र करके युक्त हो अथवा देखाजाता हो तो वह मनुष्य सार्वभौम ( चक्रवर्ती ) शत्रुओंका जीतनेवाला राजा होता है ॥८०॥८१॥

जिसके जन्मसमय लग्नका स्वामी मित्रके घरमें मित्रयुक्त यदि दशवें लग्नमें सातवें स्थित हो तो वह पृथ्वीपर वैरियोंका नाश करनेवाला और अधिक प्रतापवाला होता है । जिसके पूर्णबलवान् चन्द्रमा लग्नको छोडकर केन्द्र ( १।७।४।१० ) में स्थित हो तो इस योगमें वह पराक्रम बल वाहनादि राजा युक्त होता है । जिसके अपने उच्चका अथवा स्वक्षेत्री शनि लग्नमें स्थित हो वह देश पुरादिकोंका स्वामी होता है. शेषगृह होवै अर्थात् स्वक्षेत्री उच्चका न होय तो दारिद्य दुःखकरके पीडित सब जनोंकरके निंद्य शरीरचेष्टावाला होता है । उच्चका सूर्य लग्नमें, चन्द्रमा दूसरे स्थानमें हो तो इस योगमें राजवंशमें उत्पन्न हुआ पुरुष राजालोगोंमें सम्राट्पदवीको धारण कहता है ॥८२-८५॥

जिसके उच्चाभिलाषी अर्थात् मीन राशिका सूर्य त्रिकोणमें हो तथा चंद्रमा मेषका, त्रिकोणमें बृहस्पति कर्कराशिमें हो तो वह पृथ्वीको रक्तसे पूर्ण करता है अर्थात् बडा ही योद्धा होता है । जिसके संपूर्ण ( आकशवासी ) ग्रह तथा दशम और जन्मलग्नका स्वामी लग्नको देखता होय तौ वह विदितप्रशंसाओंवाला, मेघके समान अथवा उज्ज्वलमान यशवाला, शंकाराहित, भ्रमण करनेवाला, शत्रुओंको नाश करनेवाला और भद्रमालाकरके अर्पित लक्ष्मीवाला, तिलकधारी राजा होता है ॥८६-८७॥

जिसके जन्मलग्नको संपूर्ण ग्रह देखतेहों वह बलकरके सहित, सौख्य, अर्थसे युक्त, भयरहित, बडी उमरवाला राजा होता है । शुक्र चौथे मंगल दशवें राहु शनैश्चरकरके युक्त स्थित होवैं तो इस योगमें उत्पन्न हुआ मनुष्य अवश्य राजा होताहै । मिथुन, मेष, वृष, मीन, कुंभ, मकर इन राशियोंमें पूर्णग्रह स्थित होवैं इस योगमें जो पैदा होता है हाथियोंके यानवाला होता है पूर्णग्रह स्थित होवैं इस योगमें जो पैदा होता है वह हाथियोंके यानवाला होता है अर्थात् उत्तम २ हाथी उसके होते हैं । जिसके बृहस्पति पंचम, चन्द्रमा, नवम, सूर्य तीसरे स्थानमें स्थित हों वह कुबेरके समान धनप्रसव सहित राजा होता है ॥८८-९१॥

जिसके बृहस्पति सिंहराशिमें और शेषग्रह तुला, वृश्चिक, धनु, मकर इन राशियोंमें हों तो वह देशका भोगनेवाला होता है । अपने घरमें सूर्य तुलाराशिमें शुक्र, मिथुनमें शनैश्चर होवैं तो राजयोग होता है । छठे, पांचवें, नववें, बारहवें शुभ और क्रूरग्रह जिसके स्थित होवें वह कंटकसहित राजमान्य होता है । त्रिकोणमें बुध, बृहस्पति, शुक्र होवे तीसरे, छठे, दशवें बुध शनैश्चर होवें और पूर्ण चन्द्रमा सातवें स्थित हो तो ऐसे योगमें उत्पन्न हुआ मनुष्य राजाओकें समान होता है ॥९२-९५॥

जिसके शनैश्चर लग्नमें अथवा चन्द्रमा लग्नमें हो और मंगल आठवें हो वह राजमान्य, बडा कामी, भोगपत्नीवाला होता है । शुक्र भौम धनुराशिमें, बृहस्पति मीनमें, कुंभमें बुध और नीचराशि ( ८ ) में चन्द्रमा सूर्यसहित स्थित हो तो यह राजयोग होता है । इस योगमें उत्पन्न हुआ पुरुष विभवकरके हीन राजा होता है । दानभोगादिसे विख्यात मान्य होता है । मीनराशिमें शुक्र, बारहवें बुध, लग्नमें सूर्य, दूसरे चन्द्रमा, तीसरे राहु हो तो राजयोग होता है । जिसके मीनराशिमें बृहस्पति तथा शुक्र चन्द्रमा स्थित हों वह बहुपुत्रस्त्रीवाला तथा राज्यवाला होता है ॥९६-१००॥

ग्यारहवें शुभ ग्रह हो और क्रूरराशिमें चन्द्रमा हो तथा दशमभावमें भी शुभग्रह स्थित हों तो राजयोग होता है । जिसके लग्नमें बृहस्पति पांचवें तथा दशवें चन्द्रमा स्थित हो वह राजमान्य, बडा बुद्धिमान, तेजस्वी और प्रतापी होता है ॥१॥२॥

N/A

References : N/A
Last Updated : January 22, 2014

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP