लोकहितकरव्रत - कलिमलहर श्रीकृष्णव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


कलिमलहर श्रीकृष्णव्रत

( सूर्यारुण ३०९ ) - जिस वर्षमें भाद्रपदकी कृष्णाष्टमी अर्धरात्रव्यापिनी हो और उसके साथ बुधवार, रोहिणी - नक्षत्र तथा शुभ योग हो, उस वर्षके उस पावन पर्वके दिन प्रातःकाल तीर्थादिके जलसे या कुएँके तुरंत निकाले हुए पानीसे स्त्रान करके संध्या - वन्दनादि नित्यकर्म करनेके पश्चात् उपवास करके

' ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय नमः ।'

इस मन्त्नका दिनभर मानस जप करता रहे और सायंकालमें श्रीकृष्णका उत्साहपूर्वक उत्सव करके गायन, वादन और नर्तन करके जागरण करे । फिर दूसरे दिन व्रतका विसर्जन करके पारणा करे तो इस व्रतके प्रभावसे भवसागरसम्भूत सम्पूर्ण बाधाएँ और पापसम्भूत सम्पूर्ण रोग - दोष शान्त होकर अपूर्व सुख - सौभाग्यादिकी प्राप्ति होती है ।

पापसम्भूतसर्वरोगार्तिहरव्रत समाप्त

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Last Updated : January 16, 2012

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